एक तरफ मी टू कैंपेन का दायरा बढ़ते-बढ़ते भारत तक आ पहुंचा है तो वहीं दूसरी तरफ यौन उत्पीड़न से जुड़े एक केस में दिल्ली हाईकोर्ट ने आरोपियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा है कि ऐसे मामले में आरोपियों की पहचान उजागर न किया जाए। दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक अहम् आदेश दिया। कोर्ट ने मामले में रहे आरोपियों का नाम सोशल मीडिया या अन्य कहीं भी उजागर न करने को कहा है। दरअसल, एक महिला पत्रकार ने एक वेब पोर्टल के कुछ वरिष्ठ कर्माचारियों पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। इसी को लेकर कोर्ट ने यह आदेश दिया कि इस कथित घटना के बारे में सोशल मीडिया या किसी अन्य पब्लिक प्लेटफॉर्म पर जानकारी सार्वजनिक न करें।
चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस वीके राव की बेंच ने ओपन कोर्ट में महिला और आरोपों का सामना कर रहे लोगों को एक अंतरिम आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि इस मामले को लेकर कोई भी वादी किसी भी तरह की कोई टिप्पणी नहीं करेगा और न ही इस मामले में शामिल लोगों की पहचान सार्वजनिक करेगा। इससे पहले भी इसी मामले में कोर्ट ने 7 नवंबर 2017 को आदेश दिया था। इसमें याचिकाकर्ता और मामले से जुड़े अन्य लोगों की पहचान छिपाने के लिए कहा गया था। अब इस केस में आरोपियों ने महिला के खिलाफ याचिका डाली है। उऩका कहना है कि इस मामले में महिला ने कोर्ट के मना करने के बावजूद भी मी टू कैंपेन के तहत उनके नाम सोशल मीडिया में उजागर किया। अदालत ने कहा कि किसी को भी इस मामले में इंटरव्यू नहीं देना चाहिए।
बता दें कि इस मामले में शिकायतकर्ता ने कार्यस्थल पर महिलाओं से जुड़े एक्ट के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी थी। वेब पोर्टल की आंतरिक कमिटी ने महिला के आरोपों को खारिज कर दिया था। इसके बाद महिला ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।