छठ पूजा के दौरान महिलाओं की पारंपरिक सजावट में सिंदूर का खास स्थान होता है। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में यह परंपरा प्रचलित है कि नाक से लेकर मांग तक सिंदूर भरा जाता है। इसके पीछे न केवल धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हैं, बल्कि कुछ वैज्ञानिक कारण भी हैं। लाल और नारंगी सिंदूर का अलग महत्व माना जाता है।
हिंदू धर्म में सिंदूर का महत्व
विवाहित महिलाओं द्वारा मांग में सिंदूर लगाना उनके वैवाहिक जीवन की पहचान माना जाता है। यह प्रतीक है पति की लंबी आयु, खुशहाल दांपत्य और समर्पण का। ऐसा माना जाता है कि जितना लंबा सिंदूर, पति की उम्र उतनी ही लंबी होगी।
लाल और नारंगी सिंदूर में अंतर
सामान्य दिनों में लाल रंग का सिंदूर विवाहित महिलाओं के सोलह शृंगारों में शामिल होता है और यह पति के प्रति प्रेम, निष्ठा और समर्पण दर्शाता है। वहीं, छठ पूजा के अवसर पर नारंगी सिंदूर का प्रयोग किया जाता है। नारंगी रंग सूर्य देव का प्रतीक है और छठ महापर्व सूर्य उपासना का पर्व है। इसलिए नारंगी सिंदूर को ऊर्जा, पवित्रता और सकारात्मकता लाने वाला माना जाता है।
नाक से मांग तक सिंदूर लगाने की पौराणिक कथा
इस परंपरा के पीछे एक कहानी प्रचलित है। वीरवान नामक युवक जंगल में बहादुर और प्रसिद्ध था। उसने धीरमति नामक युवती को जंगली जानवरों से बचाया और दोनों साथ रहने लगे। इसी जंगल में कालू नामक व्यक्ति रहता था, जिसे धीरमति और वीरवान का साथ पसंद नहीं था।
एक दिन वीरवान और धीरमति शिकार पर गए, लेकिन कोई शिकार नहीं मिला। धीरमति पानी की तलाश में वीरवान का इंतजार कर रही थी। इस बीच कालू ने हमला कर वीरवान को घायल कर दिया। आवाज सुनकर धीरमति दौड़ी और उसने बहादुरी दिखाते हुए कालू का अंत कर दिया।
वीरवान ने धीरमति की बहादुरी की प्रशंसा की और प्रेम से उसके सिर पर हाथ रखा। हाथ खून से रंगा हुआ था, जिससे धीरमति का माथा और ललाट लाल हो गया। तब से सिंदूर को वीरता, प्रेम और सम्मान का प्रतीक माना जाने लगा। छठ पूजा में नाक तक सिंदूर लगाने का अर्थ पति की लंबी आयु की कामना है।
वैज्ञानिक कारण भी जुड़ा
नाक से माथे तक का क्षेत्र ‘अजना चक्र’ से जुड़ा होता है। इसे सक्रिय करने से मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और ध्यान बढ़ता है। इसलिए नाक से मांग तक सिंदूर लगाने से न केवल धार्मिक बल्कि मानसिक लाभ भी माना जाता है।
महाभारत काल की कथा
महाभारत के अनुसार, जब दु:शासन द्रौपदी के कक्ष में आया, तब उन्होंने शृंगार नहीं किया था। दु:शासन ने उनके बाल पकड़े और सभा में ले जाने की कोशिश की। द्रौपदी बिना सिंदूर लगाए अपने पतियों के सामने नहीं जा सकती थीं। संकट के समय उन्होंने जल्दी से सिंदूर अपने सर पर लगाया, गलती से यह नाक तक लग गया। तब से महिलाएं नाक तक लंबा सिंदूर लगाती हैं, जो सम्मान और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है।
इस तरह छठ पूजा और अन्य धार्मिक अवसरों पर नाक से मांग तक सिंदूर लगाने की परंपरा केवल सजावट नहीं बल्कि प्रेम, सम्मान, सुरक्षा और मानसिक शांति का प्रतीक भी है।









