दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में पिछले कुछ दिनों से चल रही छात्रों की तल्खी के बीच भारत के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अहम् बयान दिया है। राष्ट्रपति ने कोच्चि के छठे के.एस राजमोनी मेमोरियल लेक्चर को संबोधित करते हुए रामजस कॉलेज में चल रहे विवाद पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि छात्रों और शिक्षकों को ‘हिंसा की संस्कृति को बढ़ावा देने के बजाय तार्किक बहस‘ में भाग लेना चाहिए। उन्होंने आगे बोलते हुए कहा कि यह देखना बहुत ही दुखद है कि छात्र हिंसा और हंगामा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि असहिष्णु भारतीयों के लिए देश में कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
राष्ट्रपति ने देश के विश्वविद्यालयों के प्राचीन और गौरवशाली संस्कृति को बताने के अलावा सामाजिक बुराइयों का जिक्र करते हुए कहा, ‘हमारे शिक्षण संस्थान देश के विकास के पहिए हैं। इन्ही की बदौलत भारत आज एक ज्ञान आधारित समाज बना है। उन्होंने कहा कि ज्ञान के इन मंदिरों में कलात्मकता और आजाद सोच झलकनी चाहिए। स्वतंत्र सोच और बहस पर बोलते हुए महामहिम ने कहा कि हमारा देश पुरातन काल से ही स्वतंत्र सोच और अभिव्यक्ति की धुरी रहा है। हमारा संविधान भी हमें अधिकार देता है। हमें इसे आगे बढ़ाते हुए उचित आलोचना और असहमति को भी जगह देनी चाहिए। देश में असहिष्णु भारतीयों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
दिल्ली विश्वविद्यालय में गुरमेहर कौर के अभियान के बाद बने माहौल पर बोलते हुए मुखर्जी ने कहा कि वह ऐसी किसी समाज या राज्य को सभ्य नहीं मानते, जिसमें महिलाओं के प्रति व्यव्हार असभ्य हो। उन्होंने कहा, जब हम किसी महिला के साथ बर्बर आचरण करते हैं तो अपनी सभ्यता की आत्मा को घायल करते हैं। हमारा संविधान महिलाओं को समान अधिकार प्रदान करता है। हमारी संस्कृति और परंपरा में भी नारियों को देवी माना जाता है। उन्होंने कहा कि देश को यह सोचना चाहिए कि लोकतंत्र के लिए लगातार पोषण की जरूरत होती है। मुखर्जी ने हिंसा फैलाने वालों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि ऐसे लोगों को याद रखना चाहिए कि बुद्ध, अशोक और अकबर इतिहास में नायकों के रूप में याद किए जाते हैं न कि हिटलर और चंगेज खान।