6 दिसंबर, 1992… एक ऐसा दिन जिसने देश में सबसे बड़े विवादित मुद्दे को जन्म दिया। यह विवादित मुद्दा बाबरी मस्जिद का है जिसे उस दिन हिंदू कार्यसेवकों ने तोड़ दिया था। जिसके बाद देश के दो सबसे बड़े समुदाय हिंदू और मुसलमान के बीच तनाव और नफरत पैदा हो गई। इस घटना की सुनवाई हुई मामला ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा तो सुप्रीम कोर्ट ने सबसे पहले गिराये गए खंडहर को मंदिर और मस्जिद से हटकर विवादित ढांचा करार दिया।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
विवादित ढांचे को लेकर सालों-साल कोर्ट में सुनवाई चलती रही और राजनैतिक पार्टियां इस मुद्दे को चुनावों में अपना खिलौना बनाकर सियासी खेल खेलती रहीं। 1992 में घटी इस घटना के करीब 25 साल बाद 19 अप्रैल 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अयोध्या मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, केंद्रीय मंत्री उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा समेत भाजपा और विहिप के 13 नेताओं पर आपराधिक साजिश का मुकदमा चलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अदालत को निर्देश दिए कि वो दो साल के अंदर इस मामले में फैसला सुनाएं।
राम विलास वेदांती का बयान
25 साल बाद आए इस फैसले ने कई सवाल खड़े कर दिए। ये सवाल तब और ज्यादा उलझ गए जब बाबरी विध्वंस के आरोपी और राम जन्मभूमि न्यास के वरिष्ठ सदस्य राम विलास वेदांती ने बहुत बड़ा बयान दे दिया। राम विलास वेदांती ने कहा कि विवादित ढांचे को गिराने में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी का कोई हाथ नहीं था, उनके ऊपर लगाए गए सभी आरोप गलत हैं। उन्होंने कहा कि 6 दिसंबर 1992 को जब कार्यसेवा प्रारंभ हुई तब वहां देश की सभी संत, अशोक सिंघल, महंत अवैधनाथ समेत कई लोग मौजूद थे। मैं संकल्प पत्र पढ़ने के लिए मंच की तरफ बढ़ा तभी कार्यसेवकों ने उस ढांचे को तोड़ना शुरू कर दिया। जिसके बाद मैंने भी कार्यसेवकों को कहा कि वे जल्द से जल्द इस खंडहर को गिराए क्योंकि जब तक ये ढांचा रहेगा तब तक लोग कहेंगे कि यह मस्जिद है जबकि यहां कोई मस्जिद था ही नहीं। जिसके बाद मेरे साथ सबने मिलकर उस खंडहर को गिराना शुरू कर दिया।
सीबीआई ने लगाया झूठा आरोप- वेदांती
राम विलास वेदांती ने कहा कि जब हमने ढाचें को गिराना शुरू कर दिया तब लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और राजमाता विजयराजे सिंधिया ने हम सबसे अपील की कि हम ढांचे से नीचे उतर जाएं लेकिन किसी भी कार्यसेवक ने उनकी बात नहीं सुनी। वेदांती ने यह भी कहा कि 5 दिसंबर 1992 की रात को उनके पास तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव जी का फोन आया और उन्होंने पूछा कि ढांचा गिरेगा या नहीं, हमने कहा कि बिल्कुल गिर जाएगा बस आप वहां किसी सैनिक को मत भेजिएगा। वेदांती के अनुसार तत्कालीन कांग्रेस प्रधानमंत्री ने उनकी बात मानी और अगले दिन अयोद्धया में एक भी सैनिक बल को तैनात नहीं किया।
वेदांती ने कहा कि सीबीआई ने झूठा केस बनाकर इन लोगों पर आरोप लगाए हैं जो बिल्कुल गलत हैं। उन्होंने उस दिन हुए घटना की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ली और कहा कि मैं दोषी हूं और मै इसके लिए फांसी पर भी चढ़ने के लिए तैयार हूं।
वेदांती के बयान ने खड़े किये कई सवाल:
बीजेपी के पूर्व सांसद होने के नाते वेदांती द्वारा दिए इस बयान पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। 25 साल के दौरान वेदांती ने यह बयान क्यों नहीं दिया? क्या वेदांती लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी समेत बीजेपी नेताओं को बचाना चाहते हैं? क्या उन्होंने इस बयान से सीबीआई का सच बताया? क्या उनके इस बयान से सीबीआई के ऊपर भी सवाल उठते हैं कि उसने कांग्रेस के दवाब में आकर इस मामले में आडवाणी को फंसाया और क्या राम-मंदिर आंदोलन में आडवाणी-जोशी को सियासी सजा मिली? सवाल अनेकों है लेकिन फिलहाल स्पष्ट जवाब एक भी नहीं है।
सीबीआई की सफाई
इस पूरे मामले में सीबीआई के पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर और मुबंई ब्लास्ट टास्कफोर्स के मुखिया शांतनु सेन ने एक हिंदी न्यूज़ चैनल से कहा कि इस मामले को सिर्फ 5 दिसंबर 1992 की घटना के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि यह एक साजिश थी जो रथ यात्रा के वक्त से ही शुरू हो गई थी। उन्होंने बताया कि CBI ने अक्टूबर 1993 में 68 लोगों के खिलाफ धारा 153A, 153B, 505 और 120B के तहत चार्जशीट डाली। क्रिमिनल एक्ट के तहत सीबीआई इस नतीजे पह पहुंची कि इस केस में दो समुदायों के बीच में नफरत फैलाने, समाजिक शांति भंग करने, झूठी अफवाह फैलाने और आपराधिक साजिश रचने के आरोप में इन लोगों के खिलाफ चलान किया जाए। 68 में 21 लोगों को आपराधिक साजिश का आरोप सिद्ध हुआ। जिसके अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने 25 साल बाद अपना फैसला सुनाया है।
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता ने क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता एम एल लाहोटी ने भी सीबीआई के पक्ष में बोलते हुए कहा कि इस मामले में जिसे भी गवाई देनी है वो कोर्ट में आकर दें। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार धारा 120B सीआरपीसी के तहत आपराधिक षड्यंत्र के केस में आरोपी षड्यंत्रकारी हैं या नहीं इसके लिए उनके ट्रायल एक ही जगह होगी। इसलिए इस मामले में जितने भी गवाह हैं सभी को एक ही जगह गवाही देनी पड़ेगी कि उनका विवादिच ढांचे को गिराने में कोई रोल नहीं था। उन्होंने कहा कि इस मामले में 500 से ज्यादा गवाह हैं और सभी परस्पर संबंधित हैं इसलिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला बिल्कुल उचित है।
अब क्या होगा…?
बहरहाल, ढांचा किसने गिराया और किसने गिरवाया इसका फैसला तो अभी नहीं हुआ लेकिन 25 साल बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले और राम विलास वेदांती के बयान ने पूरे देश में खलबली मचा दी है। साधु-संत, आरोपी, सीबीआई सभी इस मामले में अपनी-अपनी सफाई पेश कर रहे हैं लेकिन इन सबके बीच राजनैतिक पार्टियों ने अपना सियासी खेल जारी रखा है। आने वाले दिनों में देखना दिलचप्स होगा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश और वेदांती के बयान के बाद इस मामले की अगली सुनवाई में कौन सा नया मोड़ आता है।