किरायेदार अब नहीं कर सकेंगे मकान मालिक के स्वामित्व पर दावा, सुप्रीम कोर्ट ने दिया ऐतिहासिक फैसला

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किरायेदार अब नहीं कर सकेंगे मकान मालिक के स्वामित्व पर दावा
किरायेदार अब नहीं कर सकेंगे मकान मालिक के स्वामित्व पर दावा

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में मकान मालिकों के अधिकारों को मजबूती देते हुए कहा है कि कोई भी किरायेदार, जिसने किसी संपत्ति को वैध किरायानामे (रेंट एग्रीमेंट) के तहत लिया हो, वह बाद में उस संपत्ति पर मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि वैध किरायेदारी के तहत कब्जा “अनुमति प्राप्त” होता है, न कि “विरोधी कब्जा” (adverse possession)। यह फैसला 1953 से लंबित चल रहे मामले ज्योति शर्मा बनाम विष्णु गोयल में सुनाया गया। जस्टिस जे. के. महेश्वरी और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने यह निर्णय देते हुए निचली अदालतों और दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व आदेशों को पलट दिया।

क्या था मामला
मामला एक दुकान से जुड़ा था जिसे 1953 में किरायेदारों के पूर्वजों ने रामजी दास से किराए पर लिया था। लंबे समय तक किराया रामजी दास और उनके उत्तराधिकारियों को दिया गया। 1953 के रिलीन्क्विशमेंट डीड और 1999 की वसीयत के अनुसार, संपत्ति का स्वामित्व ज्योति शर्मा — जो रामजी दास की बहू हैं — को मिला। उन्होंने अपने पारिवारिक व्यापार के विस्तार के लिए दुकान खाली कराने की मांग की। दूसरी ओर, किरायेदारों ने ज्योति शर्मा के स्वामित्व को चुनौती देते हुए कहा कि संपत्ति वास्तव में रामजी दास के चाचा सुआलाल की थी और वसीयत नकली है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने किरायेदारों के सभी दावों को “आधारहीन” बताया। अदालत ने कहा कि वर्षों तक किराया चुकाना और वैध किरायानामा होना यह साबित करता है कि मकान मालिक और किरायेदार का संबंध कानूनी रूप से स्थापित है। कोर्ट ने कहा, “जो व्यक्ति वैध किरायानामे के तहत संपत्ति का कब्जा स्वीकार करता है, वह बाद में मकान मालिक के स्वामित्व को चुनौती नहीं दे सकता।” अदालत ने 2018 में हुई प्रॉबेट कार्यवाही को भी सही ठहराया और यह कहा कि पत्नी का नाम वसीयत में न होना वसीयत को अमान्य नहीं बनाता।

छह महीने का समय मिला किरायेदारों को
लंबे समय से चली आ रही किरायेदारी को देखते हुए अदालत ने किरायेदारों को छह महीने की मोहलत दी है ताकि वे बकाया किराया चुका सकें और संपत्ति खाली करें। इस निर्णय ने साफ किया है कि किरायेदारी के तहत मिला कब्जा अस्थायी और अनुमति-आधारित होता है, इसलिए किरायेदार विरोधी कब्जे या मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकते।

मकान मालिकों के प्रमुख अधिकार
भारत में किरायेदारी को किराया नियंत्रण अधिनियम और मॉडल टेनेंसी एक्ट, 2020 के तहत नियंत्रित किया जाता है। इसके तहत मकान मालिकों को कई अधिकार दिए गए हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • किराया बढ़ाने का अधिकार: मकान मालिक बाजार दर के अनुसार किराया तय कर सकता है और समय-समय पर उसमें संशोधन कर सकता है। आमतौर पर हर वर्ष किराया 10% तक बढ़ाया जा सकता है।
  • किरायेदार को बेदख़ल करने का अधिकार: अगर किरायेदार रेंट एग्रीमेंट की शर्तों का उल्लंघन करे, संपत्ति को किसी तीसरे व्यक्ति को किराए पर दे, या मालिक को स्वयं संपत्ति की आवश्यकता हो, तो उसे बेदख़ल किया जा सकता है।
  • मरम्मत के लिए अस्थायी कब्जा: अगर किसी संपत्ति में बड़े मरम्मत या रखरखाव कार्य की जरूरत हो, तो मकान मालिक अस्थायी रूप से किरायेदार को बाहर कर सकता है और कार्य पूरा होने के बाद उसे दोबारा संपत्ति उपलब्ध करा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन सभी मकान मालिकों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल बन गया है जो किरायेदारी विवादों से जूझ रहे हैं। यह निर्णय साफ करता है कि किरायेदार वैध रेंट एग्रीमेंट के बावजूद मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकते, जिससे संपत्ति स्वामित्व के अधिकारों की कानूनी सुरक्षा और भी मजबूत हुई है।