Chattisgarh:विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की दूसरी महत्वपूर्ण रस्म Dairy Gadai का समापन

0
645
डेरी गड़ाई का समापन
डेरी गड़ाई का समापन

Chattisgarh:विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा की दूसरी महत्वपूर्ण रस्म डेरी गड़ाई (Dairy Gadai) रस्म की अदायगी सीरासार भवन में की गई। करीब 700 वर्षों से चली आ रही इस परम्परा के अनुसार बिरिंगपाल से लाई गई सरई पेड़ की टहनियों को एक विशेष स्थान पर स्थापित किया गया।

आपको बता दें कि विधि-विधान पूर्वक पूजा अर्चना कर इस रस्म कि अदायगी के साथ ही रथ निर्माण के लिए माई दंतेश्वरी से आज्ञा ली गई। इस मौके पर जनप्रतिनिधियों सहित स्थानीय लोग भी बड़ी संख्या मे मौजूद रहे। इस रस्म के साथ ही विश्व प्रसिध्द दशहरा रथ के निर्माण की प्रक्रिया आरम्भ करने के लिए लकड़ियों का लाना शुरू हो जाता है।

कोविड-19 की वजह से भीड़ पर नियंत्रण

वहीं, बस्तर सांसद ने ये अपील कि है कि पिछले 2 साल से कोविड-19 (Covid-19) की वजह से भीड़ को नियंत्रण कर के दशहरा संपन्न करवाया जा रहा है। उनका कहना है कि इस वर्ष भी खतरा टला नहीं है तीसरी लहर की आने की संभावना बनी हुई है, इस लिए इस वर्ष भी भीड़ को नियंत्रण करते हुए सभी रश्मो को निभाते हुए दशहरा सम्पन्न करवाया जाएगा।

राज्य के जगदलपुर के सिरासार भवन मे दशहरा पर्व की दूसरी बड़ी रस्म डेरी गड़ाई की अदायगी की गई। रियासत काल से चली आ रही है। इस रस्म में परम्परानुसार डेरी गड़ाई के लिए बिरिंगपाल गांव से सरई पेड़ की टहनियां लाई जाती हैं। इन टहनियों को पूजा कर पवित्र करने के पश्चात लकड़ियों को गाड़ने के लिए बनाए गए गड्ढों में अंडा व् जीवित मछलियां डाली जाती हैं। इसके बाद टहनियों को गा़ड़ कर इस रस्म को पूरा किया जाता है।

700 वर्षों से चली रही आ रही परंपरा

इसके साथ ही माई दंतेश्वरी से विश्व प्रस्सिद्ध दशहरा रथ के निर्माण प्रक्रिया को आरम्भ करने कि इजाजत ली जाती है। मान्यताओ के अनुसार इस रस्म के बाद से ही बस्तर दशहरे के लिए रथ निर्माण का कार्य शुरू किया जाता है। करीब 700 वर्ष पुरानी इस परंपरा का निर्वाह भी पूर्ण विधि विधान के साथ किया जा रहा है।

रियासत काल से चली आ रही बस्तर दशहरा कि इन परम्पराओं का निर्वाह आज भी बखूभी किया जा रहा है। डेरी गड़ाई कि इस रस्म कि अदायगी के बाद परंपरा के अनुसार माचकोट जंगलों से लाई गई लकड़ियों से रथ निर्माण का कार्य प्रारम्भ होगा। माई दंतेश्वरी के मुख्य पुजारी के अनुसार दशहरा पर्व 75 दिनों तक चलने वाला एक मात्र पर्व है। इसकी सभी रस्मे महत्वपूर्ण हैं।

अब डेरी गड़ाई के बाद काछनगादी की रस्म निभाई जाएगी। इसमें मिरगान जाती की नाबालिक बच्ची पर काछन देवी सवार होती हैं। बस्तर के राजा देवी से दशहरा पर्व मनाने की अनुमति लेते हैं जिससे बस्तर का यह पर्व निर्बाध्य रूप से मनाया जा सके।

ये भी पढ़ें- छत्तीसगढ़: कोरोना से बचने के लिए महुआ में होम्योपैथिक कफ सिरप मिला कर किया सेवन, एक ही परिवार के 8 युवकों की मौत

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here