होली का पर्व दो दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन पूर्णिमा की रात को होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन रंगों से होली खेली जाती है। होलिका दहन से पहले इसकी पूजा की जाती है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक मानी जाती है। मान्यता है कि इससे समृद्धि और खुशहाली आती है तथा सभी नकारात्मकता और रोगों का नाश होता है।
होलिका दहन पूजा सामग्री (Holika Dahan Puja Samagri)
होलिका दहन की पूजा के लिए कुछ महत्वपूर्ण सामग्रियों की आवश्यकता होती है। इस दिन घर में बनी गुजिया अर्पित करना शुभ माना जाता है। पूजा के लिए आवश्यक सामग्रियां इस प्रकार हैं:
- कच्चा सूती धागा
- नारियल
- गुलाल पाउडर
- रोली
- अक्षत (चावल)
- धूप
- फूल
- गाय के गोबर से बनी गुलरी
- बताशे
- नया अनाज
- मूंग की साबुत दाल
- सप्तधान
- जल से भरा कलश
- हल्दी का टुकड़ा
- एक कटोरी पानी
सभी पूजन सामग्रियों को एक थाली में सजाकर परिवार के सदस्यों के साथ होलिका माता की पूजा करें। इस दिन घर में बने सात प्रकार के पकवानों से भोग अर्पित करने की परंपरा भी है। होलिका दहन देखना शुभ माना जाता है क्योंकि इससे मानसिक नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
Holika Dahan 2025 के शुभ मुहूर्त
- शुभ मुहूर्त: 13 मार्च की रात 11:26 बजे से 14 मार्च की रात 12:30 बजे तक।
- पूर्णिमा तिथि: 13 मार्च को सुबह 10:35 बजे से 14 मार्च को दोपहर 12:23 बजे तक।
- भद्रा काल: 13 मार्च को सुबह 10:35 बजे से रात 11:26 बजे तक। (भद्रा काल में होलिका दहन वर्जित है, इसलिए दहन भद्रा काल समाप्त होने के बाद ही करें।)
होलिका दहन का महत्व
होलिका दहन अच्छाई की जीत और नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने का प्रतीक है। इस दिन होलिका की विधिपूर्वक पूजा कर अग्नि प्रज्वलित की जाती है। होलिका दहन के बाद उसकी राख को घर लाकर तिलक लगाने की भी परंपरा है, जिसे शुभ माना जाता है।
होली से जुड़ी मान्यताएं
फाल्गुन पूर्णिमा के दिन कश्यप ऋषि की पत्नी अनुसूया के गर्भ से चंद्रमा का जन्म हुआ था, इसलिए इस तिथि पर चंद्रमा की विशेष पूजा और अर्घ्य देने का विधान है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा को जल में दूध मिलाकर अर्घ्य देने से रोगों का नाश होता है।
Disclaimer: यह जानकारी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। किसी भी जानकारी को अपनाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ या पुरोहित से सलाह लें।