Report : Shweta Rai
हमारा देश भारत, अपनी साड़ियों की विविधता के लिए पूरे विश्वभर में जाना जाता है। पांच से नौ मीटर तक की ये साड़ियां महज़ पोशाक नहीं, बल्कि अलग अलग राज्यों की परंपरा, संस्कृति, पर्यावरण को भी दर्शाती हैं। कंटम्प्रेरी और पारंपरिक दोनों ही तरह की साड़ियों को ख़ूब पसंद किया जाता रहा है, लेकिन पारंपरिक साड़ियों का स्थान हमारे दिल में कुछ अलग है। सिल्क से धागों से बनी साड़ियां महिलाओं को काफी भाती है क्योंकि ये हल्की भी होती है और इन साड़ियों को किसी भी पार्टी, त्यौहार ये रोजमर्रा की लाईफ में भी आसानी से पहन सकते हैं।
सिल्क की साड़ियों पर जब अलग-अलग रंग के सिल्क के धागों का मेल होता तो यह साड़ी को एक अलग चमक देता है। रोशनी का कोण बदलने पर असली सिल्क का रंग भी बदलता प्रतीत होता है। सिल्क की साड़ी पर सिल्क का थ्रेड वर्क इन साड़ियों की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है। पूरी साड़ी की बुनाई में एक धागा डिजाइन के अनुसार विभिन्न रंगों के रूप में पिरोया जाता है। यही कला क्रास धागे में भी अपनाई जाती है। सुनहरे रेशम के धागों से जब सिल्क की साड़ी पर कारीगर अपनी कारीगरी दिखाता है तो वह उसे बहुत ही आकर्षक बनाता है। रेशम के धागों से किया गया वर्क इन साड़ियों को ख़ूबसूरत और आकर्षक लुक प्रदान करता है।
सिल्क साड़ी के बार्डर पर किया गया सिल्क थ्रेड वर्क साड़ी को बहुत ही क्लासी लुक देता है। सिल्क साड़ी पर थ्रेड वर्क पारम्परिक और आधुनिकता का अद्भुत मिश्रण है। इन साड़ियों को बनाने में काफी समय लग जाता है, क्योकि रेशम के धागों की बुनाई हाथों से की जाती है। जिसके कारण यह साड़ी काफी महंगी होती है। इस कार्य में ज्यादा मेहनत की जरूरत होती है। सिल्क साड़ियों पर किए गए धागे की काम की वजह से बॉलीवुड से लेकर आम महिलाओं तक यह हर किसी की पहली पसंद है। भागलपुर की तसर सिल्क साड़ी हो या असम की सिल्क साड़ी या पटोला साड़ी हो, या साउथ की कांजीवरम सिल्क साडियां, इन सभी साड़ियों पर सिल्क के धागों से किया गया काम ही उनकी खूबसूरती निखार देता है।
एक शानदार सिल्क की साड़ी को बनाने के लिये कभी कभी पूरा साल लग जाता है। इतनी तसल्ली से किए काम में खूबसूरती निखर कर आती है । शायद यही वजह है कि महिलाओं को ये सिल्क साड़ियां काफी अच्छी लगती हैं।