श्राद्ध में कौवे को भोजन करवाना क्यों माना जाता है जरूरी, जानें इसकी वजह
गरुड़ पुराण के अनुसार कौवा यमराज का संदेश वाहक है
कौआ यम का यानी यमराज का प्रतीक होता है
पितृपक्ष के दौरान अन्न जल का भोग कौए के माध्यम से लगाते हैं
कौए को भोजन कराना अपने पितरों तक भोजन पहुंचाने के समान है
मान्यता है कि कौवे को निवाला दिए बिना पितृ संतुष्ट नहीं होते हैं
इसीलिए पितृपक्ष में हर परिवार अपने पितरों को खुश करने का प्रयास करते हैं
कौवों के रूप में भोजन करने आए पितृ हमें कई तरह के संकेत देने का प्रयास करते हैं
वे हमारी जिंदगी में आने वाले शुभ और अशुभ से फलों से भी सावधान भी करवाते हैं
पितृ पक्ष में कौवे को भोजन करवाने की प्रथा श्रीराम जी के युग यानी त्रेता युग से भी जुड़ी हुई है
इंद्र पुत्र जयंत ने कौए का रूप धारण कर माता सीता के पैर में चोंच मारी थी
भगवान श्रीराम ने तिनके का बाण चलाकर जयंत की आंख फोड़ दी थी
जब उसने इस कृत्य के लिए क्षमायाचना की उन्हें वरदान मिला कि तुम्हे अर्पित किया भोजन पितरों को मिलेगा
तभी से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की पररंपरा चली आ रही है
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