Jai Bhim Review: ‘जय भीम’ फिल्म की हर जगह इतनी चर्चा सुन ली थी कि इसे देखे बिना रहा नहीं गया। जैसे ही वक्त मिला अमेजन प्राइम वीडियो पर लगभग ढाई घंटे की ये फिल्म देख डाली। जब फिल्म को देखने के बाद उठा तो दिमाग में बहुत से ख्याल एक साथ उमड़ने-घुमड़ने लगे। फिर उन ख्यालों की एक डोर पकड़ी और सोचा कि इसको लिखना शुरू करते हैं। फिल्म का रिव्यू या समीक्षा, जो भी कह लीजिए, मेरे लिए उसी Subaltern Discouse का हिस्सा है जिसके बारे में मैंने ग्रेजुएशन के समय से पढ़ना शुरू किया था।
ग्रेजुएशन में कदम रखा था तो स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श जैसी चीजें सुनने को मिली थीं। उसके बाद छोटे-छोटे प्रयासों से इन चीजों को समझने की कोशिश की। भले ही वह दलित साहित्य के जरिए हो या या दूसरी तरह के हाशिये के विमर्श के अध्ययन से। लघु कथाओं से शुरू हुआ सफर पहली बार एक समझ विकसित करने के मुकाम तक तब पहुंचा था जब मैंने लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा ‘जूठन’ पढ़ी थी। यूआर अनंतमूर्ति के ‘संस्कार’ ने भी कई भ्रम तोड़े थे। कुछ समय पहले शरणकुमार लिम्बाले की कहानियों का एक संग्रह ‘छुआछूत’ पढ़ा था। जिसमें लेखक ने हर एक मोर्चे पर समाज में जाति के जहर के बारे में बताया है। मैंने खुद के लिए तय किया है कि आगे ‘अक्करमाशी’ और ‘सनातन’ भी पढ़ूंगा।
बहुत हो गयी भूमिका अब आते हैं ‘जय भीम’ फिल्म पर, जो कि एक तमिल फिल्म है और जिसका निर्देशन टी जे ज्ञानवेल ने किया है। फिल्म की शुरुआत में दिखाया गया है कि एक जेल से कैदी बाहर निकल रहे हैं और उनको जाति के आधार पर अलग खड़ा किया जा रहा है। सवर्ण जाति के कैदियों को पुलिस छोड़ देती है जबकि दलित या जनजातीय लोगों पर फर्जी मामले दर्ज कर फिर से जेल में ठूस दिया जाता है।
फिल्म में चंद्रू नाम के एक वकील को दिखाया गया है, ये किरदार असल जिंदगी में मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस चंद्रू से प्रेरित है। वकील चंद्रू का किरदार तमिल अभिनेता सूर्या ने निभाया है। वकील चंद्रू के पास समाज के हाशिये के लोग अपने मामले लेकर आते हैं और चंद्रू उनको इंसाफ दिलाने का काम करते हैं। फिल्म में दिखाया गया है कि चंद्रू मार्क्स, अंबेडकर और पेरियार के विचारों से प्रभावित हैं। अदालत में एक केस लड़ते हुए चंद्रू तमिलनाडु में फर्जी तौर पर जनजातीय और दलित लोगों पर मुकदमों की ओर अदालत का ध्यान खींचते हैं। जिसके बाद अदालत कैदियों की जमानत का फैसला सुनाती है।
वहीं दूसरी ओर फिल्म में एक जोड़े, राजकन्नू और सेनगानी, की कहानी दिखायी गयी है। जो कि जनजातीय मजदूर हैं और एक सवर्ण मालिक के खेत में काम करते हैं। जोड़े की माली हालत ऐसी है कि उन्हें अपना पेट भरने के लिए चूहे पकड़ने पड़ते हैं और उनके सिर के ऊपर ठीक ढंग की छत तक नहीं है। फिल्म में बताया गया है कि अपना खुद का एक पक्का मकान होना इस जोड़े के लिए ख्वाब जैसा है।
इस जोड़े की मुसीबतें तब बढ़ जाती हैं जब राजकन्नू को गांव का सरपंच अपने घर पर सांप पकड़ने के लिए बुलाता है और उसके अगले रोज सरपंच के घर में चोरी हो जाती है। जैसे ही राजकन्नू ज्यादा मजदूरी कमाने के लिए ईंट के भट्टे में काम करने जाता है पुलिस गहने चोरी करने के आरोप में उसकी तलाश शुरू कर देती है।
पुलिस सेनगानी को थाने उठा ले जाती है और उसे प्रताड़ित करती है। यहां तक कि राजकन्नू की बहन और जीजा को भी पुलिस नहीं बख्शती। इसके बाद पुलिस राजकन्नू को गिरफ्तार कर लेती है। पुलिस हिरासत में राजकन्नू और अन्य दो लोगों के साथ पुलिस मारपीट करती है और चोरी का इल्जाम कुबूल करने को मजबूर करती है। हालांकि राजकन्नू इसके लिए राजी नहीं होता। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे जनजातीय लोगों को पुलिस हिरासत में बर्बरता का सामना करना पड़ता है।
इसके बाद पुलिस सेनगानी को बताती है कि राजकन्नू दूसरे अन्य आरोपियों के साथ फरार हो गया है। जब कहीं से भी सेनगानी को अपने पति का पता नहीं चलता हर तरफ से परेशान हो वह मदद के लिए वकील चंद्रू के पास पहुंचती है। वकील चंद्रू सेनगानी की पूरी कहानी सुनने के बाद मद्रास हाईकोर्ट में Habeas Corpus याचिका दाखिल करते हैं।
सुनवाई के दौरान वकील चंद्रू कोर्ट के आगे साबित कर देते हैं कि पुलिस ने अदालत के आगे राजकन्नू के फरार होने की झूठी गवाही और फर्जी सबूत दिए हैं। मामले में अदालत पुलिसकर्मियों पर जांच का आदेश देती है। पुलिस की पैरवी करने वाले वकील अदालत को बताते हैं कि राजकन्नू और उसके साथी केरल भाग गए हैं। हालांकि वकील चंद्रू पता लगा लेते हैं कि पुलिस वाले खुद केरल गए थे और उन्होंने वहां से फोन किया था। अपनी छानबीन में चंद्रू को पता चलता है कि तमिलनाडु और पुदुचेरी की सीमा के पास राजकन्नू की लाश मिली थी।
इसके बाद पुलिस की ओर से दावा किया जाने लगता है कि जेल से फरार होने के बाद राजकन्नू दुर्घटना में मारा गया। हालांकि चंद्रू इस बात को मानते नहीं हैं और सच्चाई का पता लगाने की कोशिश करते हैं। पुलिसकर्मी सरकारी वकील को सच्चाई बताते हैं कि राजकन्नू की मौत पुलिस हिरासत में मारपीट से हुई थी और पुलिस ने बाद में राजकन्नू के फरार होने की मनगढ़ंत कहानी रची।
वकील चंद्रू सच्चाई का पता लगा लेते हैं और जेल में राजकन्नू के साथी का पता लगाते हैं और उसे कोर्ट के आगे पेश करते हैं। राजकन्नू का साथी अदालत को बताता है कि कैसे पुलिस हिरासत में राजकन्नू पर अत्याचार किये गये और पुलिस की मारपीट से राजकन्नू की मौत हो गयी। वकील चंद्रू अदालत के आगे साबित कर देते हैं कि पुलिस ने राजकन्नू को चोरी के मामले में फंसाया और उसकी हत्या को दुर्घटना साबित करने की साजिश रची।
अदालत सेनगानी को मुआवजा और जमीन देने की घोषणा करती है और दोषी पुलिस वालों को सजा सुनाती है। फिल्म के अंत में दिखाया गया है कि सेनगानी के गृह प्रवेश में वकील चंद्रू शामिल होते हैं और इस तरह सेनगानी का एक घर का सपना पूरा होता है।
फिल्म में सूर्या ने वकील चंद्रू और लिजोमोल जोस ने सेनगानी के किरदार को बखूबी निभाया है और निर्देशक ने कोर्ट रूम ड्रामा को भी अच्छे से फिल्माया है। फिल्म में कई जगह बेहतरीन संवाद सुनने को मिलेंगे। ये फिल्म बताती है कि पुलिस प्रशासन और अदालतों को समाज के हाशिये के लोगों के प्रति अधिक संवेदनशील , अधिक मानवीय, पक्षपातरहित होने की जरूरत है।
BLOG: ‘सरदार खान’ की भाषा क्यों बोलने लगे हैं कन्हैया कुमार?
(लेखक: सुबोध आनंद गार्ग्य युवा पत्रकार हैं। देश-विदेश के विषयों पर लिखते रहे हैं। जामिया मिल्लिया इस्लामिया और भारतीय जनसंचार संस्थान के छात्र रह चुके हैं।)