छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से हो जाती है
पौराणिक कथाओं के मुताबिक छठी मैया ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं
ये सूर्य देव की बहन भी मानी जाती हैं
छठ व्रत में षष्ठी मैया की पूजा की जाती है, इसलिए इस व्रत का नाम छठ पड़ा
पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना करने के लिए खुद को दो भागों में बांटा
जिसमें दाएं भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया
माना जाता है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक अंश को देवसेना कहा जाता है
चूंकि प्रकृति का छठ अंश होने की वजह से देवी का एक नाम षष्ठी भी है
जिन्हें छठी मैया के नाम से जानते हैं
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियंवद बहुत दिनों तक कोई संतान नहीं हुआ
प्रियंवद की पत्नी मालिनी को पुत्र की प्राप्ति तो हुई, लेकिन वह मृत था
प्रियंवद अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए और वहां पुत्र वियोग से प्राण की आहुति देने लगे
उसी वक्त ब्रह्माजी की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और कहा कि वे षष्ठी माता हैं
षष्ठी माता ने कहा उनकी पूजा करने से पुत्र की प्राप्ति होगी
जिसके बाद उन्हें तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई
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