Kullu में भगवान Raghunath जी का एक बहुत ही प्राचीनतम मंदिर है। प्रभु रघुनाथ जी के मंदिर का कुल्लू के इतिहास एवं धर्म के क्षेत्र में विशेष महत्व है। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू के अंतरराष्ट्रीय दशहरे का आगाज भी भगवान रघुनाथ की रथयात्रा के साथ ही होता है। कुल्लू दशहरा सात दिनों तक चलता है। तो चलिए आपको इस मंदिर के इतिहास और कथा के बारे में बताते हैं।
टिपरी गाँव में एक ब्राह्मण रहता था
मंदिर निर्माण एवं रघुनाथ जी की मूर्ति के साथ अति रोचक कथा जुडी है। ऐसा कहा जाता है कि राजा जगत सिंह के शासन काल में कुल्लू के टिपरी गाँव में एक ब्राह्मण दुर्गादुत अपने परिवार के साथ रहता था। ब्राह्मण बहुत विद्वान था और इसी कारण राजा के कुछ दरबारी उससे इर्ष्या करने लगे थे। एक दिन उन्होंने राजा से कहा कि टिपरी में जो ब्राह्मण रहता है उसके पास मोतियों का खजाना है। राजा ने अपने दरबारी पर विश्वास कर लिया और अपने दो सिपाही को मोती का खजाना लाने के लिए भेज दिए। यह बात सुन कर ब्राह्मण हैरान रह गया और उसने सहज भाव से कह दिया कि उन्हें गलतफहमी हुई है लेकिन राजा के अधिकारीगण इस से सहमत नहीं हुए और उन्होंने उसे परेशान करना शुरू कर दिय। सिपाहियों के तंग करने से उसने कहा कि राजा जब मणिकर्ण से वापिस आएंगे तो तब वह उन्हें मोती दे देगा।
ब्राह्मण ने परिवार सहित आग लगा ली
कहा जाता है कि जब राजा अपने अधिकारियों के साथ वापिस मणिकर्ण से टिपरी गाँव होता हुआ कुल्लू आया तो वह उस ब्राह्मण की झोपडी के पास रुक गया। उस ब्राह्मण ने राजा को आते देख घर में आग लगा दी। जिस से परिवार सहित वह भी जल गया। जब वह जल रहा था तो उसने अपना जल रहा मांस का टुकड़ा राजा की ओर फेंका और कहा कि ये ले राजा तेरे मोती और यह कहते-कहते वो अपने परिवार सहित स्वर्ग सिधार गया। इस दृश्य को देख राजा हैरान हो गया और वह कई दिनों तक सो न सका।
ब्राह्मण की हत्या के बाद राजा परेशान हो गया
कुछ दिनों बाद जब राजा भोजन कर रहा था तो उसे भोजन में कीड़े नजर आने लगे और यहां तक की पानी के बदले खून नजर आने लगा। उसने कई उपाय किये पर कुछ न हुआ। इस पर किसी शुभचिंतक ने बताया कि वह झिडी नामक स्थान में जाये वहां एक महात्मा रहते हैं। राजा वहां गया तो उस महात्मा ने बताया कि ऐसा ब्राह्मण हत्या के कारण हो रहा है। इसका एक ही उपाय है कि वो राम भक्त बन जाए और अयोध्या स्थित राम मंदिर से रघुनाथ जी की मूर्ति कुल्लू लाकर इसकी स्थापना करें तो ही वह इस पाप से मुक्त हो सकेंगे। राम भक्त बनना राजा के लिए आसान था लेकिन अयोध्या से मूर्ति लाना संभव कार्य नहीं था। राजा ने महात्मा से निवेदन किया कि वह उनकी कोई सहायता करें। राजा के अनुरोध पर उस महात्मा ने अपने शिष्य दामोदर को इस कार्य के लिए नियुक्त किया और दामोदर गुरु की आज्ञा से अयोध्या चला गया।
रघुनाथ जी की प्रतिमा राजमहल में स्थापित हुई
दामोदर कई दिनों की कठिन यात्रा करके अयोध्या पहुंचा और वहां से रघुनाथ जी की मूर्ति लाने का उपाय खोजता रहा। एक दिन वह इस कार्य में सफल हो गया और रघुनाथ जी की सोने की मूर्ति उठाकर वह कुल्लू ले आया जिस से महात्मा और राजा बहुत खुश हो गये। राजा ने इस प्रतिमा को राजमहल के साथ मंदिर में स्थापित कर दिया और भगवान राम का अनन्य भक्त बन गया। कुछ दिनों के बाद राजा ब्राह्मण हत्या के प्रकोप से मुक्त हो गया।
कुल्लू दशहरा मनाया जाता है
लोगों का मानना है कि विजय दशमी के दिन यह मूर्ति रघुनाथ जी के मंदिर में स्थापित की गई। उस समय कुल्लू जनपद के तमाम देवता वहां आये और आज उसी पर्व का साक्षात् रूप कुल्लू दशहरे के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व के मुख्य देव रगुनाथ जी ही होते है। इस मंदिर में रघुनाथ जी की स्वर्ण से जड़ी हुई पालकी है जिसे सजाकर कुल्लू दशहरे में लाया जाता है यह विशाल रथ मेले में मुख्य आकर्षण होता है। रघुनाथ जी साल में केवल चार बार ही बाहर जाते हैं। बसंत पंचमी, व्यास तट पर जल विहार, वन विहार और चौथा दशहरे के पावन अवसर पर।
रघुनाथ जी का बहुत समय से कुल्लू पर अधिपत्य रहा है। राजा उनके आशीर्वाद से ही यहाँ का राज्य चलाते रहे है इस घाटी में रघुनाथ जी की मूर्ति लाने के बाद ही यहाँ राम भक्ति की शुरुआत हुई। राजमहल के पीछे लक्ष्मीनारायण जी का मंदिर भी है। यह मंदिर पाषाणकला निर्माण की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।
सभार: General VK Singh
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