US-China Trade War: ट्रंप की टैरिफ नीति ने चीन को घेरा, क्या अमेरिका रूस की तरह चीन को भी झटका देगा?

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US-China Trade War
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अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनातनी लगातार बढ़ रही है, और अब इसके असर चीनी अर्थव्यवस्था पर साफ नजर आने लगे हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आक्रामक टैरिफ रणनीति की वजह से चीन की आर्थिक स्थिति डगमगाने लगी है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि यदि अमेरिका ने चीन की विदेशी संपत्तियों को निशाना बनाया, तो उसकी हालत रूस जैसी हो सकती है।

चीनी अर्थशास्त्रियों की बढ़ती चिंता

‘साउथ चाइना पोस्ट’ में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन के प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री और पूर्व सेंट्रल बैंक सलाहकार यू योंगडिंग ने चेतावनी दी है कि अमेरिका के साथ बिगड़ते रिश्तों के बीच चीन की विदेशी संपत्तियां खतरे में हैं। उन्होंने चीनी सरकार को सतर्कता बरतने और संभावित नुकसान से निपटने की तैयारी करने की सलाह दी है।

डॉलर बना अमेरिका का हथियार

बीजिंग में एक फोरम के दौरान यू योंगडिंग ने कहा, “अमेरिका डॉलर को एक रणनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकता है। जैसे-जैसे व्यापार युद्ध गहराता जा रहा है, यह संभावना बढ़ती जा रही है कि अमेरिका चीन की विदेशी संपत्तियों पर हाथ डाल सकता है।”

वर्तमान में चीन के पास करीब 10.2 ट्रिलियन डॉलर की विदेशी संपत्ति है, जो भारतीय रुपये में लगभग 850 लाख करोड़ के बराबर है। इसमें 3.2 ट्रिलियन डॉलर का फॉरेक्स रिज़र्व शामिल है, जिसमें बड़ी हिस्सेदारी अमेरिकी डॉलर की है। हालांकि, चीन ने पिछले कुछ वर्षों में अमेरिकी बॉन्ड्स की होल्डिंग्स में लगभग 25% की कटौती की है।

क्या रूस जैसा होगा चीन का हश्र?

यू योंगडिंग ने यह भी कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका ने जैसे रूसी संपत्तियों को जब्त किया था, चीन को उससे सबक लेना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि चीन को भविष्य की किसी भी आर्थ‍िक चुनौती से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

“मार-ए-लागो एकॉर्ड” से उभरा नया खतरा

यू ने एक काल्पनिक लेकिन संभावित योजना “मार-ए-लागो एकॉर्ड” का जिक्र करते हुए कहा कि अमेरिका अपने विदेशी कर्जदारों के डॉलर आधारित कर्ज को 100 साल की अवधि वाले बॉन्ड्स में बदल सकता है। उनके अनुसार, यह एक प्रकार की डिफॉल्ट सिचुएशन होगी, जिससे चीन को गहरा झटका लग सकता है।

डॉलर पर निर्भरता बन रही बड़ी चुनौती

इस ट्रेंड को देखते हुए विशेषज्ञों की राय है कि चीन को अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करना होगा और अपनी अर्थव्यवस्था को और अधिक आत्मनिर्भर बनाना होगा। क्योंकि अब टकराव सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह वित्तीय मोर्चे तक फैल चुका है।