क्या है पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा विवाद, जानिए इसका इतिहास और प्रभाव

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pak afghan border dispute
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पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सीमा विवाद एक जटिल और ऐतिहासिक रूप से संवेदनशील मुद्दा है। यह विवाद मुख्य रूप से डूरंड रेखा (Durand Line) पर केंद्रित है, जो दोनों देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में स्थापित की गई थी। हालांकि, अफगानिस्तान इसे मान्यता देने से इनकार करता है, जिसके कारण दशकों से दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण रहे हैं।

डूरंड रेखा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

डूरंड रेखा 1893 में ब्रिटिश भारत और अफगानिस्तान के बीच एक समझौते के तहत बनाई गई थी। इस समझौते पर ब्रिटिश भारत की ओर से सर मोर्टिमर डूरंड और अफगानिस्तान के अमीर अब्दुर रहमान खान के बीच हस्ताक्षर हुए थे। यह रेखा 2,670 किलोमीटर लंबी है और पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा, बलूचिस्तान और अफगानिस्तान के विभिन्न प्रांतों से गुजरती है। ब्रिटिश सरकार ने इस सीमा को स्थायी रूप से मान्यता दी थी, लेकिन अफगानिस्तान ने इसे अस्थायी समझौता माना। 1947 में पाकिस्तान के गठन के बाद, यह विवाद और गहरा हो गया, क्योंकि अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया और डूरंड रेखा को खारिज कर दिया।

अफगानिस्तान का रुख और पाकिस्तान की स्थिति

अफगानिस्तान का मानना है कि डूरंड रेखा ने पश्तून और बलूच जनजातियों को विभाजित किया है। अफगानिस्तान के कई राष्ट्रवादी और राजनीतिक नेता “ग्रेटर अफगानिस्तान” की अवधारणा को बढ़ावा देते हैं, जिसमें पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान के कुछ हिस्सों को अफगानिस्तान में शामिल करने की बात की जाती है।

दूसरी ओर, पाकिस्तान का तर्क है कि: डूरंड रेखा एक अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सीमा है। पाकिस्तान ने 1947 में ब्रिटिश भारत से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद इस सीमा को उत्तराधिकार में लिया है। अफगानिस्तान द्वारा इसे न मानना दक्षिण एशिया में अस्थिरता को बढ़ावा देता है।

मुख्य विवाद और संघर्ष

1947-1950: प्रारंभिक तनाव
पाकिस्तान की स्वतंत्रता के तुरंत बाद, अफगानिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की सदस्यता का विरोध किया। 1949 में अफगानिस्तान की संसद ने एकतरफा घोषणा की कि वह डूरंड रेखा को मान्यता नहीं देगा।

1961-1963: राजनयिक संबंधों का टूटना
1961 में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के कारण दोनों देशों ने एक-दूसरे से अपने राजनयिक संबंध तोड़ लिए। 1963 में सऊदी अरब के हस्तक्षेप से दोनों देशों के बीच संबंध बहाल हुए।

सोवियत संघ का हस्तक्षेप और तालिबान शासन
1979 में अफगानिस्तान में सोवियत संघ के आक्रमण के दौरान पाकिस्तान ने अफगान मुजाहिदीन को समर्थन दिया। 1996 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद, पाकिस्तान और तालिबान सरकार के बीच तनाव कम हुआ, लेकिन सीमा विवाद बना रहा।

2001 के बाद: अमेरिका और नाटो की भूमिका
9/11 हमलों के बाद, अमेरिका और नाटो ने अफगानिस्तान में सैन्य हस्तक्षेप किया। पाकिस्तान पर आरोप लगाए गए कि वह तालिबान लड़ाकों को अपनी सीमा में शरण दे रहा है। 2017 में पाकिस्तान ने सीमा पर बाड़ लगाना शुरू किया, जिससे विवाद और बढ़ गया।

डूरंड रेखा विवाद के प्रभाव

  1. आतंकवाद और सुरक्षा मुद्दे

सीमा क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधियाँ बढ़ी हैं। पाकिस्तान ने आरोप लगाया है कि अफगानिस्तान में मौजूद आतंकवादी संगठन पाकिस्तानी क्षेत्रों में हमले कर रहे हैं। तालिबान के सत्ता में आने के बाद, पाकिस्तान को उम्मीद थी कि सीमा विवाद हल हो जाएगा, लेकिन तालिबान सरकार ने भी डूरंड रेखा को मान्यता देने से इनकार कर दिया।

  1. आर्थिक और व्यापारिक प्रभाव

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच व्यापारिक मार्ग अक्सर सीमा विवाद के कारण बाधित होते रहते हैं। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार का एक बड़ा हिस्सा अनौपचारिक रूप से सीमा पार किया जाता है। अफगानिस्तान के आयात-निर्यात के लिए पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण देश है, लेकिन सीमा विवाद के कारण व्यापार प्रभावित होता रहता है।

  1. क्षेत्रीय कूटनीति और वैश्विक प्रभाव

भारत इस विवाद में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अफगानिस्तान ने ऐतिहासिक रूप से भारत के साथ मजबूत संबंध बनाए हैं, जिससे पाकिस्तान को चिंता होती है। चीन, जो पाकिस्तान का करीबी सहयोगी है, भी इस क्षेत्र में अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका और रूस जैसे देश भी इस विवाद को अपनी रणनीतिक दृष्टि से देखते हैं।