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जब Kaifi Azmi ने लिखा, ‘शब-ए-इंतज़ार आखिर, कभी होगी मुक़्तसर भी…’
Kaifi Azmi: कुछ तो हुनरमंदी रही होगी, वो शायर मकबूल रहा। दुनिया के पैतरों से दूर वो बड़े ही करीने से इंकलाबी लफ्जों को कोरे कागज पर टांकता था। उसके मोहब्बत के ख्वाब भी बड़े पोशीदा होते थे।