18 नवंबर 2022 को सुबह 11.30 बजे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन- इसरो (Indian Space Research Organisation- ISRO) ने आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा में अपने केंद्र से देश का पहला निजी तौर पर विकसित रॉकेट ‘विक्रम-एस’ (Vikram–S) का सफल प्रक्षेपण कर देश में प्राइवेट सेक्टर के लिए दरवाजे खोल दिए गए हैं.
Vikram–S को पहले 15 नवंबर को प्रक्षेपित करने की योजना थी. विक्रम-एस को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपण के बाद 81 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचना था लेकिन यह इससे भी ऊंचा गया. रॉकेट का नाम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है.
क्या कहा इसरो ने?
ISRO के अनुसार विक्रम-एस (Vikram–S) लॉन्च के बाद 89.5 किलोमीटर की ऊंचाई तक गया और निर्धारित किए गए सभी मानकों पर खरा उतरा. यह तीन पेलोड लेकर गया है. हैदराबाद स्थित चार साल पुराने स्टार्ट-अप स्काईरूट एयरोस्पेस के विक्रम-एस रॉकेट के पहले प्रक्षेपण के लिए तैयारी पहले से ही कर ली गई थी. इस लॉन्चिंग में आम ईंधन के बजाय लिक्विफाइड नेचुरल गैस (Liquefied Natural Gas) और लिक्विड ऑक्सीजन (LoX) का इस्तेमाल किया गया है, जो किफायती होने के साथ-साथ प्रदूषण मुक्त भी है.
लांच के बाद विक्रम-एस रॉकेट को बनाने वाले स्टार्टअप स्काईरूट (Skyroot) एयरोस्पेस ने एक ट्वीट के माध्यम से बताया कि, “लॉन्च किया गया! विक्रम-एस ने आसमान को सुशोभित करने वाले भारत के पहले निजी रॉकेट के रूप में इतिहास रचा है. इस महत्वपूर्ण अवसर पर हमारे साथ रहने के लिए हम आप सभी का धन्यवाद करते हैं.” इसके साथ ही इसरो ने भी ट्विटर पर घोषणा की, “मिशन प्रारंभ सफलतापूर्वक पूरा हुआ. बधाई.”
प्रक्षेपण यान में इस्तेमाल किए गए इंजन का नाम पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम के नाम पर रखा गया है. ‘कलाम-80’ का प्रदर्शन उन प्रमुख क्षेत्रों में से एक था जिन पर कंपनी विक्रम-एस की उड़ान के दौरान नजर रख रही थी.
क्या लेकर गया था Vikram–S?
विक्रम-एस सिंगापुर, अमेरिका, इंडोनेशिया और भारत के छात्रों द्वारा बनाए गए 2.5 किलोग्राम के उपग्रह को लेकर गया था. विक्रम-एस उप-कक्षीय (Sub Orbital) उड़ान में चेन्नई के स्टार्ट-अप स्पेस किड्ज, आंध्र प्रदेश के स्टार्ट-अप एन-स्पेस टेक और आर्मेनियाई स्टार्ट-अप बाजूमक्यू स्पेस रिसर्च लैब के तीन पेलोड लेकर गया था.
विक्रम–एस (Vikram–S)
विक्रम-S रॉकेट, एक-चरणीय सब-ऑर्बिटल प्रक्षेपण रॉकेट है. यह सब-ऑर्बिटल प्रक्षेपण यान कक्षीय गति (Orbital Speed) से धीमी गति से चलते हैं. अगर हम इसको आसान भाषा मे समझे तो इन प्रक्षेपण यान की बाहरी अंतरिक्ष तक पहुंचने के लिये तो गति पर्याप्त होती है लेकिन पृथ्वी के चारों ओर कक्षा में रहने के लिये पर्याप्त गति नहीं होती है.
Vikram–S अंतरिक्ष प्रक्षेपण वाहनों (Satellite Launch Vehicles) की विक्रम श्रंखला में अधिकांश तकनीकों के परीक्षण और सत्यापन में मदद करेगा. स्काईरूट तीन अलग-अलग विक्रम रॉकेट संस्करणों पर काम कर रहा है.
विक्रम-I को 480 किलोग्राम पेलोड के साथ लॉन्च किया गया था. विक्रम रॉकेट सूर्य-समकालिक ध्रुवीय कक्षाओं (Sun-Synchronous Polar Orbits) में 290 किलोग्राम और 560 किलोग्राम पेलोड ले जाने में सक्षम होंगे.
प्रारंभ मिशन (Prarambh Mission)
प्रारंभ मिशन का उद्देश्य तीन पेलोड को अंतरिक्ष में ले जाना है, जिसमें 2.5 किलोग्राम का पेलोड भी शामिल है जिसे कई देशों के छात्रों द्वारा विकसित किया गया है. प्रारंभ मिशन और विक्रम-S रॉकेट को हैदराबाद स्थित स्टार्टअप स्काईरूट द्वारा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) तथा भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) के सहयोग से विकसित किया गया था.
प्राइवेट सेक्टर के लिए खुले दरवाजे
दशकों से भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में सरकारी स्वामित्व वाले इसरो का दबदबा रहा है. स्काईरूट एयरोस्पेस भारत की पहली निजी क्षेत्र की कंपनी बन गयी है, जो 2020 में केंद्र सरकार द्वारा अंतरिक्ष उद्योग को निजी क्षेत्र के लिए खोले जाने के बाद भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में कदम रख रही है.
जून 2020 में भारत सरकार द्वारा अंतरिक्ष सेक्टर में निजी क्षेत्र की भागीदारी की मंजूरी देने के बाद से किसी भारतीय कंपनी द्वारा उठाया जाने वाला यह पहला बड़ा कदम है. उद्योग से जुड़े हुए लोगों ने Business Standard अखबार को बताया कि विक्रम-एस स्पेसएक्स, वनवेब, प्लैनेट लैब्स और स्पायर ग्लोबल जैसी निजी कंपनियों के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र को प्रमुख बनाने की दिशा में भारत का पहला कदम हो सकता है.
ताजा उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर देश में कुल 100 से अधिक अंतरिक्ष स्टार्टअप हैं, जिनमें से सबसे ज्यादा 47 2021 में स्थापित किए गए थे, वहीं, 2020 में 21 और 2019 में 11 अंतरिक्ष स्टार्टअप स्थापित किए गए थे.
इसरो में अंतरिक्ष अवसरों पर क्षमता निर्माण कार्यक्रम कार्यालय (सीबीपीओ) के निदेशक एन सुधीर कुमार ने कहा, ‘यह अंतरिक्ष के क्षेत्र में कई स्टार्टअप स्थापित होने का मार्ग खोलेगा. दुनिया में इस क्षेत्र का हर बड़ा देश नीतिगत रूप से कम से कम दो या तीन प्राईवेट एजेंसियों को उपग्रह निर्माण क्षेत्र में आगे बढ़ा रहा है. हालांकि भारत में इसे केवल दो साल पहले मंजूरी दी गई थी, जबकि स्काईरूट टीम उससे बहुत पहले हमारे संपर्क में थी.’
स्काईरूट – Skyroot?
हैदराबाद स्थित स्काईरूट भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र में सबसे अधिक निवेश हासिल करने वाले स्टार्टअप में से एक है, जिसने अब तक लगभग 6.8 करोड़ डॉलर (लगभग 50 करोड़) की रकम जुटाई है. स्काईरूट ने सीड राउंड, सीरीज ए और ब्रिज राउंड के माध्यम से 1.7 करोड़ डॉलर जुटाए और इस साल सितंबर में सिंगापुर के संप्रभु निवेशक जीआईसी से सीरीज बी राउंड में 5.1 करोड़ डॉलर की रकम जुटाई.
स्काईरूट के अलावा चेन्नई की अग्निकुल कॉसमॉस भी अप्रैल 2023 तक अपने प्रक्षेपण यान अग्निबाण (AgniBaan) के पूर्ण पैमाने पर व्यावसायिक लॉन्च की तैयारी कर रही है.