जम्मू-कश्मीर की वादियों में एक बार फिर आतंक की गूंज सुनाई दी है। पुलवामा हमले के बाद यह सबसे बड़ा आतंकी हमला बताया जा रहा है, जिसमें पहलगाम की बायसरन घाटी में निर्दोष पर्यटकों को निशाना बनाया गया। यह हमला न केवल मानवीय संवेदना को झकझोरता है, बल्कि देश की सुरक्षा व्यवस्था और आतंकी नेटवर्क पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। इस लेख में हम हमले की भयावहता, घटनाक्रम, राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और सामाजिक प्रभावों का विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
बायसरन घाटी में मौत का तांडव
मंगलवार दोपहर को सेना की वर्दी में आए आतंकियों ने बायसरन घाटी में मौजूद पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। चश्मदीदों के मुताबिक, आतंकियों ने पहले पर्यटकों से उनका धर्म पूछा, फिर पहचान पत्र देखकर हिंदू पहचान वालों को निशाना बनाया। इस भयावह हमले में अब तक कम से कम 27 लोगों की मौत की खबर है, जिसमें 2 विदेशी और 2 स्थानीय नागरिक भी शामिल हैं। कई लोग गंभीर रूप से घायल हैं।
कलमा न पढ़ पाने पर गोली मारी
घटना के दौरान पुणे की आसावरी जगदाले ने बताया कि उनके पिता संतोष जगदाले को तंबू से बाहर निकाल कर कलमा पढ़ने को कहा गया, और जब वे नहीं पढ़ पाए, तो उन्हें सिर और पीठ में गोलियां मारी गईं। उनके चाचा भी इस हमले में मारे गए। यही नहीं, कई प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि आतंकियों ने लोगों के कपड़े उतरवाकर उनकी धार्मिक पहचान की पुष्टि की और फिर उन्हें गोली मारी।
शादी के बाद हनीमून मनाने आए थे कई पीड़ित
मारे गए लोगों में कई नवविवाहित दंपति और परिवार शामिल हैं। करनाल के नौसेना अधिकारी लेफ्टिनेंट विनय नरवाल, जो कोच्चि में तैनात थे, हनीमून पर आए थे। इसी तरह, कानपुर के शुभम द्विवेदी और आईबी अधिकारी मनीष रंजन जैसे लोग भी अपने परिवारों के साथ छुट्टियां मनाने आए थे।
हमले की जिम्मेदारी और राजनीतिक प्रतिक्रिया
इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने ली है। तीन जुलाई से शुरू होने जा रही श्री अमरनाथ यात्रा से पहले यह हमला हुआ है, जिससे इसकी मंशा को समझा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस हमले की कड़ी निंदा करते हुए सऊदी अरब की अपनी यात्रा बीच में छोड़ दी और तत्काल गृह मंत्री अमित शाह से बात कर हालात की समीक्षा करने को कहा। शाह ने भी वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक के बाद श्रीनगर का दौरा किया।
राष्ट्रीय सुरक्षा पर बैठक और विरोध प्रदर्शन
हमले के बाद बुधवार को दिल्ली में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट की सुरक्षा मामलों की समिति (CCS) की बैठक बुलाई गई है, जिसमें जम्मू-कश्मीर की स्थिति और संभावित जवाबी कार्रवाई पर चर्चा की जाएगी। दूसरी ओर, जम्मू में हमले के विरोध में बंद का आह्वान किया गया है, जिसे विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक संगठनों का समर्थन मिला है।
यह हमला न केवल निर्दोष पर्यटकों की हत्या है, बल्कि देश की विविधता, सहिष्णुता और सामाजिक ताने-बाने पर भी हमला है। इसने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि आतंक का एजेंडा केवल खौफ पैदा करना ही नहीं, बल्कि समाज को धर्म के आधार पर बांटने की भी कोशिश है। लेकिन भारत का संकल्प साफ है—ऐसे किसी भी शैतानी एजेंडे को सफल नहीं होने दिया जाएगा। अब समय है कि आतंकवाद के खिलाफ और ठोस, निर्णायक और व्यापक कदम उठाए जाएं ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।