‘अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए लगाई थी पटाखों पर रोक’-AAP पर बीजेपी का आरोप

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अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए लगाई थी पटाखों पर रोक
अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए लगाई थी पटाखों पर रोक

दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने आम आदमी पार्टी (AAP) और उसके नेताओं पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि बीते सात-आठ वर्षों में पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने अल्पसंख्यक समुदाय को खुश करने के उद्देश्य से ऐसे कदम उठाए, जिनकी वजह से सुप्रीम कोर्ट को दशहरा, दिवाली और दुर्गा पूजा जैसे हिंदू त्योहारों के दौरान पटाखों पर रोक लगाने का फैसला लेना पड़ा।

सचदेवा के मुताबिक, AAP सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के नाम पर अदालत में एकतरफा रिपोर्टें पेश कीं ताकि त्योहारों के समय पटाखों की अनुमति रोकी जा सके। उन्होंने कहा कि बीजेपी लगातार यह कहती रही है कि कुछ घंटों तक चलने वाले पटाखे दिल्ली के प्रदूषण का असली कारण नहीं हैं, लेकिन केजरीवाल सरकार ने तुष्टीकरण की राजनीति के तहत हिंदू त्योहारों को निशाना बनाया।

‘ग्रीन पटाखे’ की पहल और फिर खुद ही रोक

बीजेपी नेता ने व्यंग्य करते हुए कहा कि केजरीवाल सरकार ने पहले ‘ग्रीन पटाखे’ लाने की पहल की और बाद में उन्हीं पर रोक लगाने की सिफारिश की। उनके अनुसार, यह सरकार की दोहरी नीति को दिखाता है—एक ओर पर्यावरण की चिंता का दिखावा और दूसरी ओर धार्मिक भावनाओं की अनदेखी। उन्होंने AAP नेता सौरभ भारद्वाज के हालिया बयान पर भी प्रतिक्रिया दी, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर अदालत अनुमति दे, तो दिवाली पर पटाखे जलाए जा सकते हैं। सचदेवा ने कहा कि यह बयान दिखाता है कि AAP अब भी ग्रीन पटाखों के पक्ष में नहीं है और प्रदूषण के बहाने हिंदू त्योहारों को विवादों में घसीट रही है।

‘जनता खुद बता रही है कि रोक बेअसर है’

बीजेपी अध्यक्ष ने यह भी कहा कि पिछले कई वर्षों से दिल्लीवासी पटाखों पर रोक के बावजूद दिवाली की रात आतिशबाजी करते रहे हैं, जो यह साबित करता है कि लोग इन प्रतिबंधों को अनुचित मानते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने जनता की धार्मिक भावनाओं को नजरअंदाज करते हुए बार-बार गलत फैसले लिए हैं।

‘दिवाली पर पटाखे जलाना आस्था का प्रतीक’

सचदेवा ने AAP से अपील की कि वह नकारात्मक राजनीति छोड़कर ग्रीन पटाखों की अनुमति देने वाले प्रस्ताव का समर्थन करे। उन्होंने कहा कि दिवाली पर पटाखे जलाना केवल उत्सव या मनोरंजन नहीं, बल्कि आस्था का भी प्रतीक है, और इस पर रोक लगाना हिंदू समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाता है।