दिसंबर की बर्फ: खुशी या खतरे की घंटी?

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दिसंबर की बर्फ खतरे का अलर्ट भी है
दिसंबर की बर्फ खतरे का अलर्ट भी है

दिसंबर का महीना बर्फबारी के साथ टूरिस्ट्स के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं लगता। शिमला, मनाली, औली और धनोल्टी जैसे पहाड़ों की बर्फीली रील्स सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं। लेकिन क्या यह बर्फ सिर्फ आनंद का प्रतीक है, या मौसम का कोई गंभीर संकेत भी दे रही है?

दिसंबर की बर्फबारी: चार साल का अंतर

2024 में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे क्षेत्रों में दिसंबर की बर्फबारी ने लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया। शिमला में 9 दिसंबर को पहली बर्फबारी हुई, जबकि पिछले तीन सालों (2021-2023) में दिसंबर सूखा रहा था। 2020 में हल्की बर्फबारी जरूर हुई थी, लेकिन इसके बाद दिसंबर का यह नजारा दुर्लभ हो गया।

बदलते मौसम का प्रभाव

बर्फबारी की असमानता से यह स्पष्ट होता है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पहाड़ी क्षेत्रों में भी साफ नजर आ रहा है। लंबे समय तक सूखा और फिर अचानक बर्फबारी, दोनों ही घटनाएं चिंता का विषय हैं।

2024: सबसे गर्म साल

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, 1901 के बाद 2024 भारत का सबसे गर्म साल रहा।

  • 2024 में औसत तापमान 1991-2020 के औसत से 0.65 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
  • अक्टूबर 2024, 123 वर्षों में सबसे गर्म महीना रहा।
  • वार्षिक तापमान में 2016 और 2024 के बीच 0.11 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई।

ग्लोबल वार्मिंग का असर

यूरोपीय जलवायु एजेंसी कॉपरनिकस के अनुसार, 2024 वह पहला साल था जब वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो गया।

  • 41 दिनों की औसत वृद्धि भीषण गर्मी के दिनों में हुई।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण 3,700 से अधिक लोगों की मौत हुई।
  • 26 मौसम संबंधी घटनाओं ने लाखों लोगों को विस्थापित किया।

भारत में जलवायु परिवर्तन के संकेत

IMD की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के अधिकांश हिस्सों में न्यूनतम तापमान सामान्य से अधिक रहा। जनवरी से मार्च 2024 के दौरान उत्तर भारत में वर्षा सामान्य से कम रही।

  • सर्दियों में उत्तर-पश्चिमी राज्यों में औसत वर्षा 184.3 मिमी रहती है, लेकिन 2024 में यह दीर्घावधि औसत से 86% तक कम रही।
  • रबी फसलों की खेती और उनकी कटाई के लिए यह एक चिंता का विषय बन गया।

कृषि और खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव

सर्दियों में होने वाली वर्षा में कमी ने उत्तर भारत में गेहूं, चना और मटर जैसी रबी फसलों की पैदावार को प्रभावित किया। अगर यही स्थिति जारी रही, तो देश की खाद्य सुरक्षा पर गंभीर असर पड़ सकता है।

वैश्विक स्तर पर बदलाव

  • वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (WWA) के अनुसार, 2024 में 219 मौसम संबंधी घटनाओं की पहचान की गई।
  • सूडान, नाइजीरिया, और चाड में बाढ़ ने 2,000 से अधिक लोगों की जान ले ली।
  • वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ग्लोबल वार्मिंग 2040 या 2050 के दशक की शुरुआत में 2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकती है।

नई चुनौतियों का संकेत

IMD और अन्य एजेंसियों की रिपोर्ट बताती है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अब स्पष्ट और विनाशकारी हो चुका है। यह बर्फबारी केवल आनंद का प्रतीक नहीं, बल्कि प्रकृति की एक चेतावनी भी है। हमें इस खतरे को समझने और टिकाऊ उपाय अपनाने की आवश्यकता है।