सनातन धर्म में करवा चौथ व्रत का एक विशेष महत्व है। हर साल कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर करवा चौथ का व्रत किया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और खुशहाल वैवाहिक जीवन की कामना के लिए रखा जाता है। ये निर्जला उपवास होता है, इस व्रत में अन्न और पानी पीने की मनाही होती है। चंद्र देवता को पानी से अर्घ्य देने के बाद ही ये व्रत खोला जाता है। करवा चौथ व्रत के कई नियम भी होते हैं, जिनका पालन करने पर महिलाओं को पूर्ण फल मिलता है। जानते हैं करवा चौथ व्रत की सही तिथि और अहम नियम…
करवा चौथ व्रत कब है?
पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का आरंभ 20 अक्टूबर को प्रात: काल 06:46 मिनट से हो रहा है, जिसका समापन 21 अक्टूबर को सुबह 04:16 मिनट पर होगा। पूजा का शुभ मुहूर्त शाम में 05 बजकर 46 मिनट से लेकर रात 07 बजकर 09 मिनट तक है और इस दिन चांद रात 07:54 बजे निकलेगा।
पूजा का महत्व
करवा चौथ के व्रत को करक चतुर्थी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। करवा चौथ का व्रत करवा माता और गणेश जी को समर्पित है। इस दिन चंद्र देवता की उपासना करना भी बहुत जरूरी होता है। करवा चौथ के दिन चंद्र देवता की उपासना करने से वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है।
व्रत के अहम नियम
- व्रत का आरंभ सूर्योदय से पहले हो जाता है और जिसका पारण चांद निकलने के बाद होता है।
- सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाएं।
- नए वस्त्र धारण कर और ईश्वर का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
- व्रत के दिन भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश जी, नंदी महाराज और कार्तिकेय जी की पूजा जरूर करें।
- शिव परिवार की पूजा करते समय स्त्री का मुख पूर्व दिशा की तरफ होना चाहिए।
- पूजा की थाली में दीप, सिंदूर, अक्षत, कुमकुम, रोली और मिठाई आदि शामिल करें।
- चांद के दर्शन के बाद ही ये व्रत खोलना चाहिए।
- रात में चांद निकलने के बाद छलनी से चंद्रमा के दर्शन कर चंद्रदेव की पूजा करें।
- चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पानी पीकर अपने व्रत का पारण करें।