उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके आदित्यनाथ योगी विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। योगी के साथ उप-मुख्यमंत्री बनाये गए केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश सिंह भी चुनाव लड़ सकते हैं। चुनाव न लड़ने की स्थिति में नेताओं को विधान परिषद् की सदस्यता लेनी पड़ेगी। ऐसा इसलिए जरुरी है क्योंकि नियमों के मुताबिक पद सँभालने के छः महीने के अन्दर मुख्यमंत्री और मंत्रियों को विधानसभा या विधानपरिषद का सदस्य होना अनिवार्य है।
उत्तरप्रदेश विधानसभा के लिए हाल ही में समाप्त हुए चुनावों में योगी के साथ केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश सिंह प्रत्याशी नहीं थे। तीनो ही नेता अभी किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। योगी जहाँ पहले गोरखपुर से सांसद थे वहीँ केशव फूलपुर से सांसद थे। इसके अलावा दिनेश सिंह लखनऊ के मेयर थे। ऐसे में अब योगी के साथ दोनों अन्य नेताओं को भी चुनाव लड़कर सदस्यता लेनी पड़ेगी।
गोरखपुर में योगी का दबदबा रहा है। वह वहां से लगातार पांच बार सांसद रह चुके हैं। विधानसभा चुनावों में गोरखपुर की 9 सीटों में से बीजेपी 8 जीतने में सफल रही थी। ऐसे में यह माना जा रहा है कि योगी गोरखपुर से चुनाव लड़ सकते हैं। यह आशंका इसलिए भी प्रबल है क्योंकि कैम्पियरगंज सीट से बीजेपी विधायक फ़तेह बहादुर सिंह ने योगी के लिए अपनी सीट छोड़ने का प्रस्ताव दिया है। इसके अलावा गोरखपुर शहर सीट से बीजेपी के विधायक डॉ राधामोहन दास जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचे हैं। वह भी योगी के काफी क़रीबी माने जाते हैं। ऐसे में योगी के चुनाव लड़ने को लेकर अटकलों का बाज़ार गर्म है।
योगी के अलावा केशव प्रसाद मौर्य को भी चुनाव लड़ाया जा सकता है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश विधान परिषद की बात करें तो एक सीट बनवारी सिंह यादव के निधन से रिक्त हुई है। इसके अलावा दूसरी सीट सपा के एमएलसी अंबिका चौधरी के बसपा में शामिल होने से दलबदल कानून के तहत खाली हुई है। अगले साल पांच मई को परिषद की 13 सीटें खाली हो रही है। ऐसे में संभावना यह भी है कि दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य को विधान परिषद सदस्य बनाया जा सकता है। हालांकि यह महज एक आकलन है और आने वाले दिनों में स्थिति ज्यादा स्पष्ट होगी। इन सब के बीच यह लगभग तय है कि योगी चुनाव लड़ कर जीतना पसंद करेंगे।