Hardeep Puri बोले- भारतीयों को पेट्रोल, डीजल मुहैया कराना हमारा ‘नैतिक कर्तव्य’, जानिए India की बाहरी कच्चे तेल पर कितनी है निर्भरता

Hardeep Puri ने कहा कि जब हंगरी, चीन और जापान तथाकथित आर्थिक प्रतिबंधों के बाद भी तेल खरीद सकते हैं तो भारत क्यों नहीं? उन्होंने कहा कि 31 मार्च 2022 को खत्म हुए वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत द्वारा किए गए कुल तेल आयात का 0.2 फीसदी ही रूस से लिया गया था.

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Hardeep Puri बोले भारतीयों को पेट्रोल, डीजल मुहैया कराना हमारा 'नैतिक कर्तव्य', जानिए India की बाहरी कच्चे तेल पर कितनी है निर्भरता - APN News
Hardeep Pur in In CNN Interview

मंगलवार 1 नवंबर को अमेरिकी चैनल सीएनएन (CNN) को दिये गये केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी (Hardeep Puri) के एक इंटरव्यू को लेकर खासी चर्चा हो रही है. इंटरव्यू में पुरी ने कहा कि यह हमारा नैतिक कर्तव्य है कि हम अपने 130 करोड़ नागरिकों को पेट्रोल, डीजल और गैस की आपूर्ति करें. उन्होंने कहा कि रूस से तेल खरीदने को लेकर किसी भी प्रकार का कोई दबाव नहीं है ओर न ही वो दबाव में आएंगे.

इंटरव्यूवर ने जब पुरी से पूछा कि क्या रूस से तेल खरीदने को लेकर भारत पर किसी तरह का कोई नैतिक दबाव नहीं है? इसका जवाब देते हुए पुरी ने कहा कि निसंदेह इसको लेकर किसी तरह का भी कोई कूटनीतिक विवाद नहीं है.

पुरी ने कहा कि जब हंगरी, चीन और जापान तथाकथित आर्थिक प्रतिबंधों के बाद भी तेल खरीद सकते हैं तो भारत क्यों नहीं? उन्होंने कहा कि 31 मार्च 2022 को खत्म हुए वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत द्वारा किए गए कुल तेल आयात का 0.2 फीसदी ही रूस से लिया गया था.

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क्यों हो रही है चर्चा?

इस समय फरवरी से जारी यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध के कारण अमेरिका और पश्चिमी देशों (यूरोप – अमेरिका और सहयोगी) ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं. जिसके बाद से भारत पर लगातार रूस से कम या बिलकुल कच्चा तेल न खरीदने का दबाव बनाया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि रूस से जितना तेल भारत तीन महीने में खरीदता है, उतना तेल यूरोप एक दिन में खरीद लेता है. पुरी ने कहा की रूस से भारत सबसे ज्यादा तेल नहीं खरीद रहा है बल्कि आज भी भारत सबसे ज्यादा तेल इराक से खरीदता है.

पुरी ने कहा कि भारत में प्रतिदिन 60 मिलियन (6 करोड़) लोग पेट्रोल पंपों पर से तेल भराते हैं और उन्हें तेल किफायती दाम में मिले इसके लिए भारत सरकार ने अपना राजस्व कम करते हुए तेल पर लगे कर (Tax) में कटौती करती है.

तेल खरीद में सरकार का कोई हाथ नहीं

जब इस बात को लेकर सवाल पुछा गया कि क्या तेल खरीद में सरकार का कोई हाथ नहीं है? इसके जवाब में पेट्रोलियम मंत्री ने कहा कि कच्चे तेल के आयात में सरकारी एजेंसी ओएनजीसी का कोई हाथ नहीं है. पुरी ने कहा कि तेल का व्यापार पूरी तरह से प्राइवेट कंपनियां करती हैं और वो किसी X या Y देश को देख कर नहीं, बल्कि जहां तेल उपलब्ध है वहां से खरीदती हैं. एक उदाहरण देते हुए पुरी ने कहा कि पिछले साल भारत ने अमेरिका से कुल 20 अरब डॉलर (लगभग 1.5 लाख करोड़) का तेल आयात किया था जो ओपेक देशों से हो रहे कुल आयात का 50 फीसदी है. इससे स्पष्ट है कि हम तेल या गैस वहां से खरीदेंगे जहां उपलब्ध रहेगा.

जब चीन और जापान खरीद सकते हैं तो भारत क्यों नहीं?

एंकर ने जब पछा की क्या भारत रूस से तेल आयात को फिलहाल रोक सकता है? इसको लेकर पुरी ने कहा कि अगर भारत या कोई अन्य देश रूस से तेल नहीं खरीदता है तो रूस का तेल बाजार से बाहर हो जाएगा. इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की मांग में और तेजी आएगी और कच्चे तेल की कीमत प्रति बैरल 200 डॉलर को पार कर जाएगी.

पुरी ने कहा कि भारत इस समय दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा अर्थव्यवस्था वाला देश है. भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है ओर तेल की कीमतों में इजाफा होने के दो परिणाम हो सकते हैं, पहला महंगाई बढ़ने के साथ मंदी आ सकती है वहीं दूसरा- हमें हरित ऊर्जा (Green Energy) के माध्यम से अपनी जरूरत को पूरा करना होगा. पुरी ने कहा कि कच्चे तेल पर निर्भरता को कम करने के लिए भारत ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में काफी काम कर रहा है.

मंत्री पुरी ने आगे कहा कि भारत पहला देश है, जिसने दुनिया को बताया कि सौर ऊर्जा की लागत को कम किया जा सकता है. ओर किफायती ऊर्जा के लिए भारत ने कई महत्वाकांक्षी और व्यापक रूप से ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट स्थापित किए हैं. भारत एथेनॉल से तेल उत्पादन को लेकर भी काम कर रहा है.

भारत ओर कच्चा तेल

5 अक्टूबर 2022 को दो साल के बाद ऑस्ट्रिया के वियना स्थित मुख्यालय में आयोजित हुई तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक और सहयोगी देशों (OPEC+) के ऊर्जा (Energy) मंत्रियों की बैठक में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी लाने के लिए कच्चे तेल के उत्पादन में बड़ी कटौती करने का फैसला लिया था. इस कदम को कोरोना महामारी से जूझ रही वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक और झटके रुप में देखा जा रहा है.

ओपेक देशों द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन को घटाने का फैसला भारत के लिए काफी महत्व रखता है. भारत अपनी जरूरत का 70 फीसदी कच्चा तेल ओपेक देशों से ही आयात करता है. हालांकि भारत द्वारा ओपेक से तेल आयात में लगातार कमी देखी जा रही है.

भारत के लिए कच्चे तेल की कीमतों में प्रति बैरल 1 डॉलर की बढ़ोतरी से भारत के चालू खाते घाटे पर करीब 1 अरब डॉलर (8,000 करोड़ रुपये) का प्रभाव पड़ता है.

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है, और 2021-22 (वित्त वर्ष 2021-22) तक कच्चे तेल की अपनी कुल मांग का 85 फीसदी आयात से पूरा करता है.

तेल मंत्रालय के पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ (PPAC) के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022 में भारत का आयात बिल लगभग दोगुना होकर 119.2 बिलियन डॉलर हो गया. जो 2020-21 में 62.2 बिलियन डॉलर से लगभग दोगुना है.

पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ के अनुसार, भारत ने 2021-22 में 212.2 मिलियन टन कच्चे तेल का आयात किया, जो पिछले वर्ष के 196.5 मिलियन टन से ज्यादा है.

भारत ने 2022 वित्तीय वर्ष में 202.7 मिलियन टन पेट्रोलियम उत्पादों की खपत की, जो पिछले वर्ष में 194.3 मिलियन टन थी. इसी तरह, देश ने 2021-22 में आयातित 32 बिलियन क्यूबिक मीटर एलएनजी पर 11.9 बिलियन डॉलर खर्च किए, वहीं पिछले वर्ष 33 बीसीएम गैस के आयात पर 7.9 बिलियन डॉलर खर्च किए गए थे.

कच्चे तेल के दामों में बढ़ोतरी से भारत की सरकारी तेल कंपनियों पर पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाने का दबाव बनेगा. इससे पहले रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते जब कच्चे तेल के दाम बढ़े थे तो सरकारी तेल कंपनियों ने पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाने का निर्णय लिया था. लेकिन अब कई महीनों से भारत में तेल के दामों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है. घरेलू उत्पादन में लगातार गिरावट के कारण भारत की आयात निर्भरता बढ़ी है.

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