देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा वर्ष 1975 में लगाया गया आपातकाल आजाद भारत की वह घटना है जिसका जिक्र हमेशा होता रहेगा। इसे भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है। आपातकाल पर बहुत सी किताबें लिखी गई हैं। जिनमें उस दौर की यादों, घटनाओं और आपबीतियों का उल्लेख मिलता है। हालांकि लेखक ज्ञान प्रकाश ने अपनी किताब ‘’आपातकाल आख्यान: इंदिरा गांधी और लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा’’ में आपातकाल का ऐतिहासिक संदर्भ बताया है। कहा जा सकता है कि लेखक ने उस समय पर अपनी ऐतिहासिक दृष्टि डाली है।
किताब में लेखक बताते हैं कि जब इंदिरा गांधी की सत्ता को चुनौती मिलने लगी तो उन्होंने आपातकाल लगा दिया। आपातकाल में MISA के तहत लोगों को हिरासत में रखा गया। इस किताब में लेखक बताते हैं कि आखिर क्यों इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाना पड़ा। आपातकाल कोई आसमान से नहीं टपका था। यह कोई अचानक से होने वाली घटना नहीं थी।
दरअसल देश के बंटवारे के चलते संविधान सभा के सदस्यों की धारणा थी कि देश को एक मजबूत केंद्र सरकार की आवश्यकता है। इसके लिए संविधान सभा ने मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध तक का प्रावधान किया। यानी कि संविधान में आपातकाल लगाने का प्रावधान इसे लागू किए जाने से पहले से था। इसी का दुरुपयोग इंदिरा गांधी ने खुद को बचाने के लिए किया।
लेखक कहते हैं कि आपातकाल न विशुद्ध राजनीतिक था और न ही विशुद्ध संवैधानिक। लेकिन यह बात सच है कि आपातकाल के दौरान सत्ता ने अपनी सीमा लांघी। आपातकाल ने सरकार को इतनी ताकत दे दी थी जो कि उसके पास सामान्य दिनों में नहीं होती। जिस तरह नसबंदी लागू की गई यह उसका एक उदाहरण था।
लेखक इस बात पर रोशनी डालते हैं कि आपातकाल से पहले तक भी देश में वही कानून चले आ रहे थे जो कि अंग्रेजों के समय के थे। इसका अर्थ है कि सरकार और आम जनता के बीच के रिश्ते आजादी के पहले जैसे ही रहे , बदला कुछ नहीँ। अगर औपनिवेशक कानून जस के तस थे तो ऐसे में आपातकाल लगने और उस दौरान हुई ज्यादती कोई बहुत आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए। लेखक के अनुसार जयप्रकाश नारायण के चलते देश को पहली गैर कांग्रेसी सरकार मिली। संपूर्ण क्रांति महज चुनाव तक महदूद रह गई।
किताब के बारे में:
आपातकाल आख्यान Emergency Chronicles का अनुवाद है। किताब राजकमल प्रकाशन द्वारा छापी गई है। 414 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 499 रुपये है।