International Women’s Day: हिंदी की इन महिला साहित्यकारों ने छोड़ी है अमिट छाप, जानें इनके बारे में…

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International Women's Day
International Women's Day

International Womens Day:आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Womens Day) है। यह दिवस महिलाओं की उपलब्धियों को रेखांकित करने के लिए मनाया जाता है। इस दिवस (International Womens Day) को मनाने का उद्देश्य महिलाओं के खिलाफ हो रही गैर -बराबरी के खिलाफ और लैंगिक समानता की आवाज उठाना है। महिला दिवस (International Womens Day) के मौके पर हम आपको हिंदी की कुछ ऐसी महिला साहित्यकारों के बारे में बताएंगे जिन्होंने बीते वक्त में हिंदी साहित्य के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल की है।

International Womens Day: मृदुला गर्ग

मृदुला गर्ग - विकिपीडिया
मृदुला गर्ग

International Womens Day: मृदुला गर्ग हिंदी की सबसे लोकप्रिय लेखिकाओं में से एक हैं। उपन्यास, कहानी संग्रह, नाटक और निबंध संग्रह सब मिलाकर उन्होंने 20 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। उनके उपन्यासों को अपने कथानक की विविधता और नयेपन की वजह से आलोचकों की सराहना मिली। उनके उपन्यास और कहानियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है। वे स्तंभकार रही हैं, पर्यावरण के प्रति सजगता प्रकट करती रही हैं और महिलाओं और बच्चों के हित में समाज सेवा के काम करती रही हैं। उनका उपन्यास ‘चित्तकोबरा’ नारी-पुरुष के संबंधों में शरीर को मन के समांतर खड़ा करने और इस पर एक नारीवाद या पुरुष-प्रधानता विरोधी दृष्टिकोण रखने के लिए काफी चर्चित और विवादास्पद रहा था।

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उनके आठ उपन्यास- उसके हिस्से की धूप, वंशज, चित्तकोबरा, अनित्य, ‘मैं और मैं’, कठगुलाब, ‘मिलजुल मन’ और ‘वसु का कुटुम’ हैं। ग्यारह कहानी संग्रह- ‘कितनी कैदें’, ‘टुकड़ा टुकड़ा आदमी’, ‘डैफ़ोडिल जल रहे हैं’, ‘ग्लेशियर से’, ‘उर्फ सैम’, ‘शहर के नाम’, ‘चर्चित कहानियाँ’, समागम, ‘मेरे देश की मिट्टी अहा’, ‘संगति विसंगति’, ‘जूते का जोड़ गोभी का तोड़’, चार नाटक- ‘एक और अजनबी’, ‘जादू का कालीन’, ‘तीन कैदें’ और ‘सामदाम दंड भेद’, तीन निबंध संग्रह- ‘रंग ढंग’ ,’चुकते नहीं सवाल’ और ‘कृति और कृतिकार’, एक यात्रा संस्मरण- ‘कुछ अटके कुछ भटके’ और दो व्यंग्य संग्रह- ‘कर लेंगे सब हज़म’ और ‘खेद नहीं है’ प्रकाशित हुए हैं।

मृदुल गर्ग को साहित्यकार सम्मान (1988), साहित्य भूषण (1999), हेलमैन-हैमेट ग्रान्ट (2001),विश्व हिन्दी सम्मेलन में साहित्य में जीवनभर के योगदान के लिए सम्मान (2003), व्यास सम्मान (2004), मध्यप्रदेश साहित्य परिषद द्वारा ‘उसके हिस्से की धूप’ (उपन्यास) और ‘जादू का कालीन (नाटक) के लिए सम्मान, मिलजुल मन (उपन्यास) को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मान (2013), राम मनोहर लोहिया सम्मान (2016) से सम्मानित किया जा चुका है।

International Womens Day: चित्रा मुद्गल

sahitya akademi awards 2018 announced for 24 languages chitra mudgal got  award in hindi - साहित्य अकादमी अवार्ड 2018: 24 भाषाओं में पुरस्कार की  घोषणा, चित्रा मुद्गल को हिंदी में मिला अवार्ड
चित्रा मुद्गल

International Womens Day: चित्रा मुद्गल हिन्दी की वरिष्ठ कहानीकार हैं। उन्हें साल 2018 में हिन्दी भाषा के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उनके उपन्यास ‘आवां’ पर उन्हें वर्ष 2003 में ‘व्यास सम्मान’ मिला था। उनका जीवन किसी रोमांचक प्रेम-कथा से कम नहीं है। यूपी के उन्नाव के जमींदार परिवार में जन्मी किसी लड़की के लिए साठ के दशक में अंतरजातीय प्रेमविवाह करना आसान काम नहीं था। लेकिन चित्रा मुद्गल ने तो शुरू से ही कठिन मार्ग के विकल्प को अपनाया। पिता का आलीशान बंगला छोड़कर 25 रुपए महीने के किराए की खोली में रहना और मजदूर यूनियन के लिए काम करना – चित्रा ने हर चुनौती को हँसते-हँसते स्वीकार किया।

10 दिसम्बर 1944 को जन्मी चित्रा मुद्गल की प्रारंभिक शिक्षा पैतृक ग्राम निहाली खेड़ा (जिला उन्नाव, उ.प्र.) से लगे ग्राम भरतीपुर के कन्या पाठशाला में हुई। हायर सेकेंडरी पूना बोर्ड से की और शेष पढ़ाई मुंबई विश्वविद्यालय से। बहुत बाद में स्नातकोत्तर पढ़ाई पत्राचार पाठ्यक्रम के माध्यम से एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय मुंबई से की।

चित्रा ने जे.जे.स्कूल ऑफ आर्टस से फाइन आर्टस का अध्ययन भी किया है। सोमैया कॉलेज में पढ़ाई के दौरान श्रमिक नेता दत्ता सामन्त के संपर्क में आकर श्रमिक आंदोलन से जुड़ीं। उन्हीं दिनों घरों में झाडू-पोंछा कर, उत्पीड़न और बदहाली में जीवन-यापन करने वाली बाइयों के उत्थान और बुनियादी अधिकारों की बहाली के लिए संघर्षरत संस्था ‘जागरण’ की बीस वर्ष की वय में सचिव बनीं।

उन्हें बहुचर्चित उपन्यास ‘एक ज़मीन अपनी’ के लिए सहकारी विकास संगठन मुंबई द्वारा फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। चित्रा हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा साहित्यकार सम्मान से सम्मानित और 2000 में अपने उपन्यास आवां के लिए यू॰के॰ कथा सम्मान से सम्मानित हैं। कृति ‘पोस्ट बॉक्स नंबर 203- नाला सोपारा’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी सम्मान से सम्मानित किया गया।

पोस्ट बॉक्स नं. 203 - नाला सोपारा - चित्रा मुदगल Post Box No. 203 - Nala  Sopara - Hindi book by - Chitra Mudgal

International Womens Day: नासिरा शर्मा

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नासिरा शर्मा

International Womens Day: नासिरा शर्मा हिन्दी की जानी मानी लेखिका हैं। सृजनात्मक लेखन के साथ ही स्वतन्त्र पत्रकारिता में भी उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया है। वह ईरानी समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य कला व सांस्कृतिक विषयों की विशेषज्ञ हैं। वर्ष 2016 का साहित्य अकादमी पुरस्कार उनके उपन्यास ‘पारिजात’ के लिए प्रदान किया गया। वर्ष 2019 का व्यास सम्मान इनके उपन्यास ‘कागज की नाव’ के लिए दिया गया।

कृतियाँ :

उपन्यास : सात नदियाँ एक समन्दर, ठीकरे की मँगनी, शाल्मली, ज़िन्दा मुहावरे, कुइयाँजान।

कहानी-संग्रह : बुतख़ाना : (नमकदान, अपनी कोख, खिड़की, बुतख़ाना, गुमशुदा लड़की, ठंडा बस्ता, बिलाव, मटमैला पानी, घुटन दूसरा चेहरा, इच्छा घर, क़ैदघर, फिर कभी, शर्त, गलियों के शहज़ादे, मरियम, लू का झोका, कल की तमन्ना, रुतबा, ख़ौफ़, गलत सवाल सही हल, नजरिया, आज का आदम, निकास द्वार, पीछा, उलझन, अभ्यास, तन्हा, पनाह, मेरी रचना प्रक्रिया।), शामी काग़ज, पत्थर गली, इब्ने मरियम, संगसार, सबीना के चालीस चोर, गूँगा आसमान, इन्सानी नस्ल, दूसरा ताजमहल, ख़ुदा की वापसी : (ख़ुदा की वापसी, चार बहनें शीशमहल की, दहलीज, दिलआरा, पुराना कानून, दूसरा कबूतर, बचाव, मेरा धर कहाँ?, नयी हुकूमत, हिन्दी कहानी।)।

पारिजात by Nasira Sharma

अनुवाद : शाहनामा फ़िरदौसी, गुलिस्तान-ए-सादी, काली छोटी मछली, इकोज़आफ ईरानियन रेवुलूशन, बर्नियर पायर, फारसी की रोचक कहानियाँ, खुरासान, वियतनाम की लोक कथाएँ।

अध्ययन : अफ़गानिस्तान : बुज़काशी का मैदान (दो खंडों में)।
बाल-साहित्य : अपनी अपनी दुनिया, एक थी सुल्ताना।
टेलिफिल्म व सीरियल : शाल्मली, वापसी, सरज़मीन, माँ, तड़प, काली मोहिनी, आया बसंत सखी, सेमल का दरख़्त, बावली।
नाटक : सबीना के चालीस चोर, दहलीज़।
लेख-संग्रह : किताब के बहाने, औरत के लिए औरत, राष्ट्र और मुसलमान।
रिपोतार्ज : जहाँ फौव्वारे लहू रोते हैं।
फिल्म : ईरानी युद्धबन्दियों पर जर्मन व फ्रांसीसी दूरदर्शन के लिए बनी फिल्म में महत्त्वपूर्ण योगदान।

International Womens Day: अनामिका

अनामिका: हिन्दी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने पाली भारत की पहली महिला  कवयित्री
अनामिका

International Womens Day: अनामिका हिंदी भाषा की एक जानी मानी कहानीकार व कवयित्री हैं। अनामिका ने अपनी कविताओं में घर की रसोई से लेकर दूसरों के के खेतों में काम करने वाली महिलाओं तक के अनकहे अहसास लिखे हैं। 17 अगस्त 1961 को बिहार के मुजफ्फरपुर में जन्मीं अनामिका के पिता डॉ श्यामनंदन किशोर, राष्ट्रकवि दिनकर तथा गोपाल सिंह नेपाली के दौर के जाने माने हिंदी गीतकार व कवि थे।

उन्हें हिंदी कविता में अपने विशिष्ट योगदान के कारण राजभाषा परिषद् पुरस्कार, साहित्य सम्मान, भारतभूषण अग्रवाल एवं केदार सम्मान पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। सन् 2021 में उनको उनके ‘टोकरी में दिगन्त’ नाामक काव्य संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुुुरस्कार भी प्रदान किया गया।

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कविता संग्रह : गलत पते की चिट्ठी, बीजाक्षर, अनुष्टुप, समय के शहर में, खुरदुरी हथेलियाँ, दूब धान

आलोचना : पोस्ट -एलियट पोएट्री, स्त्रीत्व का मानचित्र , तिरियाचरित्रम, उत्तरकाण्ड, मन मांजने की जरुरत, पानी जो पत्थर पीता है

शहरगाथा : एक ठो शहर, एक गो लड़की

कहानी संग्रह : प्रतिनायक

उपन्यास : अवांतरकथा, पर कौन सुनेगा, दस द्वारे का पिंजरा, तिनका तिनके पास

अनुवाद : नागमंडल (गिरीश कर्नाड), रिल्के की कवितायेँ , एफ्रो- इंग्लिश पोएम्स, अटलांट के आर-पार (समकालीन अंग्रेजी कविता), कहती हैं औरतें ( विश्व साहित्य की स्त्रीवादी कविताएँ )

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