युवाओं के प्रेरणास्‍तोत्र Swami Vivekanand की जयंती पर जानें उनसे जुड़ी दिलचस्‍प बातें, कैसे Chicago सम्‍मेलन में दिलाई भारत को अलग पहचान?

Swami Vivekanand: हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी भारत सरकार राष्ट्रीय युवा दिवस के मौके पर राष्ट्रीय युवा महोत्‍सव की शुरुआत करने जा रही है। इसका मकसद युवाओं में छिपी प्रतिभा को आगे लाने के साथ ही स्‍वाजी जी के बताए मार्गों का अनुसरण करना भी है।

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पूरा देश आज स्‍वामी विवेकानंद जी की जयंती राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मना रहा है।स्‍वामी विवेकानंद जी की सदैव युवाओं के प्रेरणास्‍तोत्र माने गए हैं। स्‍वामी विवेकानंद के सकारात्‍मक विचार और प्रेरणादायक बातें युवाओं को आगे बढ़ने की ताकत देती हैं।यही वजह है कि साल 1985 में भारत सरकार ने स्‍वामी विवेकानंद की जयंती राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी भारत सरकार राष्ट्रीय युवा दिवस के मौके पर राष्ट्रीय युवा महोत्‍सव की शुरुआत करने जा रही है। इसका मकसद युवाओं में छिपी प्रतिभा को आगे लाने के साथ ही स्‍वाजी जी के बताए मार्गों का अनुसरण करना भी है। 12 से 16 जनवरी तक कर्नाटक में राष्ट्रीय युवा महोत्‍सव में युवा अपनी प्रतिभा दिखाएंगे।आइए जानते हैं स्‍वामी विवेकानंद जी से जुड़ी दिलचस्‍प बातें।

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Swami Vivekanand: महज 25 साल की उम्र में लिया सन्‍यास

Swami Vivekanand: कलकत्‍ता के कायस्‍थ परिवार में 12 जनवरी 1863 को स्‍वामी विवेकानंद जी का जन्‍म हुआ था।इनके बचपन का नाम नरेंद्रनाथ था।उनके पिता का नाम विश्‍वनाथ दत्‍त था,जोकि कलकत्‍ता हाईकोर्ट के वकील थे। इनकी मां भुवनेश्‍वरी देवी धार्मिक महिला थीं।स्‍वामी जी की बचपन से ही पढ़ाई और धार्मिक कार्यों में रुचि थी। 1879 में उन्‍होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्‍थान हासिल किया।

महज 25 वर्ष की आयु में ही सबकुछ छोड़ सन्‍यासी बन गए। तभी से ये स्‍वामी विवेकानंद के नाम से जाने जाते हैं।साल 1881 में स्‍वामी जी पहली बार कलकत्‍ता के दक्षिणेश्‍वर काली मंदिर में रामकृष्‍ण परमहंस से मिले।

उन्‍होंने प्रश्‍न करते हुए कहा कि क्‍या आपने भगवान को देखा है। तब परमहंस ने जवाब दिया कि हां मैंने ईश्‍वर को देखा है। मैं भगवान को उतना ही साफ देख रहा हूं, जितना तुम्‍हें देख सकता हूं।

Swami Vivekanand: शिकागो सम्‍मेलन में छोड़ी छाप

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Swami Vivekanand: स्‍वामी विवेकानंद जी द्वारा शिकागो में आयोजित विश्‍व धर्म सम्‍मेलन सदैव अविस्‍मरणीय रहेगा। 1893 में उनके वाक्‍य अमेरिका के भाईयों और बहनों ने खूब तालियां बटोरी।पूरे दो मिनट तक आर्ट इंस्टिट्यूट ऑफ शिकागो श्रोताओं की तालियों से गूंजता रहा।

उसी दिन पूरे भारत और अमूल्‍य भारतीय संस्‍कृति को एक अलग पहचान मिली।उन्‍होंने 1 मई 1897 में कलकत्‍ता में रामकृष्‍ण मिशन और 9 दिसंबर 1898 को गंगा नदी के किनारे बेलूर मठ की स्‍थापना भी की।

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