Lal Bahadur Shastri के साथ क्या हुआ था ताशकंद में

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Lal Bahadur Shastri
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Lal Bahadur Shastri भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। शास्त्री ने प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद 9 जून 1964 को प्रधानमंत्री का पद संभाला था। वह करीब 18 महीने तक देश के प्रधानमंत्री रहे।

साल 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच अप्रैल से 23 सितंबर के बीच 6 महीने तक युद्ध चला। युद्ध खत्म होने के 4 महीने बाद जनवरी 1966 में भारत-पाकिस्तान के शीर्ष नेता तत्कालीन रूस के ताशकंद में शांति समझौते के लिए इकट्ठा हुए। समझौते के लिए भारत की ओर से प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पहुंचे वहीं पाकिस्तान की तरफ से राष्ट्रपति अयूब खान ताशकंद गये थे।

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ताशकंद में भारत-पाकिस्तान समझौते पर दस्तखत करने के बाद लाल बाहादुर शास्त्री पर काफी दबाव था। पाकिस्तान से किये जाने वाले समझौते के कारण शास्त्री जी की भारत में काफी आलोचना हो रही थी, यहां तक कि उनकी पत्नी भी इस फैसले को लेकर नाराज़ थीं।

Lal Bahadur Shastri के ताशकंद समझौते का देश में विरोध हुआ था

शास्त्री जी ने ताशकंद समझौते के बाद अपने सचिव वैंकटरमन को फोन करके हिंदुस्तान में हो रही सियासी उठापटक की जानकारी मांगी तो उन्हें वैंकटरमन ने बताया कि जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी और कांग्रेस के कृष्ण मेनन शास्त्री जी के समझौते की कड़ी आलोचना कर रहे हैं।

10 जनवरी 1966 को पाकिस्तान के साथ ताशकंद समझौते पर दस्तखत करने के महज 12 घंटे बाद 10 और 11 जनवरी की आधी रात 1 बजकर 32 मिनट पर Lal Bahadur Shastri की ताशकंद में मौत हो गई। बताया जाता है कि शास्त्री जी मौत से आधे घंटे पहले तक बिल्कुल फिट थे, लेकिन 15 से 20 मिनट में उनकी तबियत ऐसी बिगड़ी की डॉक्टरों ने उन्हें एंट्रा-मस्कुलर इंजेक्शन दिया।

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इसी इंजेक्शन के महज चंद मिनटों के बाद शास्त्री जी की मौत हो गई। देर रात में शास्त्री जी की मौत होने के कारण अगले दिन के अखबारों में यह खबर नहीं छप पायी केवल टाइम्स ऑफ इंडिया ने देर रात प्रेस में अपना एडिशन रोककर इस खबर को छापा था। अखबार ने “शास्त्री डाइज आफ्टर ए हर्ट अटैक” की हेडलाइन लिखी थी।

Lal Bahadur Shastri ने बेहद कठिन समय में देश को संभाला

शास्त्री जी को देश संभालने का लम्बा वक्त नहीं मिला। पंडित नेहरू के समय चीन से हार की छाया और फिर 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध और फिर 1966 के अकाल में शास्त्री ने देश को वो राह दिखाई। जिससे लड़खड़ाते हुए भारत ने अपने कदमों पर चलना सिखा।

शास्त्री बेहद ईमानदार थे, कंजूस भी थे। यहां तक कि अपने जरूरत की सब्जियां वो खुद प्रधानमंत्री आवास में उगाते थे। प्रधानमंत्री Lal Bahadur Shastri ने परिवार के कहने पर एक फिएट कार खरीदी। जिसकी कीमत उस समय 12 हजार रुपये थी जबकि खाते में महज 7 हजार रुपये थे।

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Lal Bahadur Shastri ने प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए कार के लिए पंजाब नेशनल बैंक से 5 हजार रुपये का लोन लिया, जिसे वो पूरा चुका भी न पाये थे कि उनकी मौत हो गई। निधन के बाद उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने अपने पेंशन के पैसों से कार के लोन की अदायगी की।

अयूब खान ने 1962 में चीन के हाथों मिली पराजय को देखते हुए कश्मीर में “ऑपरेशन ग्रांड स्लाम” और “ऑपरेशन जिब्राल्टर” शुरू किया। जिसके तहत पाकिस्तान ने 1948 की तरह कश्मीर पर कबायली हमला किया।

Lal Bahadur Shastri ने जवाबी हमला किया और पाकिस्तान से हाजी पीर जीत लिया। साल 1965 में शास्त्री जी ने दिल्ली के रामलीला मैदान से देश को नारा दिया ‘जय जवान जय किसान’।

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लाल बहादुर शास्त्री ताशकंद में अयूब खान के साथ

भारत-पाक युद्ध के दौरान अमेरिका और रूस के दबाव में यूनाइटेड नेशन ने दखल दिया और ताशकंद समझौते के मुताबिक पाकिस्तान ने कश्मीर का इलाका खाली किया औऱ भारत ने लाहौर से अपनी सेना वापस बुला ली। इसी समझौते के दूसरी सुबह शास्त्री के ताबूत को अयूब खान ने रोते हुए कन्धा दिया।

Lal Bahadur Shastri की मौत के बाद गुलजारी लाल नंदा कार्यवाहक पीएम बने

शास्त्री की राजनीतिक वसियत में इंदिरा गांधी को हिंदोस्तान का तख्त नहीं लिखा था। शास्त्री के निधन के बाद गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने। (गुलजारी लाल नंदा नेहरू की मौत के बाद दूसरी बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने)।

मोरार जी देसाई जो नेहरू के निधन के बाद Lal Bahadur Shastri से गच्चा खा चुके थे। अब अपने पूरे तेवर के साथ पीएम पद पर कब्जा करना चाहते थे लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज ने फिर देसाई के उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

नेहरू की मौत के दो साल बाद फिर कामराज सत्ता के केंद्र में आये और मोरार जी के पर कतरते हुए इंदिरा गांधी को पीएम की गद्दी पर बैठा दिया। इंदिरा गांधी उस वक्त सूचना और प्रसारण मंत्री थीं और राज्यसभा में राम मनोहर लोहिया उन्हें गूंगी गुड़िया कहा करते थे।

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2 अक्टूबर 1904 को उत्तरप्रदेश के वाराणसी में जन्में लाल बहादुर शास्त्री के पिता मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव प्राथमिक स्कूल के टीचर थे और मां राम दुलारी गृहिणी थीं। शास्त्री जी के बचपन में ही उनके पिता का निधन हो गया था तो उनकी मां राम दुलारी ने बड़े ही अभावों के बीच शास्त्री जी की परवरिश की।

Lal Bahadur Shastriका जन्म बनारस के रामनगर में हुआ था

शास्त्री जी को बचपन में सभी ‘नन्हे’ कहा करते थे। शास्त्री जी ने काशी-विद्यापीठ से संस्कृत में ग्रेजुएशन किया, जिसे शास्त्री कहा जाता था। इसी संस्कृत ग्रेजुएशन से मिली ‘शास्त्री’ की उपाधि ने उन्हें लाल बहादुर श्रीवास्तव से लाल बहादुर शास्त्री बना दिय़ा।

शास्त्री जी का विवाह साल 1928 में ललिता देवी से विवाह हुआ और इनकी 6 संताने हुईं। साल 1920 में भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में कूदे Lal Bahadur Shastri ने साल 1921 में असहयोग आंदोलन, साल 1930 में दांडी यात्रा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

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अगस्त 1942 को गांधी जी ने भारत-छोड़ो आंदोलन के समय शास्त्री जी ग्यारह दिनों के लिए भूमिगत हो गए थे और फिर 19 अगस्त 1942 को उन्हें अंग्रेज पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया गया था। मगर कुछ समय बाद कुछ बड़े नेताओं के साथ इन्हें भी रिहा कर दिया गया था।

आजादी के बाद लाल बहादुर शास्त्री उत्तर प्रदेश (यूनाइटेड प्रोविंस) की गोविंद वल्लभ पंत सरकार में मंत्री बने। साल 1951 में शास्त्री जी को अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का महासचिव चुना गया। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने साल 1952 में लाल बहादुर शास्त्री को देश का रेल मंत्री बनाया।

Lal Bahadur Shastri पहले मंत्री थे, जिन्होंने नैतिकता के आधार पर पद छोड़ा था

साल 1956 में तमिलनाडु में एक भयंकर रेल दुर्घटना हुई, जिसमें 112 लोगों की मृत्यु हो गई थी। बतौर मंत्री रेल हादसे की जिम्मेदारी लेते हुए शास्त्री जी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। भारतीय राजनीति में शास्त्री जी के इस्तीफे को आज भी नजीर की तरह पेश किया जाता है।

इसके बाद पंडित नेहरू ने साल 1957 में Lal Bahadur Shastri को एक बार फिर अपने कैबिनेट में जगह दी और उन्हें वाणिज्य और उद्योग मंत्री बनाया और शास्त्री की सादगी से मुरीद होकर नेहरू ने 4 साल के भीतर उन्हें देश का गृह मंत्री बना दिया।

साल 1962 में चीन से मिली हार के बाद साल 1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु हो गई थी तो उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष के कामराज ने पीएम पद की रेस में आगे चल रहे मोरार जी देसाई की जगह Lal Bahadur Shastri जी को प्रधानमंत्री बनवा दिय़ा।

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जबकि शास्त्री जेपी या इंदिरा गांधी में किसी एक को पीएम पद पर देखना चाहते थे, लेकिन चूंकि जेपी ने सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लिया था औऱ इंदिरा गांधी उस समय सांसद नहीं थीं। इसलिए उन्हें देश की बागडोर अपने हाथों में लेनी पड़ी।

Lal Bahadur Shastri को पहली बार मरणोपरांत भारत रत्न मिला था

प्रधानमंत्री बनते ही लाल बहादुर शास्त्री ने देश में अन्न की कमी को पूरा करने के लिए एमएस स्वामीनाथन की अगुवाई में‘हरित क्रांति’ की नींव रखी साथ ही देश को दुग्ध उत्पादन में आत्म निर्भर बनाने के लिए शास्त्री जी ने वर्गीज कुरियन की देखरेख में ‘श्वेत क्रांति’ को भी बढ़ावा दिया।

साल 1966 में पड़े देशव्यापी अकाल के समय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने देश से अपील की कि वह अन्न बचाने के लिए शाम में उपवास रखें। कहते हैं कि उनकी अपील का असर ऐसा हुआ कि उस समय न केवल घरों में बल्कि होटलों में भी चूल्हे जलने बंद हो गए थे। भारत सरकार ने पहली बार साल 1966 में Lal Bahadur Shastri को मरणोपरांत भारत रत्न से नवाजा था।

ताशकंद समझौते में उलझी Lal Bahadur Shastri के मौत की गुत्थी

ताशकंद समझौते के लिए शास्त्री जी से पत्रकारों ने सवाल किया कि आप कद में छोटे हैं और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान छोटे हैं तब आप उनसे बात कैसे करेंगे? तब ऐसे में शास्त्री जी ने जवाब दिया कि हम सर उठाकर बात करेगे और वो सर झुकाकर बात करेंगे।

पूर्व प्रधानमंत्री Lal Bahadur Shastri की रहस्यमयी मौत पर उनके परिवारवालों का आरोप है शास्त्री जी की मौत दिल का दौरा पड़ने से नहीं हुई थी, बल्कि उसका कारण कुछ और था। यदि उनके शव का पोस्टमार्टम कराया जाता तो सच्चाई सामने आ जाती।

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शास्त्री जी की मौत के बाद रूस ने भारत के राजदूत त्रिलोकी नाथ कौल से शास्त्री जी का पोस्टमार्टम कराने का आग्रह किया था लेकिन कौल ने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। ताशकंद समझौते से पहले वह पूरी तरह स्वस्थ थे। जिस रात ताशकंद में शास्त्री जी की मौत हुई वहां वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर भी मौजूद थे, जो उस दौरे में शास्त्री जी के प्रेस सहायक के तौर पर दौरे में शामिल थे।

कुलदीप नैयर ने आत्मकथा ‘बीयंड द लाइंस’ में ताशकंद दौरे के बारे में विस्तार से लिखा है

कुलदीप नैयर अपनी आत्मकथा ‘बीयंड द लाइंस’ में लिखते हैं कि उस रात समझौते पर दस्तखत होने के बाद वो Lal Bahadur Shastri के साथ होटल में वापस लौटे और अपने कमरे में आराम कर रहे थे तभी उनके दरवाजे पर नॉक हुई। दरवाजा खोलने पर एक लेडी ने बताया कि आपके प्रधानमंत्री की स्थिति गंभीर है।

कुलदीप नैयर सीधे शास्त्री जी के कमरे की ओर भागे तो देखते हैं कि बरामदे में सोवियत अधिकारी उन्होंने इशारा से बताते हैं कि शास्त्री जी की मौत हो गई है। ताशकंद के डॉक्टर आपस में बातें कर रहे थे औऱ शास्त्री जी के पर्सनल डॉक्टर चुघ भी वहीं शांत खड़े थे।

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कुलदीप नैय्यर अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि समझौते के बाद शास्त्री जी ने अपने घर पर फोन किया। उनकी बेटी कुसुम ने फोन उठाया। शास्त्री जी का परिवार भी पाकिस्तान के साथ इस समझौते से खुश नहीं था।

शास्त्री जी ने बेटी कुसुम से कहा कि अम्मा (ललिता शास्त्री) से बात कराओ लेकिन वो फोन लाइन पर नहीं आयीं। इसके बाद शास्त्री जी और दबाव में आ गए। उन्हें लगा कि जब घर वाले ही उन्हें नहीं समझ पा रहे हैं तो देश क्या उनकी बात को समझेगा।

कुलदीप अपनी किताब में जिक्र करते हैं कि मौत से पहले Lal Bahadur Shastri को पहले भी दो हार्ट अटैक आ चुका था ऐसी स्थिति में उनको तीसरा हार्ट अटैक भी आना कोई बहुत बड़ी बात नहीं मानी जा सकती है। कुलदीप नैयर को शास्त्री जी के पर्सनल सेक्रेटरी जगन्नाथ सहाय ने बताया कि रात को शास्त्री ने जगन के दरवाजे पर नॉक किया और पानी मांगा था।

Lal Bahadur Shastri के निजी सहायक रामनाथ ने रात में पीने के लिए दूध दिया था, जिसे पीने के बाद वो रामनाथ से बोले कि जाओ अब सो जाओ क्योंकि अगले दिन सुबह में उन्हें काबुल जाना था। तब रामनाथ ने कहा कि वह फर्श पर उनके बगल में ही सो जाता है पर शास्त्री जी ने रामनाथ को मना कर दिया।

उस रात के डेढ़ बजे वापसी के लिए सारा सामान पैक हो रहा था तभी जगन्नाथ ने शास्त्री को अपने दरवाजे पर देखा। वह बहुत मुश्किल से बोल पाये ‘डॉक्टर’। रामनाथ ने उन्हें पीने के लिए पानी दिया फिर उनके कमरे में लाकर बेड पर लिटाया।

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कुलदीप नैयर अपनी किताब में आगे लिखते हैं कि कमरे में बेड पर शास्त्री जी का शव रखा था। नीचे उनकी चप्पल पड़ी हुई थी, थर्मस गिरा हुआ था। लग रहा था कि शास्त्री ने उसे खोलने की खूब कोशिश की थी।

उनके कमरे में कोई घंटी नहीं थी कि जिसे बजाकर किसी को बुलाया जा सके। यही घंटी का मुद्दा था जिस पर सरकार की ओर से विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह ने भरी संसद में झूठ बोला था कि शास्त्री जी के कमरे में घंटी थी।

शास्त्री जी के निधन की खबर सुनने के बाद पाकिस्तान के जनरल अयूब खान भी दौड़े हुए आए। अयूब खान Lal Bahadur Shastri की मौत से बेहद दुखी थे क्योंकि अयूब खान का मानना था कि भारत में केवल शास्त्री जी ही ऐसे आदमी थे जो भारत-पाक झगड़ा सुलझा सकते थे।

इस हादसे के बाद पाकिस्तान के विदेश सचिव ने फौरन पाकिस्तान फोन करके प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को बताया कि शास्त्री जी की मौत हो गई है। भुट्टो ने फोन पर कहा कि कैसे और किसने किया?

शास्त्री के नीले पड़ चुके शरीर को देखकर यह आशंका जताई गई कि उन्हें जहर दिया गया है क्योंकि उस रात खाना उनके निजी सेवक रामनाथ ने नहीं बल्कि राजदूत त्रिलोकि नाथ कौल के खानसामे जान मोहम्मद ने बनाया था।

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रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी के अफसरों ने जान मोहम्मद पर संदेह जताते हुए उसे गिरफ्तार कर लिया था। केजीबी ने इस मामले में जान मोहम्मद के अलावा एक रशियन कुक सत्तारोव सहित कुल तीन अन्य लोगों को भी पकड़ा था।

शास्त्री की मौत के बाद जान मोहम्मद भारत वापस आ गया औऱ उसे बाद में राष्ट्रपति भवन में नौकरी मिल गई थी। वहीं पाकिस्तान में इस समझौते को स्वीकार नहीं किया गया और जुल्फीकार अली भुट्टो ने अयूब खान से अलग होकर अपनी पार्टी बना ली और ताशकंद समझौते के कारण अयूब खान का सियासी पतन हो गया।

Lal Bahadur Shastri की मौत पर संदेह के कारण

क्या शास्त्री की मौत का नेता जी से कनेक्शन था ?

लाल बहादुर शास्त्री के ताशकंद निधन पर फिल्म निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने साल 2019 में फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ नाम से एक फिल्म बनाई।

इस फिल्म में लाल बहादुर शास्त्री की संदिग्ध मौत पर सवाल उठाया गया है कि ताशकंद में शास्त्री जी की मौत कहीं सिर्फ इसलिए तो नहीं हुई क्योंकि उनके हाथ नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत से जुड़ी कोई खबर लग गई थी।

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कहा जाता है कि Lal Bahadur Shastri को कथिततौर पर नेता जी के जिंदा होने की बात पता चली थी। फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ को डायलॉग और स्क्रीन प्ले के लिए नेशनल अवार्ड मिला।

ताशकंद के हालात

लाल बहादुर शास्त्री की मौत पर सवाल उठना इसलिए भी लाजमि था क्योंकि ताशकंद समझौते के समय उनके साथ गए अधिकारियों और अन्य ऑफिशियल स्टाफ से उनके ठहरने का आवास ताशकंद शहर से 15 किमी दूर रखा गया था। उनके कमरे में न तो कोई घंटी मौजूद औऱ न ही कोई फोन था।

गवाहों की संदिग्ध मौत

ताशकंद में शास्त्री जी की मौत वाली रात मौके पर मौजूद दो गवाहों की संदिग्ध मौत होना भी उनकी मौत की रहस्य को गहराता है। दोनों मारे गये गवाहों उनमें से एक थे उनके निजी चिकित्सक आरएन चुग और दूसरे थे उनके सेवक रामनाथ।

दोनों ही मोरार जी देसाई की सरकार के द्वारा Lal Bahadur Shastri की मौत पर गठित राज नारायण समिति के समक्ष साल 1977 में पेश नहीं हो सके। दोनों ही रस्यमयी सड़क हादसे के शिकार हुए। इसमें डॉक्टर साहब की मौत हो गई वहीं रामनाथ अपनी याद्दाश्त खो बैठे।

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बताते हैं कि समिति के सामने गवाही से पहले रामनाथ ने शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री से ‘सीने पर पड़े बोझ’ का जिक्र किया था, जिसे वह उतारना चाहता था।

मौत के दस्तावेज को सार्वजनिक न किया जाना

भारत सरकार ने शास्त्री जी की मौत या उनके अंतिम समय से जुड़े दस्तावेजों को ‘टॉप सीक्रेट’, ‘सीक्रेट’ या ‘कान्फिडेंशियल’ श्रेणी में रखा है।

सूचना के अधिकार कानून के तहत Lal Bahadur Shastri की मौत के संबंध में कई बार जानकारी मांगी गई लेकिन जवाब में सरकार ने कहा था कि यह दस्तावेज सार्वजनिक नहीं किए जा सकते क्योंकि इससे विदेश संबंध प्रभावित होंगे और यह देशहित में नहीं होगा।

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मौत एक शाश्वत सत्य है लेकिन कुछ मौतें ऐसी होती हैं जिस पर रहस्य का कफन लिपटा होता है। ऐसी ही मौत देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की थी। जिनकी मौत पर पड़ा पर्दा आज तक नहीं हट पाया है।

जब शास्त्री के शव को दिल्ली लाने के लिए ताशकंद एयरपोर्ट पर ले जाया जा रहा था तो रास्ते में सोवियत संघ, भारत और पाकिस्तान के झंडे झुके हुए थे।

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शास्त्री के ताबूत को कंधा देने वालों में सोवियत प्रधानमंत्री कोसिगिन और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान भी थे।

शास्त्री जी का अंतिम संस्कार दिल्ली में यमुना नदी के किनारे विजय घाट पर किया गया। Lal Bahadur Shastri का जीवन दूध की तरह सफेद था। उनके सार्वजनिक जीवन पर कभी कोई दाग़ नही लगा।

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