जानिए कौन हैं Nadaprabhu Kempegowda, जिनकी प्रतिमा का प्रधानमंत्री मोदी ने किया अनावरण

Nadaprabhu Kempegowda जिनको केम्पेगौड़ा के नाम से भी जाना जाता है, विजयनगर साम्राज्य के अधीन एक सरदार थे. नादप्रभु कैम्पेगौड़ा ने 1537 में बेंगलुरु की स्थापना की थी. उन्होंने कर्नाटक के कई हिस्सों में कन्नड़ भाषा में कई शिलालेख बनवाए थे.

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Kempegowda Statue

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज यानी 11 नवंबर से अपने तीन दिवसीय दक्षिण भारत के दौरे पर है. दौरे के पहले चरण में वो आज कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में हैं. इस दौरान उन्होंने बेंगलुरु को बनाने वाले नादप्रभु कैम्पेगौड़ा (Nadaprabhu Kempegowda) की प्रतिमा का अनावरण भी किया. ये भारत में किसी भी शहर के संस्थापक की सबसे ऊंची प्रतिमा है. इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी का ये कर्नाटक दौरा राजनीतिक लिहाज से भी काफी अहम माना जा रहा है, क्योंकि कर्नाटक में 5 महीने बाद यानी मार्च 2023 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.

प्रधानमंत्री कार्यालय की और से बताया गया “नादप्रभु केम्पेगौड़ा (Kempegowda) की 108 मीटर ऊंची कांस्य प्रतिमा बेंगलुरु के विकास की दिशा में शहर के संस्थापक नादप्रभु केम्पेगौड़ा के योगदान की स्मृति में बनाई जा रही है. ये प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी वाले राम वी. सुतार द्वारा संकल्पित और गढ़ी गई और इस प्रतिमा को बनाने में 98 टन कांस्य और 120 टन स्टील का उपयोग किया गया है.”

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कांग्रेस ने उठाये सवाल

लेकिन, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने Kempegowda की मूर्ति के उद्घाटन को लेकर सवाल उठाए हैं. कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डी के शिवकुमार ने सवाल किया कि “कैम्पेगौड़ा की मूर्ति बनाने के लिए सरकारी पैसों का इस्तेमाल क्यों किया गया? उन्होंने कहा कि कैम्पेगौड़ा इंटरनेशनल एयरपोर्ट का जिम्मा बेंगलुरु इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (Bengaluru International Airport Limited) के पास है और उसे ही इस मूर्ति का खर्चा उठाना चाहिए था.”

डी के शिवकुमार ने कहा कि ‘सरकारी पैसे से बनी प्रतिमा को स्थापित करना गलत है. कर्नाटक सरकार ने BIAL को जमीन और धन मुहैया कराई है. उन्होंने आगे कहा कि 4,200 एकड़ जमीन में से 2,000 एकड़ जमीन सिर्फ 6 लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से दी गई थी. उनके पास शेयर भी हैं. इसलिए प्रतिमा को बनाने के लिए BIAL को अपने पैसे का इस्तेमाल करना चाहिए था.’

कौन है नादप्रभु कैम्पेगौड़ा?

नादप्रभु हिरिया केम्पेगौड़ा (Nadaprabhu Kempegowda), जिनको केम्पेगौड़ा के नाम से भी जाना जाता है, विजयनगर साम्राज्य के अधीन एक सरदार थे. नादप्रभु कैम्पेगौड़ा ने 1537 में बेंगलुरु की स्थापना की थी. उन्होंने कर्नाटक के कई हिस्सों में कन्नड़ भाषा में कई शिलालेख बनवाए थे. मोरासु गौड़ा वंश के वंशज, केम्पेगौड़ा को अपने समय के सबसे शिक्षित और सफल शासकों में से एक माना जाता है.

कैम्पेगौड़ा के पिता मोरासू वोक्कालिगा कैम्पेंनंजे गौड़ा के पुत्र थे, जिन्होंने 70 साल से भी ज्यादा समय तक येल्हानकनाडु पर शासन किया था. माना जाता है कि 15वीं सदी में उनका परिवार तमिलनाडु के कांची से कर्नाटक आ गया और विजयनगर साम्राज्य का शासन संभाला. सन् 1513 में कैम्पेगौड़ा ने अपने पिता की विरासत को संभाला था.

लगभग 46 साल तक विजयनगर साम्राज्य पर शासन करने वाले कैम्पेगौड़ा एक बार अपने मंत्री वीरन्ना और सलाहकार गिद्दे गौड़ा के साथ शिकार पर गए थे, तभी उन्होंने एक ऐसे शहर की कल्पना की थी जहां किले, टैंक, छावनी, मंदिर और कारोबार करने की सुविधा हो. कैम्पेगौड़ा ने पहले शिवगंगा रियासत पर जीत हासिल की और बाद में डोम्लूर को भी जीता. मौजूदा समय मे डोम्लूर पुराने बेंगलुरु एयरपोर्ट वाले मार्ग पर स्थित है. कैम्पेगौड़ा ने 1537 में बेंगलुरु किले का निर्माण किया और शहर बसाया. इसके बाद उन्होंने अपनी राजधानी को येलहांका से बेंगलुरु में स्थानांतरित कर लिया.

इसके अलावा केम्पेगौडा ने शहर में पानी आपूर्ति के लिए कई बड़े तालाबों का निर्माण भी करवाया, जोकि आज भी कहीं-कहीं दिखाई देते हैं. सन 1569 में केम्पेगौडा का निधन हुआ. साल 1609 में उनकी एक धातुमूर्ति शिवगंगा स्थित गंगाधरेश्वर मंदिर में स्थापित की गई थी. कर्नाटक सरकार ने केंद्र सरकार को एक प्रस्ताव भेजकर राजा केम्पेगौडा के नाम पर बंगलूरू हवाई अड्डे का नाम रखने का अनुरोध किया गया था जिसको केंद्र सरकार ने मंजूरी दे दी थी.

कैम्पेगौड़ा द्वारा बेंगलुरु में बनाए गए किले में 8 दरवाजे और अंदर दो चौड़ी सड़कें थीं. किले के बाहर चारों ओर चौड़ी खाई भी बनी थी ताकि आक्रमण से बचा जा सके. उन्होंने दूर-दराज के इलाकों से कुशल कारीगरों को भी बेंगलुरु में लाकर बसाया ताकि वो कारोबार कर सकें.

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