2019 लोकसभा चुनाव की अभी उलटी गिनती शुरू नहीं हुई है…और नेताओं के दल बदलने का सिलसिला शुरू हो गया है….शुरुआत समाजवादी पार्टी नेता नरेश अग्रवाल से हुई है…खत्म कहां होगी…कहना मुश्किल है…यूं तो हर दल अभी से 2019 की तैयारियों में जुट गया है…पर कांग्रेस….समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में बेचैनी ज्यादा देखी जा रही है…मोदी सरकार पर हमले तेज होते जा रहे हैं…मोदी से मुकाबले के लिए गठबंधन बनाने की बातें की जाने लगी हैं…लेकिन ये बातें किस हद तक मुक्कमल हो पाएंगी…कहना मुश्किल है…क्योंकि विपक्ष के रास्ते की बाधा कोई और नहीं…खुद विपक्षी दल ही हैं.
कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों को लगता है कि मोदी सरकार का हाल भी वाजपेयी सरकार की साइनिंग इंडिया की तरह ही होगा…कांग्रेस तो ये मान के बैठी है कि वाजपेयी सरकार की तरह ही जनता मोदी सरकार को भी नकार देगी…अभी दो दिन पहले ही कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने इस तरह का बयान भी दिया था…लेकिन मोदी की सियासत पर नजर रखने वाले…उनकी सियासी सूझबूझ को नजदीक से समझने वालों की माने तो कांग्रेस और विपक्ष की उम्मीदें इस बार उम्मीदें बनकर ही रह जाएंगी….
जनता की नब्ज को टटोलने में दक्ष माने जाने वाले प्रधानमंत्री मोदी इतने कच्चे खिलाड़ी भी नहीं है कि विपक्ष को सत्ता आसानी से सौंप देंगे…ये ठीक है कि मध्य प्रदेश ….राजस्थान जैसे कुछेक राज्यों में उपचुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है…लेकिन त्रिपुरा समेत पूर्वोत्तर के राज्यों में मिली जीत ने बीजेपी के पक्ष में हवा बनाने में अहम भूमिका निभाई है…
पूर्वोत्तर खासकर त्रिपुरा में मिली भारी जीत से बीजेपी कार्यकर्ताओं और नेताओं का उत्साह तो बढ़ा ही है…विपक्ष का विश्वास भी डगमगा गया है…बीजेपी और उसके रणनीतिकारों ने जिस तरह से 25 सालों से त्रिपुरा की सत्ता में जमी वामपंथी पार्टी को सत्ता से उखाड़ फेंका है…उससे विपक्षी दलों की चिंता बढ़ गई है….यूपी उपचुनाव में ऐसा देखने को भी मिला है….एक दूसरे धूर विरोधी रहे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को एक दूसरे से हाथ मिलाने को मजबूर होना पड़ा है…अब इनकी ये दोस्ती कितना रंग लाती है ये तो उपचुनाव के नतीजे बताएंगें….लेकिन इनके गठबंधन से विरोधी दलों का डर…और बीजेपी से अकेले मुकाबला करने में उनकी लाचारी ही नजर आ रही है…
नरेश अग्रवाल जैसे नेताओं का बीजेपी के साथ आना…इस डर और लाचारी का परिणाम ही कहा जा सकता है…ये ठीक है कि किसी भी पार्टी में टिकट के सभी दावेदारों को टिकन नहीं मिल सकता…नरेश अग्रवाल शायद समाजवादी पार्टी को गुडबॉय नहीं भी बोलते…जैसा कि उन्होंने मुलायम सिंह यादव और राम गोपाल यादव के साथ अपने रिश्तों के बारे में बोला भी है…लेकिन उन्हें भी लगता है कि फिलहाल भविष्य बीजेपी के साथ जाने में ही है…हालांकि, नरेश अग्रवाल ऐसे नेता रहे हैं…जिनका पाला बदलने का इतिहास रहा है…फिर भी एसपी छोड़कर बीजेपी का दामन थामने से दूसरे विरोधी दलों के उन नेताओं को एक संदेश तो गया ही है कि अगर मूल पार्टी में बात नहीं बने…तो पाला बदलने के लिए सबसे मुफीद पार्टी बीजेपी ही है…
लोकसभा चुनाव अभी दूर है..पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जैसे जैसे चुनाव नजदीक आएंगे…दल बदलने वाले नेताओं की संख्या भी बढ़ेगी और जिसमें बीजेपी का पलड़ा भारी रहने के ही आसार हैं।
एपीएन ब्यूरो