वियतनामी बौद्ध भिक्षु Thich Nhat Hanh का 95 साल की उम्र में निधन

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Thich Nhat Hanh has passed away at the age of 95
Thich Nhat Hanh has passed away at the age of 95

विश्व प्रसिद्ध वियतनामी बौद्ध भिक्षु, शांति कार्यकर्ता, कवि और आध्यात्मिक नेता थिच नहत हान्हा (Thich Nhat Hanh) का शनिवार रात 95 साल की उम्र में वियतनाम में निधन हो गया। उन्होंने साल 1960 के दशक में हुए अमेरिका वियतनाम युद्ध का कड़ा विरोध किया था। शांति कार्यकर्ता थिच नहत हान्हा ने ह्यू में तू हिउ मंदिर में आखिर सांस ली। उन्हीं के अधिकारिक ट्वटिर हैंडल से ट्वीट कर बताया गया कि हमारे प्रिय शिक्षक थिच नहत अब इस दुनिया में नहीं रहे। उनका वियतनाम के ह्यू में तू हिउ मंदिर में रात 12 बजे निधन हो गया।

Thich Nhat Hanh के संदेश

Thich Nhat Hanh
Thich Nhat Hanh

थिच नहत हान ने फ्रांस में मठवासी संगठन प्लम विलेज की स्थापना की थी। इस संगठन की वेबसाइट पर उनके निधन की खबर दी गई है। हान ने उसी मंदिर में आखिरी सांस ली, जहां से उन्होंने अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू की थी। उन्होंने विश्व शांति के लिए दशकों तक काम किया। उन्हें पश्चिमी देशों में बौद्ध धर्म के अग्रदूत के रूप में जाना जाता था। 2013 में एक व्याख्यान में उन्होंने कहा था कि सुख व दुख की कलाएं हमेशा एक साथ चलती हैं, हमें दुख या पीड़ा का अच्छे से इस्तेमाल करते आना चाहिए, ताकि आनंद व खुशी पैदा की जा सके।

Thich Nhat Hanh, influential Zen Buddhist monk, dead at 95
Thich Nhat Hanh, influential Zen Buddhist monk, dead at 95

हान्ह सात भाषाएं जानते थे। उन्होंने 1960 के दशक के आरंभ में अमेरिका की प्रिंसटन व कोलंबिया यूनिवर्सिटी में व्याख्यान दिया था और 1963 में वियतनाम लौटे और अमेरिका-वियतनाम के बीच 1963 के युद्ध के खिलाफ बढ़ते विरोध का नेतृत्व किया था। इस दौरान कई बौद्ध भिक्षुओं ने आत्म दाह कर लिया था। 1975 में उन्होंने एक लेख में कहा था कि ‘मैंने कम्युनिस्टों व कम्युनिस्ट विरोधियों को एक दूसरे की हत्याएं करते व तबाह करते देखा था, क्योंकि ये मानते हैं कि सत्य पर उनका ही एकाधिकार है। मेरी आवाज को बमों व मोर्टारों के शोर में गुम कर दिया गया।’

Thich Nhat Hanh ने अमेरिका की यात्रा की

Thich Nhat Hanh
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प्लम विलेज के अनुसार, थिच नहत हान ने 1961 में प्रिंसटन विश्वविद्यालय में तुलनात्मक धर्म सिखाने के लिए अमेरिका की यात्रा की। उस दशक के बाद, उन्होंने कॉर्नेल और कोलंबिया विश्वविद्यालय में व्याख्यान दिया, जहां उन्होंने शांति का संदेश फैलाना जारी रखा और वियतनाम युद्ध को समाप्त करने के लिए पश्चिमी नेताओं की पैरवी की।

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