इस घरती पर कहीं नर्क है तो यहीं है… यहीं है… यहीं है… जी हां, छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के कटनी-गुमला नेशनल हाइवे में इतने गड्ढे है कि इसे नर्क का नजारा नहीं कहें तो क्या कहें। कटनी-गुमला नेशनल हाइवे, सरगुजा जिले के अम्बिकापुर-बतौली और सीतापुर से गुजरती है। लेकिन इसकी हालत ऐसी कि इसे सड़क कहने में भी संकोच होता है। पूरी सड़क ही खुदी पड़ी है। यहां सड़क में गड्ढे नहीं बल्कि गड्ढे में सड़क नजर आ रही है। इस सड़क से सुरक्षित निकल जाने को बड़ी कमयाबी माने तो गलत नहीं होगा।
रोजना इस सड़क से गुजरते वक्त गाड़ियां फंस जाती हैं और फिर लंबा जाम लग जाता है। जब बड़ी गाड़ियों के यहां से गुजरने में पसीने छूट जाते हैं तो छोटी गाड़ियों का क्या होता होगा आप अंदाजा लगा सकते हैं। हैरत की बात है कि ये नेशनल हाइवे है, इस पर दिन-रात हजारों की तदाद में गाड़ियां गुजरती है लेकिन इस सड़क पर नर्क का नजरा हैं और यहां की गड्ढों में यमराज ने डेरा डाला हुआ है। इस जर्जर सड़क की वजह से यहां आए दिन हादसे होते रहते हैं।
दरअसल अक्टूबर 2016 मे आंध्रप्रदेश की नामी सड़क निर्माण कंपनी को इस एनएच में अम्बिकापुर से पत्थलगांव तक के लिए 87 किलोमीटर सडक निर्माण का कार्य मिला था। सड़क बनाने के लिए कंपनी को 427 करोड़ रुपए भी स्वीकृत हुए। टेंडर के मुताबिक 2 साल के भीतर सड़क निर्माण कर लोगों को खस्ताहाल सड़क से निजात दिलाने का अनुबंध हुआ था लेकिन हुआ एकदम उलट। कंपनी ने सड़क को फिर से बनाने के लिए 87 किलोमीटर में से आधी सड़क को उखाड़ तो दिए लेकिन उसके बाद महज 50 मीटर सड़क बनाकर कंपनी फरार हो गई। आलम ये है कि पड़ोसी जिले आध्रंप्रदेश, उड़ीसा और महाराष्ट्र को मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, उत्तरप्रदेश और पूर्वी प्रदेशों के साथ राजधानी दिल्ली तक जोड़ने वाली ये नेशनल हाइवे इतनी दयनीय स्थिति में आ गई है कि यहां से गुजरना किसी जंग लड़ने से कम नहीं। बरसात के दिनों में उखाड़ी गई सड़क के गड्ढों में भारी वाहनों के फंसने से रोजाना घंटों जाम लग रहा है। 87 किलोमीटर तक इस सड़क की स्थिति बेहद दयनीय है। आप कल्पना कीजिए कि जिन लोगों को रोजाना इस सड़क से आना-जाना होता होगा उनकी क्या स्थिति होती होगी। इसी सड़क से होकर रोज करीब 300 स्कूली बच्चे बतोली से अंबिकापुर पढ़ने जाते हैं लेकिन कीचड़ और गड्ढे में अकसर उनकी स्कूल बस फंस जाती है। इसके बाद तो बच्चों और उनके अभिभावकों को बेहद परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
जर्जर सड़क की वजह से रोज-रोज होने वाली परेशानी से अब स्थानीय लोगों के सब्र का बांध टूट रहा है। इस सड़क को बनाने का ठेका जिस कंपनी को मिला था वो तो अपनी हाथ खड़ी कर चुका है ऐसे में ये सड़क कब तक बन पाएगी ये बड़ा सवाल है। गड्ढों और कीचड़ की वजह से बतैली के लोग टापू में फंस गए है। यहां से कहीं भी आना-जाना मुहाल है। परेशान स्थानीय निवासी अब बड़े आंदोलन के मूड में हैं।
पहले जिस नामी कंपनी को सड़क बनाने का ठेका दिया गया था, वो कंपनी तो भाग गई, इसके बाद प्रशासन की दखल पर शासन स्तर पर इस सड़क को लेकर लंबी चर्चा हुई और फिर बरसात के पहले वैकल्पिक व्यवस्था के लिए एक दूसरी कंपनी को सड़क निर्माण का जिम्मा दिया गया। लेकिन पुराने ठेकेदार ने इस बेतरतीब तरह से सड़क को खोद डाला है कि नए ठेकेदार के लिए अभी तक गड्ढो को भर पाना संभव नही हो पाया है। इस बदहाल नेशनल हाइवे की जानकारी छत्तीसगढ़ सरकार को भी है बावजूद इसके स्थानीय अधिकारी मामले की जानकारी बड़े अधिकारी तक पहुंचाने की बात कहकर समस्या से बचने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं।
करीब डेढ़ दशक पहले भी सरगुजा जिले के बतौली और सीतापुर की खराब सड़कों की वजह से यहां के लोग टापू मे बसे होने जैसा महसूस करते थे और आज भी जब देश-प्रदेश में सड़कों के जाल बिछाने के तमाम दावे हो रहें है। तब भी यहां के लोग किसी टापू मे रहने जैसा ही अहसास कर रहें है। छत्तीसगढ़ की रमन सरकार भले ही सूबे में तेज विकास का दावा कर रही है लेकिन जब यहां की सड़कें ही बदहाल है तो विकास का पहिया रफ्तार पकड़े भी तो कैसे। ये सबसे बड़ा सवाल है।
—एपीएन ब्यूरो