उत्‍तराखंड की कला और संस्‍कृति की झलक है Kumaoni और Garhwali Ramleela

Ramleela: दिल्‍ली के बुराड़ी, कौशिक एंक्‍लेव, किराड़ी- प्रताप विहार, गाजियाबाद और द्वारका में कुमाऊंनी और गढ़वाली रामलीलाओं का मंचन शुरू हो गया है।

0
257
Ramleela: Kumaoni Ramleela top news hindi
Ramleela

Ramleela: दिल्‍ली में आज से नवरात्र के साथ ही रामलीलाओं की शुरुआत भी हो चुकी है।पूरे 2 साल बाद नए कलेवर में रामलीलाओं का मंचन किया जा रहा है। बात दिल्‍ली की रामलीलाओं का हो तो कुमाऊंनी और गढ़वाली रामलीलाओं को भला कैसे भूल सकते हैं।दिल्‍ली के बुराड़ी, कौशिक एंक्‍लेव, किराड़ी- प्रताप विहार, गाजियाबाद और द्वारका में कुमाऊंनी और गढ़वाली रामलीलाओं का मंचन शुरू हो गया है।

इन रामलीलाओं की खासियत है इनमें दिखने वाली उत्‍तराखंड की सुंदर कला एवं संस्‍कृति। इस रामलीला में लीला की शास्त्रीय और कलात्मक पक्ष पर कलाकारों का ज्यादा जोर रहता है। मसलन गोस्‍वामी जी द्वारा रचित छंद, दोहों और कथानक को ध्‍यान में रखते हुए कलाकार भूमिका निभाते हैं।

Latest Update News on Kumaoni and Garhwali Ramleela.
Ramleela:

Ramleela: पहाड़ से लेकर अब दिल्‍ली-एनसीआर में भी हुआ प्रसार

Ramleela: कुमाऊं अंचल की रामलीला अधिकतर गीत-नाट्य शैली में प्रस्तुत की जाती है। जिसमें कलाकार मौखिक परंपरा पर आधारित भूमिका करते हैं।यहां की रामलीला पीढ़ी दर पीढ़ी समाज में रचती-बसती रही है।कुमाऊनी रामलीला मुख्‍यत पहाड़ी क्षेत्र से शुरू होकर आज दिल्‍ली-एनसीआर में भी होने लगी है।

रामलीला से जुड़े लोग बताते हैं कि आज से करीब 8 दशक पूर्व पहाड़ी इलाकों में आवागमन, संचार और बिजली आदि की सुविधाएं बहुत सीमित मात्रा में थीं। उस समय रामलीला का मंचन रात को मशाल, लालटेन और पैट्रोमैक्स और चीड़ के छिलुकों यानी बिरोजा युक्त लकड़ी की रोशनी में किया जाता था।कुछ जगहों पर दिन के उजाले में भी रामलीला का मंचन होता था।

Ramleela: 20वीं सदी की शुरुआत तक गढ़वाल में भी होने लगा मंचन

Ramleela: Kumaoni Ramleela ki top news toady.
Ramleela.

Ramleela: 20वीं सदी के शुरुआती वर्षों में कुमाऊं के अलावा गढ़वाल अंचल के भी कुछ स्थानों में रामलीला का मंचन होने लगा था। पौड़ी नगर में सर्वप्रथम 1906 में स्व. पूर्णानंद त्रिपाठी, डिप्टी इन्सपेक्टर के सहयोग से रामलीला के आयोजन किया गया। उत्‍तराखंड के इतिहास और संस्कृति के जानकार डॉ. योगेश धस्माना ने अपने रामकथा मंचन और पर्वतीय रामलीला नामक आलेख में श्री बाबुलकर के कथन और लोक प्रचलित मान्यता को आधार मानकर लिखा है कि देवप्रयाग में 1843 में रामलीला खेली गई।

कुमाऊनी रामलीला के संदर्भ में एक विशेष बात यह भी रही कि अल्मोड़ा नगर में 1940-41 के दौरान विख्यात नृत्य सम्राट पं. उदयशंकर ने भी रामलीला का मंचन किया।रामलीला में उन्होंने छाया चित्रों के माध्यम से नवीनता लाने का प्रयास किया। हांलाकि पं. उदयशंकर द्वारा प्रस्तुत रामलीला कुमाऊं की परंपरागत रामलीला से कई मायनों में अलग थी, लेकिन उनके छाया चित्रों, अभिनय, उत्कृष्ट संगीत व नृत्य की छाप अल्मोड़ा नगर की रामलीला पर अवश्य पड़ी।

Ramleela: सर्वप्रथम अल्‍मोड़ा से शुरू हुआ रामलीला का सफर

Ramleela: कुमाऊं अंचल में रामलीला मंचन की परम्परा अल्मोड़ा से विकसित होकर बाद में आसपास के अनेक स्थानों में चलन में आई।अपने शुरुआती दौर में सतराली, पाटिया, नैनीताल ,पिथौरागढ, लोहाघाट ,बागेश्वर, रानीखेत, भवाली, भीमताल, रामनगर हल्द्वानी और काशीपुर के अलावा पहाड़ी प्रवासियों द्वारा आयोजित मुरादाबाद, बरेली, लखनऊ व दिल्ली जैसे महानगरों की रामलीलाएं बहुत प्रसिद्ध रहीं।

खासतौर से शारदीय नवरात्रों के दौरान उत्तराखंड की सांस्‍कृतिक नगरी अल्मोड़ा में रामलीला की बात ही अलग है। यहां आज भी नंदादेवी, रघुनाथ मंदिर, राजपुरा, धारानौला, मुरलीमनोहर, ढुंगाधारा, कर्नाटकखोला, खोल्टा, नारायण तेवाड़ी देवाल व खत्याड़ी आदि मोहल्लों में बड़े उत्साह के साथ रामलीलाओं का आयोजन किया जाता है।

संबंधित खबरें

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here