जॉर्ज सोरोस: बैंक ऑफ इंग्लैंड को झुकाने वाला अरबपति या भारत में सियासत गर्माने वाला मोदी आलोचक?

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जॉर्ज सोरोस
जॉर्ज सोरोस

जॉर्ज सोरोस, एक ऐसा नाम जो दुनिया की राजनीति और वित्तीय बाजारों में विवाद का पर्याय बन चुका है। हंगरी में जन्मे इस अरबपति निवेशक और परोपकारी व्यक्ति ने अपनी कुशाग्र बुद्धि और साहसिक निर्णयों से न केवल वैश्विक बाजारों में हलचल मचाई है, बल्कि राजनीतिक परिदृश्यों को भी प्रभावित किया है। हाल ही में सोरोस ने भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार और उनकी नीतियों पर सवाल उठाए, जिसके बाद भारतीय राजनीति में हलचल मच गई।

सोरोस का इतिहास जितना विवादास्पद है, उतना ही प्रेरणादायक भी। 1992 में उन्होंने बैंक ऑफ इंग्लैंड के खिलाफ एक ऐतिहासिक वित्तीय दांव खेला, जिससे उन्हें “द मैन हू ब्रोक द बैंक ऑफ इंग्लैंड” का खिताब मिला। इसके अलावा, उनके द्वारा किए गए राजनीतिक बयान और परोपकारी गतिविधियां उन्हें समर्थकों और आलोचकों दोनों के बीच चर्चित बनाती हैं।

कौन हैं जॉर्ज सोरोस?

जॉर्ज सोरोस का जन्म 1930 में हंगरी के बुडापेस्ट में हुआ था। यहूदियों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के दौरान उन्होंने बड़ी कठिनाई से अपनी जान बचाई। बाद में वे लंदन स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स गए, जहां उन्होंने अर्थशास्त्र की पढ़ाई की। सोरोस ने अपने वित्तीय करियर की शुरुआत एक निवेश बैंक में की और धीरे-धीरे फंड मैनेजर बने।

बैंक ऑफ इंग्लैंड को हिलाने वाला दांव

1992 में जॉर्ज सोरोस ने ब्रिटिश पाउंड की कमजोरी को भांपते हुए एक बड़ा वित्तीय दांव खेला। उन्होंने लगभग 10 बिलियन डॉलर की शॉर्ट सेलिंग की, जिससे ब्रिटेन को अपना मुद्रा विनिमय दर तंत्र (ERM) छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस दांव से सोरोस ने 1 बिलियन डॉलर का मुनाफा कमाया और दुनिया भर में सुर्खियां बटोरीं।

परोपकार और विवाद

जॉर्ज सोरोस ने 1984 में ओपन सोसाइटी फाउंडेशन की स्थापना की, जो दुनिया भर में मानवाधिकारों, शिक्षा, और लोकतंत्र को बढ़ावा देने का काम करता है। उन्होंने अब तक 32 बिलियन डॉलर से अधिक का दान किया है। लेकिन उनके द्वारा समर्थित सामाजिक और राजनीतिक अभियानों को कई बार विवादों का सामना करना पड़ा।

भारत में विवाद क्यों?

जॉर्ज सोरोस ने हाल ही में भारत में पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि अडानी समूह पर लगे आरोप भारत के लोकतंत्र को कमजोर कर सकते हैं। उनके इस बयान ने भारतीय राजनीति में हलचल मचा दी। बीजेपी ने इसे भारत की छवि खराब करने का प्रयास करार दिया, जबकि विपक्षी दलों ने इसे मोदी सरकार पर सवाल उठाने का समर्थन माना।

आलोचकों के निशाने पर क्यों?

सोरोस अक्सर दक्षिणपंथी सरकारों और नीतियों के खिलाफ बोलते हैं, जिसके कारण वे आलोचनाओं के केंद्र में रहते हैं। उनके बयानों को कई बार पश्चिमी देशों द्वारा विकासशील देशों में हस्तक्षेप करने के प्रयास के रूप में देखा गया है।

जॉर्ज सोरोस के समर्थक उन्हें मानवाधिकारों और लोकतंत्र के लिए लड़ने वाला योद्धा मानते हैं। उनके दान और परोपकारी प्रयासों ने कई देशों में शिक्षा, स्वास्थ्य, और स्वतंत्रता के लिए बड़ा योगदान दिया है। जॉर्ज सोरोस एक ऐसा व्यक्तित्व हैं जो वित्त, राजनीति, और परोपकार की दुनिया में समान रूप से प्रभाव रखते हैं। जहां उनके आलोचक उन्हें एक विवादित हस्ती मानते हैं, वहीं उनके समर्थक उन्हें स्वतंत्रता और लोकतंत्र का समर्थक मानते हैं। भारत में उनके हालिया बयान ने उन्हें एक बार फिर चर्चा के केंद्र में ला दिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भारतीय राजनीति पर उनके इन बयानों का क्या प्रभाव पड़ता है।