प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के तहत छह नए एम्स बनाने की योजना है। लेकिन नए AIIMS बनाने की चाल सुस्त है। ऐसे में अब भारतीय नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी कैग की नजर इस योजना पर गई है। एम्स बनाने के लिए हो रही देरी पर कैग ने सरकार को फटकार लगाई है। कैग की ऑडिट से ये पता चला है कि देश में एम्स जैसी स्वास्थ्य सेवाएं स्थापित करने के लिए प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना को लागू करने की गति काफी सुस्त है और इससे लागत करीब 3 हजार करोड़ रुपये बढ़ गई है।

सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि छह नए एम्स खोलने के लिए साल 2016-17 तक महज 14,970 करोड़ रुपये सरकार द्वारा जारी किए गए हैं, लेकिन धन आवंटन में देरी की वजह से इन पर आने वाली लागत में 2,928 करोड़ रुपये का इजाफा हो गया है। रिपोर्ट में इस दावे को झूठा बताया गया है कि एम्स की स्थापना का काम तेज गति से हो रहा है। सीएजी का कहना है कि कई एम्स की स्थापना तय समय से चार से पांच साल पीछे चल रही है। सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि छह नए एम्स के पास 1,267.41 करोड़ का फंड बिना इस्तेमाल के पड़ा है। इसके अलावा काम में लगी एजेंसियों के पास 393.53 करोड़ रुपये सिविल वर्क के लिए और 437.28 करोड़ रुपये इक्विपमेंट खरीद के लिए बचे हुए हैं।

सीएजी की रिपोर्ट मंगलवार को संसद में पेश की गई थी। सीएजी की रिपोर्ट में 2003 से 2017 तक एम्स निर्माण में हो रही ढिलाई उजागर की गई है। इसलिए इसमें यूपीए और एनडीए दोनों सरकारों को जिम्मेदार माना जा सकता है। प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना का खाका अगस्त 2003 में वाजपेयी सरकार के दौर में आया था. इस योजना के तहत अब तक छह चरण में कुल 20 नए एम्स की स्थापना और 71 मौजूदा मेडिकल कॉलेजों को अपडेट करने का काम चल रहा है।

ब्यूरो रिपोर्ट, एपीएन

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