मंत्रालयों को किसी भी एफडीआई प्रस्ताव पर विचार करने के लिए अब सिर्फ 60 दिनों का ही वक्त मिलेगा। दरअसल सरकार एफआईपीबी को खत्म कर रही है जिसके बाद मंत्रालयों को एफडीआई प्रस्तावों पर आवेदन देने की तारीख से 60 दिन के भीतर ही निर्णय करना होगा और खारिज किये जाने की स्थिति में औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) की सहमति की आवश्यकता होगी। उल्लेखनीय है कि पिछले महीने 25 साल पुराने विदेशी निवेश के बारे में सलाह देने वाली व्यवस्था एफआईपीबी को समाप्त कर दिया गया था। इसका कारण एकल खिडक़ी के तहत तेजी से मंजूरी देकर अधिक-से-अधिक एफडीआई को आसानी से देश में आकर्षित करना है।
कार्यालय ज्ञापन में वित्त मंत्रालय ने कहा है कि विदेशी निवेश संवद्र्धन बोर्ड एफआईपीबी को समाप्त करने के बाद संबंधित मंत्रालयों को संबद्ध क्षेत्र में विदेशी निवेश की मंजूरी के लिए कार्य आवंटित कर दिए गए हैं। उद्योग मंत्रालय प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एफडीआई प्रस्तावों के निपटारे के लिए संबंधित मंत्रालय के साथ विचार-विमर्श कर विस्तृत दिशा निर्देश जारी करेगा और व्यवहार में निरंतरता और रूख में एकरूपता सुनिश्चित करेगा।
इसमें कहा गया है कि मानक परिचालन प्रक्रिया एसओपी में जरूरत पडऩे पर एफडीआई प्रस्तावों पर मंत्रालय आपस में आसानी से विचार विमर्श कर सकती हैं। जिन एफडीआई आवेदनों पर सम्बंधित मंत्रालय को लेकर संदेह होगा, डीआईपीपी मंत्रालय की पहचान करेगा कि आवेदन को कहां निपटाया जाना है। जरुरत पड़ने पर सम्बंधित मंत्रालय को मंत्रिमंडल की भी मंजूरी लेनी पड़ सकती है।
आपको बता दें कि देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 2016-17 में 9 प्रतिशत बढक़र 43.48 अरब डॉलर रहा। एफडीआई के 5,000 करोड़ रुपए से अधिक के प्रस्ताव को पहले की तरह मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ही मंजूरी देगी।
विदेशी निवेश संवद्र्धन बोर्ड एफआईपीबी के पास लंबित सभी आवेदन चार सप्ताह में संबद्ध मंत्रालय को हस्तांरित किया जाएगा और एफआईपीबी के पोर्टल का जिम्मा आर्थिक मामलों के विभाग से डीआईपीपी को दिया जाएगा। फिलहाल करीब 91 से 95 प्रतिशत एफडीआई स्वतः मार्ग से आता है जबकि रक्षा एवं खुदरा कारोबार समेत केवल 11 क्षेत्रों के लिए सरकार की मंजूरी की जरूरत होती है।