अक्सर दिनभर हमें खांसी या छींक आती रहती है, लेकिन जब हम सो रहे होते हैं, तो यह समस्या बहुत कम या न के बराबर होती है। क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? इसके पीछे हमारे शरीर की प्राकृतिक प्रक्रियाएं जिम्मेदार हैं। आइए जानते हैं इसके वैज्ञानिक कारण।
- मस्तिष्क की गतिविधि होती है धीमी
जब हम सोते हैं, तो हमारा मस्तिष्क आराम की स्थिति में चला जाता है। दिनभर की तुलना में रात में यह कम संवेदनशील हो जाता है, जिससे छींकने या खांसने की संभावना कम हो जाती है।
- नर्वस सिस्टम का कंट्रोल
हमारे छींकने और खांसने की क्रिया नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) द्वारा नियंत्रित होती है। जब हम सोते हैं, तो पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम सक्रिय रहता है, जो शरीर को आराम देने का काम करता है। यह छींक और खांसी को ट्रिगर करने वाली नर्व्स की संवेदनशीलता को भी कम कर देता है।
- मांसपेशियां हो जाती हैं शिथिल
नींद के दौरान हमारी श्वसन मांसपेशियां और शरीर की अन्य मांसपेशियां शिथिल हो जाती हैं, जिससे खांसी या छींक की प्रतिक्रिया कम हो जाती है।
- बाहरी उत्तेजनाओं की कमी
दिन के समय हम विभिन्न तरह की धूल-मिट्टी, एलर्जी और अन्य कारकों के संपर्क में आते हैं, जो छींक या खांसी को ट्रिगर कर सकते हैं। लेकिन रात में जब हम सोते हैं, तो बाहरी उत्तेजनाओं (जैसे प्रदूषण, तेज गंध, हवा में मौजूद कण) से हमारा संपर्क कम हो जाता है, जिससे छींक और खांसी आने की संभावना भी घट जाती है।
- बलगम का कम संचय
दिन के मुकाबले रात में बलगम का प्रवाह धीमा हो जाता है और यह गले में जमा नहीं होता, जिससे खांसी कम होती है। हालांकि, जिन लोगों को सर्दी-जुकाम या एलर्जी होती है, उन्हें रात में भी खांसी आ सकती है।
तो क्या सोते समय बिल्कुल भी नहीं आती खांसी या छींक?
हालांकि, यह पूरी तरह से संभव नहीं है कि नींद में कभी भी छींक या खांसी न आए। अगर कोई बाहरी उत्तेजना ज्यादा हो, जैसे धूल-मिट्टी, ठंडा माहौल या कोई संक्रमण हो, तो सोते वक्त भी छींक या खांसी आ सकती है, लेकिन यह बहुत कम होती है। सोते वक्त खांसी और छींक इसलिए नहीं आती क्योंकि हमारा मस्तिष्क, नर्वस सिस्टम और श्वसन तंत्र कम सक्रिय हो जाता है। साथ ही, बाहरी उत्तेजनाएं भी कम होती हैं, जिससे छींक और खांसी की संभावना घट जाती है। यह शरीर की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो हमें गहरी और आरामदायक नींद लेने में मदद करती है।