By : Rajeev Sharma
Edited By: Umesh Chandra
Prayagraj Maha Kumbh 2025: तीर्थराज प्रयाग की यात्रा और द्वादश माधवों के दर्शन की महिमा तीर्थराज प्रयाग, जो स्वयं में विश्वभर के तीर्थों का समाहार करता है, एक ऐसी पवित्र भूमि है, जहाँ हर कण में भगवान विष्णु की उपस्थिति अनुभव की जाती है। प्रयागराज की यात्रा केवल एक भौतिक यात्रा नहीं, बल्कि एक आंतरिक यात्रा भी होती है, जो भक्त को भगवान विष्णु के परम धाम तक पहुँचने का मार्ग दिखाती है। द्वादश माधव के दर्शन से जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन, सुख और शांति आती है।
द्वादश माधव के दर्शन का महत्व और उनका साक्षात्कार, जीवन के हर पहलू को दिव्य और शुद्ध करने का एक अद्वितीय साधन है। यही कारण है कि प्रयागराज आने वाले प्रत्येक भक्त का प्रथम लक्ष्य इन माधवों के दर्शन और पूजा में एक विशेष अनुभूति प्राप्त करना है।
कहा गया है- द्वादश माधवमुक्तं यः सर्वपापनिवारिणम्, पूजयित्वा समं भक्त्या मोक्षमार्गं स गच्छति।
अर्थात् जो भक्त द्वादश माधवों की पूजा पूरी श्रद्धा और भक्ति से करता है, वह सर्वपापों से मुक्त होकर मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होता है।
द्वादश माधव के दर्शन तीर्थयात्रियों को सांसारिक कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं और भगवान विष्णु के साथ साक्षात्कार का एक अनुपम अवसर भी प्रदान करते हैं। तो चलिए हमारे साथ कीजिए द्वादश माधव के मानसिक दर्शन-पूजन-
१– प्रयाग त्रिवेणी की पूर्व दिशा में स्थित छतनाग में शंख माधव के बारे में स्कंद पुराण में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। स्कंद पुराण हिन्दू धर्म के प्राचीन और महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। छतनाग स्थित शंख माधव का उल्लेख करते हुए स्कंद पुराण में कुछ श्लोक आते हैं, जिनमें इस स्थान के धार्मिक और पौराणिक महत्व को स्पष्ट रूप से वर्णित किया गया है।
स्कंद पुराण के काशीकांड में छतनाग और शंख माधव के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। विशेष रूप से पद्म पुराण और स्कंद पुराण में छतनाग के बारे में जानकारी मिलती है। शंख माधव का मंदिर यहां भगवान श्री कृष्ण के शंख रूप में प्रतिष्ठित है। श्रद्धालु यहां भगवान कृष्ण के शंख रूप की पूजा कर मोक्ष की कामना करते हैं।
स्कंद पुराण में उल्लिखित है-छतनागे शंख माधवे त्रिवेणी समन्विते, पापमोचने भक्त्यान्नमुद्रां प्राप्यते पदे।
स्कंद पुराण में छतनाग के महत्व को और भी कई श्लोकों के माध्यम से दर्शाया गया है, उनमें से एक यह भी विशेष श्लोक यह भी है-
शंखमालं महेश्वरं त्रिवेणी संगमं यथा, प्रपन्नं शरणं प्राप्तं पुण्यं मोक्षं विन्दति।
अर्थात् जो भी व्यक्ति छतनाग में भगवान शंख माधव के दर्शन करते हुए यहाँ स्नान और पूजा करता है तो उसे पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है। त्रिवेणी संगम के समीप स्थित शंख माधव का मंदिर एक पुण्य तीर्थ है। छतनाग स्थित शंख माधव के विषय में स्कंध पुराण का उल्लेख इसके धार्मिक महत्व को दर्शाते हैं। यह स्थल भगवान श्री कृष्ण के शंख रूप के लिए प्रसिद्ध है। यहां श्रद्धालु गंगा-यमुन संगम के पास पवित्र स्नान करते हैं तथा शंख माधव की पूजा करते हैं। यह स्थान विशेष रूप से पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
२– इसके बाद चलते हैं प्रयागराज के दूसरे माधव चक्र माधव की ओर-
चक्र माधव का मंदिर प्रयागराज के त्रिवेणी संगम के अग्निकोण में स्थित है। इसे अग्नितीर्थ भी कहा जाता है। यह स्थल भगवान श्री कृष्ण के चक्र रूप की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। चक्र माधव की पूजा भक्तों द्वारा श्री कृष्ण के चक्र के रूप में की जाती है, जो भगवान श्री कृष्ण के एक प्रमुख अस्त्र (शस्त्र) का हैं।
स्कंद पुराण में प्रयागराज के अग्निकोण में स्थित चक्र माधव के बारे में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। इसमें इस स्थल के धार्मिक महत्व को बताया गया है, जहां स्नान और पूजा करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह स्थल विशेष रूप से भगवान कृष्ण के चक्र रूप के लिए प्रसिद्ध है, जो उनके शक्तिशाली अस्त्र के रूप में माने जाते हैं।
स्कंद पुराण के काशी खण्ड में वर्णन है- चक्र माधवे त्रिवेणी संगमं अग्नितीर्थे स्थिते।
पापनाशनं पुण्यं मोक्षं सर्वार्थसिद्धिम्।
अर्थात त्रिवेणी संगम के अग्निकोण में स्थित एक पवित्र तीर्थ स्थल चक्र तीर्थ है। यहां स्नान और पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है, पुण्य की प्राप्ति होती है, और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है। चक्रतीर्थ के दर्शन मात्र सम्पूर्ण जीवन के कष्ट समाप्त होते हैं, और आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त होता है।
स्कंध पुराण के अतिरिक्त विष्णु पुराण में भी प्रयाग के चक्र माधव का वर्णन उपलब्ध है-
दरअसल, विष्णु पुराण में भगवान के चक्र को उनके दिव्य अस्त्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसे उन्होंने महाभारत के युद्ध में धृतराष्ट्र के पुत्रों के खिलाफ प्रयोग किया था।
विष्णु पुराण श्लोक आता है- चक्रं पद्मं गदा शंखं श्री कृष्णस्य परमात्मन:, आयुधानि महात्मानं वेधं विश्वरुपं हरिम्।
चक्र माधव प्रयागराज के अग्निकोण (अग्नितीर्थ) में स्थित है और यह भगवान श्री कृष्ण के चक्र रूप से जुड़ा हुआ है। स्कंद पुराण के श्लोक के अनुसार, इस स्थल पर पूजा और स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
३– चक्रमाधव से अब चलते हैं तीर्थराज प्रयाग के गदा माधव की ओर- तीर्थराज प्रयाग के गदा माधव का उल्लेख भी पुराणों में महत्वपूर्ण रूप से किया गया है। गदा माधव का स्थान विशेष रूप से भगवान श्री कृष्ण के गदा रूप से जुड़ा हुआ है। गदा माधव का यह तीर्थ प्रयागराज के त्रिवेणी संगम के पास स्थित है, और यहां भगवान श्री कृष्ण की गदा के रूप में पूजा होती है।
गदा माधव प्रयाग राज का एक महत्वपूर्ण तीर्थ है, यहां भगवान श्रीकृष्ण की गदा के रूप में पूजा की जाती है और यह शक्ति, विजय और न्याय का प्रतीक है।
स्कंद पुराण काशी खण्ड में श्लोक है-
गदायुक्तं महात्मानं त्रिवेणी संगमं स्थितम्, पापनाशं पुण्यं मोक्षं सर्वार्थसिद्धिम्॥”
यह श्लोक इस बात को रेखांकित करता है कि गदा माधव के दर्शन से भक्तों को सभी प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं, विशेष रूप से धार्मिक शुद्धि और आध्यात्मिक मोक्ष।
चक्र माधव के बारे में विष्णु पुराण में उल्लिखित है-
गदायुक्तं महात्मानं कृष्णं चक्रधरं हरिम्-पादयोरस्ति साक्षात्कं विष्णुपदं महात्मनः॥”
अर्थात् भगवान कृष्ण के आयुद्ध के रूप में स्थित यह दिव्य स्थान न्याय और धर्म की जीत का भरोसा देता है। भगवान श्रीकृष्ण का गदा रूप दिव्य है और उनके चरणों में साक्षात विष्णु का पद होता है। यह भगवान के दिव्य रूप का प्रतीक है, जो सम्पूर्ण संसार में न्याय और सत्य का कार्य करते हैं।
गदा माधव का तीर्थ स्थल एक प्रयाग का प्रमुख तीर्थ है, जहां भक्त भगवान श्री कृष्ण की गदा रूप की पूजा करते हैं। इस स्थान के दर्शन करने पर न्याय, विजय, और शक्ति की प्राप्ति होती है।
४– गदा माधव के दर्शन के बाद अब चलते हैं त्रिवेणी से नैतृत्य दिशा में स्थित पद्म माधव के दरबार में- त्रिवेणी संगम के नैतृत्य यानी दक्षिण-पूर्व में स्थित पद्म माधव एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। इसे भगवान श्री कृष्ण के पद्म रूप से जुड़ा हुआ माना जाता है। इस स्थान का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत गहरा है। पद्म का अर्थ कमल है, जो भगवान श्रीकृष्ण की शुद्धता, दिव्यता, और सुख-शांति का प्रतीक है।
स्कंद पुराण में त्रिवेणी संगम से संबंधित विभिन्न तीर्थों का वर्णन किया गया है, और इसमें विशेष रूप से पद्म माधव का भी उल्लेख है। इस स्थान को पद्मरूप और श्री कृष्ण के दिव्य अस्त्र से जुड़ा अस्त्र भी माना गया है।
पद्म माधवे त्रिवेणी संगमं स्थिते, पापमोचने भक्त्यान्नमुद्रां प्राप्यते पदे॥
विष्णु पुराण में पद्म माधव के मंदिर का विशेष उल्लेख नहीं है, फिर भी पद्म के महत्व और भगवान श्रीकृष्ण के पद्म आयुध का वर्णन किया है जो स्कंध पुराण के श्लोक का समर्थन करता है- पद्मं चक्रं गदा शंखं श्रीकृष्णस्य महात्मनः, आयुधानि महात्मानं वेधं विश्वरूपं हरिम्॥”
पद्म माधव के दर्शन-पूजन करने मात्र से भक्तों के पापों का नाश होता है पुण्य की प्राप्ति और मोक्ष मिलता है। यह स्थान शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
५– अब अक्षय वट के पश्चिम में स्थित अनंत महादेव की ओर चलते हैं-
स्कन्दपुराण के प्रयागमहात्म्य में वर्णित है
अक्षयस्य वटस्याथ पश्चिमे दिशि संस्थितम्, माधवं सर्वपापघ्नं सेव्यं देवैर्नमोस्तु ते॥
अर्थात् अक्षय वट के पश्चिम में स्थित अनंत माधव सभी प्रकार के पापों का नाश करने वाले हैं। देवता भी उनकी सेवा करते हैं।
मत्स्य पुराण में अनंत माधव के बारे में उल्लेख है-
त्रिषु तीर्थेषु माधवः सर्वपापप्रणाशकः, अक्षयवृक्षसन्निधौ नित्यं स्थाणुर्मनोहरः।
अर्थात् तीन तीर्थों गंगा, यमुना, और सरस्वती संगम के मध्य माधव भगवान पापों का नाश करने वाले हैं। अक्षय वट के समीप उनकी उपस्थिति स्थायी और मनोहर है।
अनंत माधव अक्षय वट से पश्चिम दिशा में स्थित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह स्थल भगवान विष्णु के माधव रूप का निवास स्थान है। इसे प्रयाग तीर्थ के मुख्य देवताओं में से एक माना गया है। संगम क्षेत्र में अक्षय वट और अनंत माधव का संबंध आत्मा के मोक्ष और स्थिरता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
ऐसी मान्यता है कि अनंत माधव के दर्शन मात्र से मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता है। यह स्थान तप, ध्यान और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए प्रसिद्ध रहा है। अक्षय वट और अनंत माधव का यह संबंध सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से अतुलनीय है।
अनंत माधव भगवान विष्णु के “अनंत” रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो शाश्वतता और अनंत शक्ति का प्रतीक है। संगम के समीप स्थित यह स्थल संपूर्ण जीवन चक्र और मुक्ति की अवधारणा को दर्शाता है।
अनंत माधव की प्रतिमा भगवान विष्णु की अद्वितीय मूर्ति मानी जाती है, जो कालातीत है। संगम क्षेत्र के तीर्थयात्री अक्षय वट के दर्शन के बाद अनंत माधव के दर्शन करना अनिवार्य मानते हैं।
यह विवरण पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं का संगम है, जो इस तीर्थ की महिमा को दर्शाता है।
६– अनंत माधव से अब चलते हैं बिंदू माधव की ओर- मंदिर यह मंदिर प्रयाग संगम के वायव्य दिशा में द्रौपदी घाट के पास स्थित है।
स्कन्दपुराण के प्रयागमहात्म्य में बिंदु तीर्थ की महिमा इस तरह गाई गई है-
बिन्दुतीर्थे स्थितो देवः माधवः पापनाशकः, सर्वतीर्थमयो देवो यत्र गङ्गा सरस्वती॥
अर्थात् बिंदु तीर्थ पर स्थित भगवान माधव पापों का नाश करने वाले हैं। जहाँ गंगा और सरस्वती का संगम होता है, वहाँ वे सभी तीर्थों के स्वरूप में प्रतिष्ठित हैं।
एक अन्य पुराण में कहा गया है-त्रैलोक्यपावनं देवमादौ विष्णुं नमाम्यहम्, बिन्दुमाधवसङ्गे च मुच्यते सकलैः किलैः॥
इस श्लोक का अर्थ है, मैं उस विष्णु को प्रणाम करता हूँ जो तीनों लोकों को पवित्र करने वाले हैं। बिंदु माधव के दर्शन मात्र से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।
बिंदू माधव मंदिर गंगा और यमुना के संगम क्षेत्र के वायव्य में स्थित है। द्रौपदी घाट के समीप यह स्थल एक प्रमुख धार्मिक स्थान है, जिसे विष्णु के बिंदु माधव रूप का निवास माना जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बिंदु माधव का यह स्थान भगवान विष्णु के “तीर्थमय” रूप का प्रतिनिधित्व करता है। इस क्षेत्र को “बिंदु तीर्थ” कहा गया है, क्योंकि यहाँ बिंदु के समान जलकणों के संगम को पवित्र माना गया है। यह संगम स्थल आत्मा के शुद्धिकरण और मोक्ष के लिए अद्वितीय है।
बिंदु माधव भगवान विष्णु के ऐसे रूप हैं जो “सर्व तीर्थमय” माने जाते हैं। उनकी उपासना से तीर्थ यात्रा के समान पुण्य फल प्राप्त होता है।
प्रयाग संगम स्नान के साथ बिंदु माधव के दर्शन अनिवार्य माने जाते हैं। तीर्थयात्री इस स्थान पर विशेष रूप से गंगा स्नान के बाद पूजा-अर्चना करते हैं।ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं कि स्वयं ब्रह्मा ने बिंदु माधव की स्थापना की थी और यहाँ भगवान विष्णु की पूजा की थी। इसीलिए इसे ब्रह्मा द्वारा पवित्र किया गया स्थान माना जाता है।
बिंदु माधव का यह स्थल न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इसका पौराणिक महत्व भी गंगा, यमुना, और सरस्वती के संगम से जुड़ी दिव्यता को रेखांकित करता है।
७ असि माधव : नागवासुकी मंदिर के पास असि माधव मंदिर है।
८– बिंदु माधव तक पहुंचने के बाद हमारी यात्रा मनोहर माधव की ओर मुड़ जाती है। मनोहर माधव प्रयागराज में सूरज कुंड के पास स्थित है और इसे विष्णु के मनोहर रूप के रूप में प्रतिष्ठित माना जाता है। यह स्थल धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
स्कन्दपुराण के प्रयागमहात्म्य मनोहर माधव का मनोहर वर्णन है-
सूरजकुण्डे स्थले शुभ्रे मनोहरः माधवः स्मृतः, दर्शनात्सर्वपापानि नश्यन्ति द्रुतमादरात्॥
अर्थात् सूरज कुंड के पवित्र स्थल पर स्थित मनोहर माधव का स्मरण किया गया है। उनके दर्शन से श्रद्धालु के सभी पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं।
वहीं विष्णुधर्मोत्तर पुराण में कहा गया है कि-
मनोहरं माधवस्य रूपं, सूर्यक्षेत्रे च मोक्षदं ध्रुवम्। पुण्यक्षेत्रं यत्र भक्तजनाः कुर्वन्ति पूजां सकलैः फलैः॥
यानी मनोहर माधव का रूप अत्यंत सुंदर है। यह स्थल सूरज कुंड क्षेत्र में स्थित है और मोक्ष प्रदान करने वाला है। यहाँ भक्तजनों द्वारा की गई पूजा सभी इच्छाओं को पूर्ण करती है।
मनोहर माधव का मंदिर सूर्य देवता के साथ-साथ भगवान विष्णु के अद्वितीय और सुंदर रूप को दर्शाता है। यह स्थान धार्मिक क्रियाओं के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
कुछ ऐसी किवदंतियां हैं कि सूरज कुंड की स्थापना स्वयं सूर्यदेव ने की थी। इस कुंड का पवित्र जल रोगों और दोषों को दूर करने में सक्षम माना गया है। मनोहर माधव इसी क्षेत्र के संरक्षक देवता माने जाते हैं।
मनोहर माधव, भगवान विष्णु का वह रूप हैं जो भक्तों के मन को हरने वाले और शांति प्रदान करने वाले हैं। उनकी उपासना से मनोवांछित फल और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
मनोहर माधव मंदिर का क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक शांति का संगम है। प्रयागराज के सूरज कुंड के समीप होने के कारण यहाँ का वातावरण अत्यंत पवित्र माना गया है।
पौराणिक मान्यता है कि एक बार भगवान सूर्यदेव ने भगवान विष्णु से उनका “मनोहर रूप” देखने की प्रार्थना की थी। इस पर विष्णु ने इसी स्थान पर प्रकट होकर सूर्यदेव को दर्शन दिए। तभी से यह स्थल “मनोहर माधव” के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
प्रयागराज में तीर्थ यात्रा करने वाले भक्तों के मनोरथ, मनोहर माधव का दर्शन करने मात्र से पूरे हो जाते हैं। मनोहर माधव आत्मा को शुद्ध करने और मानसिक शांति प्रदान करने वाला है।
मनोहर माधव का यह स्थल विष्णु भक्ति और सूर्योपासना का अद्वितीय संगम प्रस्तुत करता है। इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व इसे प्रयागराज के प्रमुख धार्मिक स्थलों में स्थान प्रदान करता है।
९- मनोहर माधव के मनोरम दर्शन के बाद चलते हैं प्रयाग त्रिवेणी से ईशान दिशा में शंकर आश्रम के पास स्थित असि माधव की ओर…. असि माधव मंदिर, जो प्रयाग त्रिवेणी के ईशान दिशा में शंकर आश्रम के पास स्थित है, भगवान विष्णु के एक विशिष्ट रूप का प्रतीक है। इसे पवित्र तीर्थ और मोक्षदायी स्थल माना गया है।
स्कन्दपुराण के प्रयागमहात्म्य में बड़े ही रोचक ढंग से वर्णन किया गया है-
ईशानकोणे त्रिवेण्याः पावनं तीर्थमुत्तमम्। असि माधवमासाद्य सर्वपापैः प्रमुच्यते॥
यानी त्रिवेणी संगम के ईशान कोण में स्थित असि माधव का तीर्थ अत्यंत पवित्र और श्रेष्ठ है। यहाँ भगवान विष्णु की उपासना करने से समस्त पापों से मुक्ति प्राप्त होती है।
पद्मपुराण: में असि माधव के बारे में वर्णन है-
असिकुण्डे हरिं स्तौति यो नरः श्रद्धयान्वितः, जीवनमुक्तो भवति विष्णुलोके महीयते॥
अर्थात् जो भक्त असि कुंड के पास भगवान हरि विष्णु की श्रद्धापूर्वक स्तुति करता है, वह जीवन में ही मुक्त होकर विष्णु लोक में स्थान प्राप्त करता है।
असि माधव मंदिर त्रिवेणी संगम के ईशान कोण में स्थित है। इसे “असिकुंड तीर्थ” के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थान विष्णु के “असि माधव” रूप का निवास माना जाता है।
“असि” नाम का संबंध एक पौराणिक नदी या कुंड से है, जो यहाँ बहती थी। इस नदी का जल इतना पवित्र माना जाता था कि इसके संपर्क में आने से सभी प्रकार के पाप और दोष समाप्त हो जाते थे।
त्रिवेणी संगम पर स्नान के बाद असि माधव के दर्शन अनिवार्य माने गए हैं। यह स्थान आध्यात्मिक शुद्धि और मोक्ष के लिए महत्वपूर्ण है।
ऐसा माना जाता है कि एक बार असुरों का संहार करते हुए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से एक तीर्थ का निर्माण किया, जो असि कुंड के रूप में प्रसिद्ध हुआ। इसी स्थान पर उन्होंने असि माधव रूप में भक्तों को दर्शन दिए।
असि माधव की उपासना से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि भक्त को विष्णु लोक में स्थान प्राप्त होता है। इसे मोक्षदायी तीर्थ के रूप में जाना जाता है।
त्रिवेणी संगम के ईशान कोण में होने के कारण यह क्षेत्र ऊर्जा और शांति का अद्वितीय संगम प्रस्तुत करता है। शंकर आश्रम का समीप होना इसे और अधिक पवित्र बनाता है।
असि माधव मंदिर में विशेष रूप से अक्षय नवमी और माघ मेले के समय भक्तों का आगमन होता है। इस दौरान तीर्थ यात्री गंगा स्नान और विष्णु पूजन कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।
१०– प्रयागराज में दसवें माधव के रूप में संकष्ट हर माधव प्रतिष्ठापित हैं- संकष्टहर माधव मंदिर, झूंसी के हंस तीर्थ से पूर्व दिशा में स्थित है। यह भगवान विष्णु का ऐसा रूप है, जो भक्तों के सभी प्रकार के कष्टों को दूर करता है। इस मंदिर का पौराणिक और धार्मिक महत्व स्कंद और पद्म पुराणों में वर्णित है।
स्कन्दपुराण के प्रयागमहात्म्य में कहा गया है-
हंसतीर्थस्य पूर्ये तु संकष्टहर माधवः, दर्शनात् तस्य भक्तस्य नश्यन्ति सकलाः क्लमाः॥
यानी हंस तीर्थ के पूरब दिशा में स्थित संकष्टहर माधव सभी प्रकार के क्लेशों और कष्टों को नष्ट कर देते हैं। उनके दर्शन से भक्तों की सभी परेशानियाँ समाप्त हो जाती हैं।
पद्मपुराण में संकष्टहर माधव की महिमा गान किया गया है-
संकष्टहर माधवस्य स्तवनं भक्तिसंयुतम्, जन्मकोटिप्रभूतं च पापं हन्ति हि तत्क्षणात्।
यानी संकष्टहर माधव की भक्ति और स्तुति से अनेक जन्मों के पाप क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं।
संकष्टहर माधव मंदिर का नाम ही उनके गुणों को प्रकट करता है। “संकष्टहर” शब्द भगवान विष्णु के उस रूप को दर्शाता है, जो अपने भक्तों के सभी दुःखों और संकटों का नाश करते हैं।
संकष्टहर माधव के बारे में कथा प्रचलित है कि एक बार एक साधक ने यहाँ भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की। साधक को घोर संकटों का सामना करना पड़ा, फिर भगवान विष्णु ने “संकष्टहर माधव” रूप में प्रकट होकर उसे संकटों से मुक्त किया। तभी से यह स्थान कष्ट निवारण का प्रमुख स्थल बन गया।
संकष्टहर माधव मंदिर में ध्यान और प्रार्थना करने से मानसिक शांति और समस्याओं का समाधान मिलता है। यहाँ पूजा करने वालों का विश्वास है कि भगवान विष्णु उनकी परेशानियों को हर लेते हैं और उन्हें नई ऊर्जा प्रदान करते हैं।
यहाँ विशेष रूप से संकटमोचन पूजा और विष्णु सहस्रनाम के पाठ का आयोजन होता है। भक्तजन अपनी समस्याओं का समाधान पाने के लिए यह अनुष्ठान करते हैं।
इस मंदिर को संकटमोचन तीर्थ के रूप में जाना जाता है, जहाँ न केवल व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान होता है, बल्कि समाज की सामूहिक समस्याओं को हल करने के लिए भी प्रार्थनाएँ की जाती हैं।
माघ मेला और कुंभ मेले के दौरान इस मंदिर में बड़ी संख्या में भक्तजन आते हैं। विशेषकर वे लोग जो जीवन में कष्टों और बाधाओं का सामना कर रहे होते हैं, यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।
संकष्टहर माधव मंदिर भगवान विष्णु की कृपा और करुणा का अद्वितीय केंद्र है। यह स्थल संकटों से मुक्ति और आत्मिक समाधान पाने का पवित्र स्थान है। यहाँ पूजा करने से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि भक्तों को उनके जीवन की परेशानियों से लड़ने की शक्ति भी प्राप्त होती है।
११– त्रिवेणी संगम की धारा में वेणी माधव ग्यारहवें माधव के रूप में विराजमान हैं- वेणी माधव त्रिवेणी संगम के पवित्र जलधारा में स्थित भगवान विष्णु का दिव्य स्वरूप है। इस स्थान को प्रयागराज के सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण तीर्थों में से एक माना गया है। वेणी माधव के दर्शन और पूजा का विशेष महत्व है, और इसके पौराणिक प्रमाण शास्त्रों में वर्णित हैं।
स्कन्दपुराण के प्रयागमहात्म्य में बताया गया है कि-
त्रिवेणीतीरसंस्थं तं माधवं वेणिसंयुतम्, स्नानेन तस्य तीर्थस्य मुक्तिं याति नरो ध्रुवम्।
मतलब, त्रिवेणी तट पर स्थित वेणी माधव, जो गंगा, यमुना और सरस्वती की धाराओं से युक्त हैं, उनके तीर्थ पर स्नान करने से मनुष्य को निश्चित रूप से मोक्ष प्राप्त होता है।
विष्णुपुराण के मुताबिक-
वेणीतटाकमध्यस्थं माधवं लोकपावनम्, यः पश्यति स पुण्यात्मा विष्णुलोकं स गच्छति।
अर्थात् वेणी माधव, जो त्रिवेणी संगम के मध्य स्थित हैं, लोकों को पवित्र करने वाले हैं। जो भक्त उन्हें देखता है, वह विष्णु लोक को प्राप्त करता है।
दरअसल, वेणी का अर्थ है गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की धाराओं का संगम। वेणी माधव, भगवान विष्णु का वह स्वरूप है जो इन पवित्र नदियों की दिव्यता का प्रतिनिधित्व करता है।
ऐसा माना जाता है कि त्रिवेणी संगम में स्नान करके वेणी माधव की पूजा करने से केवल पापों का नाश नहीं होता, बल्कि भक्त को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने त्रिवेणी में निवास करने की इच्छा व्यक्त की, तो गंगा, यमुना और सरस्वती ने उन्हें अपने प्रवाह के मध्य में स्थान दिया। तब से वेणी माधव त्रिवेणी संगम के मुख्य देवता माने जाते हैं।
वेणी माधव त्रिवेणी की धारा में स्थित एक अदृश्य शक्ति हैं। उनकी मूर्ति या प्रतीक स्थान विशेष रूप से स्थापित नहीं है, क्योंकि उनका स्वरूप त्रिवेणी की धाराओं में ही विलीन माना जाता है।
वेणी माधव का यह स्थल उन तीर्थों में से एक है जहाँ मोक्ष प्राप्ति की प्रबल मान्यता है। गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान कर भगवान विष्णु के इस रूप का ध्यान करने से आत्मा शुद्ध होती है।
वेणी माधव का महत्व विशेष रूप से माघ मेला और कुंभ मेले में देखा जाता है। इन अवसरों पर लाखों भक्त त्रिवेणी संगम में स्नान करके वेणी माधव का स्मरण करते हैं।
यहाँ वेणी माधव की पूजा के दौरान विशेष अनुष्ठानों का आयोजन होता है, जिसमें जलाभिषेक, विष्णु सहस्रनाम पाठ और दान की परंपराएँ शामिल हैं। वेणी माधव त्रिवेणी की धाराओं के माध्यम से यह संदेश देते हैं कि जीवन में संतुलन, शुद्धि और समर्पण से ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। वेणी माधव का यह दिव्य स्थल त्रिवेणी संगम की महिमा और भगवान विष्णु की कृपा का प्रतीक है। उनकी पूजा और त्रिवेणी स्नान से भक्त को आध्यात्मिक संतोष और मोक्ष प्राप्ति का अनुभव होता है। वेणी माधव को प्रयागराज तीर्थ यात्रा का आत्मा स्वरूप माना जाता है।
अक्षय वट के उत्तर में दारागंज घाट के पास आदि वेणी माधव प्रयाग के ग्यारहवें माधव हैं-
आदि वेणी माधव मंदिर प्रयागराज में अक्षय वट के उत्तर और दारागंज घाट के पास स्थित है। यह भगवान विष्णु का वह स्वरूप है जो त्रिवेणी संगम क्षेत्र के मूल और अनादि शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित है। इसे प्रयागराज के प्राचीनतम तीर्थस्थानों में से एक माना गया है।
स्कन्दपुराण के प्रयागमहात्म्य में आदि वेणी माधव की महिमा का गायन है-
अक्षयवटसमिपे च दाराघाटे महानदीम्, आदिमाधवमास्थाय मोक्षं याति नरो ध्रुवम्।
यानी अक्षय वट के समीप और दारागंज घाट पर स्थित आदि माधव की उपासना करने वाला व्यक्ति निश्चित रूप से मोक्ष को प्राप्त करता है।
विष्णुधर्मोत्तर पुराण में आदि वेणी माधव का कुछ तरह वर्णन किया गया है-
आद्यं वेणिमध्ये स्थितं माधवं परमेश्वरम्। तं वंदे सर्वपापघ्नं सर्वलोकैकमंगलम्।
अर्थात् आदि वेणी माधव, जो त्रिवेणी के मध्य स्थित हैं, समस्त पापों को नष्ट करने वाले और समस्त लोकों के कल्याणकारी भगवान विष्णु हैं।
“आदि” का अर्थ है “प्रारंभ”। आदि वेणी माधव को त्रिवेणी संगम क्षेत्र के आदि रूप में माना गया है। यह स्थान गंगा के किनारे दारागंज घाट के पास स्थित है, जो आध्यात्मिक ऊर्जा और प्राचीनता का प्रतीक है।
आदि वेणी माधव की पूजा में गंगा जल और तुलसी पत्र का विशेष महत्व है। यहाँ पर वैदिक मंत्रों और विष्णु सहस्रनाम के पाठ के साथ भक्तजन भगवान विष्णु की आराधना करते हैं। मान्यता है कि जब भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर वेणी माधव के विभिन्न रूपों में प्रकट होने का संकल्प किया, तो उन्होंने अपने आदि स्वरूप को इस स्थान पर स्थापित किया। इसीलिए इसे आदि वेणी माधव कहा जाता है।
आदि वेणी माधव का दर्शन केवल पापों को नष्ट करने वाला नहीं, बल्कि आत्मा को शुद्ध करने वाला भी माना गया है। यहाँ पर मोक्ष की कामना से हजारों भक्त प्रतिवर्ष आते हैं।
आदि वेणी माधव को त्रिवेणी क्षेत्र का सबसे प्राचीन तीर्थस्थल माना गया है। इसके आसपास के क्षेत्र में प्राचीन ऋषि-मुनियों के आश्रम और तपस्थल होने का उल्लेख मिलता है।
प्रयागराज तीर्थ यात्रा में आदि वेणी माधव के दर्शन को यात्रा का प्रथम पड़ाव माना जाता है। यहाँ से यात्रा आरंभ करना शुभ और मोक्षदायक माना गया है।
आदि वेणी माधव भक्तों को यह प्रेरणा देते हैं कि जीवन में आत्मा का शुद्धिकरण और ईश्वर का ध्यान ही मोक्ष का मार्ग है।
आदि वेणी माधव मंदिर भगवान विष्णु के मूल और अनादि स्वरूप का प्रतीक है। यह स्थल न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहाँ की पूजा और दर्शन भक्तों को शांति, पवित्रता और मोक्ष की अनुभूति प्रदान करते हैं।
१२– प्रयाग के बारहवें माधव हैं मूल माधव (अक्षय वट माधव) जो अक्षय वट के दक्षिण में बैठे हैं- इनके बारे में मूल माधव मंदिर, प्रयागराज में अक्षय वट के मूल में स्थित भगवान विष्णु का वह रूप है, जो इस स्थान की प्राचीनता, दिव्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक है। यह तीर्थस्थान अपनी अनोखी पौराणिकता और भक्तिपूर्ण महिमा के लिए प्रसिद्ध है।
स्कन्दपुराण के प्रयागमहात्म्य में वर्णन है कि-
अक्षयस्य वटस्य मूलं यत्र स्थितं हरिः, तं मूलमाधवं भक्त्या संस्मरन् मुक्तिमाप्नुयात्॥
अर्थात् अक्षय वट के मूल में स्थित भगवान हरि (मूल माधव) का स्मरण और भक्ति करने वाला व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है।
विष्णुपुराण: में मूल माधव का ऐसा वर्णन है जिसको पढ़ते या सुनते समय मूल माधव का चित्र आंखों के सामने आ जाता है-
मूलं वटस्य संप्राप्तं माधवं लोकनायकम्। यः पश्यति तं देवेशं स मुक्तो भवति ध्रुवम्॥
अर्थात् अक्षय वट के दक्षिण में स्थित लोकनायक माधव के दर्शन करने वाला व्यक्ति निश्चित रूप से मोक्ष को प्राप्त करता है।
“मूल” का अर्थ है जड़ या आधार। अक्षय वट, जो स्वयं अनश्वरता और शाश्वतता का प्रतीक है, उसके मूल में भगवान विष्णु का निवास यह दर्शाता है कि समस्त सृष्टि की जड़ भगवान विष्णु ही हैं।
अक्षय वट का उल्लेख महाभारत और पुराणों में एक दिव्य वृक्ष के रूप में हुआ है, जो अनादि और अनंत है। इस वृक्ष के मूल में स्थित मूल माधव भगवान विष्णु की अखंड कृपा और ऊर्जा का प्रतीक हैं।
कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने सृष्टि की रचना की, तो उन्होंने इसे स्थायित्व और अखंडता प्रदान करने के लिए अक्षय वट की जड़ में अपने मूल स्वरूप को स्थापित किया। इस स्थान को ध्यान और तपस्या के लिए अत्यंत उपयुक्त माना गया।
मूल माधव की पूजा का मुख्य उद्देश्य जीवन के मूल सिद्धांतों को पहचानना और सृष्टि के साथ अपने संबंध को समझना है। यह तीर्थस्थान आत्मा और प्रकृति के गहरे संबंध को दर्शाता है।
अक्षय वट के दक्षिण में स्थित होने के कारण, यह स्थान ध्यान, साधना और आत्मिक शुद्धि के लिए अद्वितीय माना जाता है।
प्राचीन काल में ऋषि-मुनि अक्षय वट के नीचे तपस्या करते थे। यह माना जाता है कि उनकी तपस्या का फल आज भी इस स्थान की ऊर्जा में महसूस किया जा सकता है।
मूल माधव सृष्टि के प्रतीक के रूप में विराजमान हैं। मूल माधव यह दर्शाते हैं कि सृष्टि की हर रचना का आधार और पालनकर्ता भगवान विष्णु हैं।
यहाँ तुलसी पत्र और गंगा जल के साथ विष्णु सहस्रनाम का पाठ किया जाता है। यह अनुष्ठान विशेष रूप से अक्षय नवमी और माघ मेला के समय महत्वपूर्ण माना जाता है।
माधव यह सिखाते हैं कि जीवन की हर जड़ में ईश्वर की उपस्थिति है। यह स्थान हमें जीवन के गहन अर्थ और उसके मूल सिद्धांतों को पहचानने का अवसर प्रदान करता है।
मूल माधव अक्षय वट के दक्षिण में स्थित भगवान विष्णु का वह रूप है, जो अनश्वरता, अखंडता और शाश्वतता का प्रतीक है। इस स्थान की पूजा और दर्शन से भक्त को आत्मिक शांति, पवित्रता, और मोक्ष प्राप्त होता है। यह तीर्थस्थान आध्यात्मिक गहराई और सृष्टि के मूल स्वरूप का अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है।
प्रयाग संगम के अक्षय वट में दो माधव विराजमान हैं। अंकों की दृष्टि से इनका अंक १३ है लेकिन शास्त्रों ने द्वादश माधव की उपाधि दी है- द्वादश माधव का यह स्वरूप अक्षय वट के नीचे है- इन्हें वट माधव कहते हैं- वट माधव मंदिर, प्रयागराज में अक्षय वट के नीचे स्थित भगवान विष्णु का दिव्य रूप है। इसे भगवान विष्णु की कृपा और वट वृक्ष की पवित्रता के संगम के रूप में देखा जाता है। वट माधव का स्थान और उनकी महिमा, जीवन के स्थायित्व और प्रकृति की अनंत शक्ति का प्रतीक मानी जाती है।
स्कन्दपुराण के प्रयागमहात्म्य का श्लोक है-
वटेः अधस्तात् स्थितो देवो माधवः परमेश्वरः, यः पश्यति तं नरो भक्त्या विष्णुलोकं स गच्छति
यानी वट वृक्ष के नीचे स्थित परमेश्वर माधव के दर्शन से भक्त विष्णु लोक को प्राप्त करता है।
पद्मपुराण में वट माधव की महिमा बड़ी ही मनोरम है-
वटमूले माधवं ध्यायेत् सर्वपापप्रणाशनम्, अक्षयस्य वटस्य छायामधि मोक्षसाधनम्।
इसका अर्थ है कि वट के मूल में स्थित माधव का ध्यान करने से समस्त पापों का नाश होता है और अक्षय वट की छाया में मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
वट माधव का निवास अक्षय वट के नीचे है, जो स्वयं में प्रकृति की अनंतता और भगवान विष्णु की अखंड कृपा का प्रतीक है। वट वृक्ष की जड़ें और इसकी छाया यह दर्शाती हैं कि भगवान विष्णु जीवन के आधार और उसके पोषक हैं।
ऐसा माना जाता है कि वट माधव का दर्शन और पूजा करने से भक्त को न केवल सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी होती है। यहाँ पर ध्यान और साधना से आत्मा को गहन शांति प्राप्त होती है।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने सृष्टि के पालन के लिए अपने विभिन्न रूपों को धारण किया, तो उन्होंने वट वृक्ष को अपनी शक्ति का एक प्रतीक बनाया। वट वृक्ष की जड़ों में वट माधव का वास है, जो जीवन और सृष्टि की स्थिरता का प्रतीक है।
- वट माधव का संबंध मोक्ष प्राप्ति से है। यह माना जाता है कि वट माधव की पूजा के साथ-साथ वट वृक्ष की छाया में ध्यान करने से आत्मा को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।
- वट माधव का स्थान प्रकृति और ईश्वर के बीच के संबंध को दर्शाता है। यहाँ पर वट वृक्ष और भगवान विष्णु की संयुक्त उपासना जीवन के स्थायित्व और संतुलन का प्रतीक है।
- प्रयागराज की तीर्थयात्रा में वट माधव के दर्शन को अत्यंत शुभ माना जाता है। अक्षय वट के नीचे स्थित होने के कारण, यह स्थान तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
- वट माधव के मंदिर में तुलसी दल, गंगा जल, और पीपल के पत्तों के साथ पूजा की जाती है। यहाँ “विष्णु सहस्रनाम” और “वट स्तुति” का पाठ विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।
- वट माधव का स्थान ध्यान और योग साधना के लिए आदर्श है। भक्तजन यहाँ बैठकर भगवान विष्णु का ध्यान करते हैं और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं।
- वट माधव मंदिर भगवान विष्णु के उस स्वरूप का प्रतीक है, जो प्रकृति की अनंतता और सृष्टि की स्थिरता को दर्शाता है। अक्षय वट के नीचे स्थित यह स्थान न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का पवित्र द्वार भी है। वट माधव की पूजा और ध्यान से भक्त को पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
प्रयागराज, जहाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का त्रिवेणी संगम होता है, धर्म, संस्कृति, और आध्यात्मिकता का अद्वितीय केंद्र है। यहाँ स्थित द्वादश माधवों का प्रत्येक रूप भगवान विष्णु की दिव्यता और सृष्टि के विभिन्न पहलुओं को दर्शाता है। इन तीर्थों का दर्शन न केवल पवित्रता प्रदान करता है, बल्कि मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
द्वादश माधवों की यह परिक्रमा, प्रयागराज के धार्मिक और ऐतिहासिक वैभव की गहरी झलक देती है। इनके दर्शन और पूजा से जीवन में संतुलन, सुख-शांति और परमात्मा से निकटता का अनुभव होता है।
माधव द्वादश रूपाणि प्रयागे तीर्थसंचये, यः सेवते मनोभक्त्या स याति विष्णुसंनिधिम्।
यानी प्रयागराज के तीर्थों में स्थित भगवान माधव के द्वादश रूपों की भक्तिपूर्ण सेवा करने वाला व्यक्ति भगवान विष्णु की समीपता को प्राप्त करता है।
द्वादश माधव यात्रा केवल तीर्थयात्रा नहीं, बल्कि आत्मा की आध्यात्मिक यात्रा है। यह हमें भगवान विष्णु की कृपा से जोड़ती है और सिखाती है कि सच्ची भक्ति और श्रद्धा ही जीवन का परम उद्देश्य है।