कांग्रेस अध्यक्ष, उपराष्ट्रपति, गवर्नर और जज के परिवार से आता है Mukhtar Ansari, यहां जानें कैसी रही है परिवार की विरासत…

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Mukhtar Ansari
Mukhtar Ansari

Mukhtar Ansari के बारे में कोई भी बात शुरू करने से पहले एक बात गांठ बांध लें, जो बच्चे ऊंची दहलीज के दायरे में पलते हैं, अमूमन वो छोटी नालियों में भी फिसल जाते हैं। सामंती परिवार की विरासत में पले-बढ़े बच्चों के साथ तो अक्सर होता है कि वो अपनी सनक के कारण अपराध के उस रास्ते पर चल पड़ते हैं, जहां से लौटना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकीन हो जाता है।

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मुख्तार अंसारी

मुख्तार अंसारी की कहानी भी कुछ उसी रंग-ढंग में रंगी हुई है। पूर्वांचल में एक जिला है गाजीपुर और इसी गाजीपुर में पड़ता है मोहम्म्दाबाद-युसुफपुर। यहां पर ‘उंचकी ड्योढी’ के नाम से मशहूर है मुख्तार अंसारी का घर। मुख्तार को परिवार की जितनी ऊजली विरासत मिली, उसे उन्होंने मिट्टी में मिलाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।

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मुख्तार अंसारी

जवानी के जोश और परिवार के शोहरत ने एक ऐसी हनक पैदा की, जो सीधे मुख्तार को अपराध की दुनिया में ले गई। आज भी 52 मुकदमों का सामना कर रहे मुख्तार अंसारी बांदा की जेल में बंद अपनी रिहाई की राह देख रहे हैं। वैसे मुख्तार जेल में रहें या बाहर, दोनों ही स्थितियों में समान प्रभाव रखते हैं। साल 2005 से जेल में बंद मुख्तार की दहशत आज भी जस की तस है।

मुख्तार अंसारी के दादा एमए अंसारी जामिया मिलिया इस्लामिया के संस्थापकों में से एक थे

मुख्तार की पैदाइश उस परिवार में हुई, जिसने इस मुल्क के इतिहास को समृद्ध बनाने पर बहुत योगदान दिया है। मुख्तार का नाम उनके दादा के नाम पर पड़ा। जी हां, हम उस मुख्तार अहमद अंसारी के नाम का जिक्र कर रहे हैं, जिन्होंने देश की आजादी के दौरान साल 1927 में मद्रास में हुए कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की।

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मुख्तार अहमद अंसारी

दिल्ली की प्रसिद्ध जामिया मिलिया इस्लामिया जैसे इल्म के बड़े इदारे के संस्थापकों में से एक थे। जामिया मिलिय़ा का अंसारी ऑडिटोरियम इस बात का गवाह है कि मुख्तार अहमद अंसारी ने देश की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया।

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मुख्तार अहमद अंसारी जामिया मिलिया इस्लामिया के वाइस चांसलर भी रहे हैं। दिल्ली का अंसारी रोड का नाम इन्हीं मुख्तार अहमद अंसारी की याद में रखा गया है। इसके अलावा दिल्ली में एम्स के बगल में अंसारी नगर का रिहाइशी एरिये का नाम भी मुख्तार के दादा के नाम पर रखा गया है। ये तो रही मुख्तार के दादा की बात, अब बात करते हैं मुख्तार के नाना का। जिनकी शहादत पर आज भी पूरा हिंदुस्तान गर्व करता है। 

‘नौशेरा के शेर’ ब्रिगेडियर उस्मान मुख्तार के नाना थे      

मुख्तार के नाना ब्रिगेडियर उस्मान को ‘नौशेरा का शेर’ कहा जाता है। मुख्तार के नाना ब्रिगेडिय उस्मान गाजीपुर के पड़ोसी जिले आजमगढ़ के बिबिबुआ के रहने वाले थे। उस्मान ने 1932 में ब्रिटेन रॉयल मिलट्री एकेडमी ज्वाइन की। साल 1934 में उन्होंने इंगलैंड से अपनी रक्षा की पढ़ाई पूरी की। उस बैच के लिए भारत से केवल 10 लोगों को चुना गया था,जिसमें से एक मुख्तार के नाना मोहम्मद उस्मान भी थे।

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ब्रिगेडियर उस्मान

सेना में कमिशन मिलने के बाद उस्मान की नियुक्ति 5/10 बलूच रेजिमेंट में हुई लेकिन 1947 में बंटवारे के बाद उस्मान ने पाकिस्तान के उस पैगाम को ठुकराकर भारतीय सेना में रहने का फैसला किया, जिसमें उन्हें पाकिस्तानी आर्मी ने ऑउट ऑफ टर्न प्रमोशन देने की बात कही गई थी।

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ब्रिगेडियर उस्मान ने नवंबर 1947 में पाकिस्तानी कबायलियों के हमले को रोकने के लिए जम्मू-कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में कमान संभाली। झांगर पर दोबारा कब्ज़ा करने के प्रयास में 03 जुलाई 1948 को देश की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। मरणोपरांत देश ने ब्रिगेडियर उस्मान को महावीर चक्र (MCV) से सम्मानित किया और ‘नौशेरा का शेर’ की उपाधि भी दी।

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बहुत कम लोगों को पता होगा कि भारत के सेना प्रमुख रहे सैम मानेकशॉ और पाकिस्तान के सेना प्रमुख रहे मोहम्मद मूसा, ब्रिगेडियर उस्मान के बैचमेट थे। मुख्तार के नाना ब्रिगेडियर के इस गौरवशाली अतीत को जानकर कम ही लोगों को यकीन होता है मुख्तार के परिवार से उनका इतना गहरा ताल्लुक था। खैर, अब बात करते हैं उस शख्सियत की, जो आज के दौर में भारतीय राष्ट्रीय राजनीति में प्रासंगिक हैं।

पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी रिश्ते में मुख्तार के चाचा लगते हैं

हम बात कर रहे हैं भारत के भूतपूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की और यह बात हम नहीं खुद मुख्तार कह रहे हैं कि पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी रिश्ते में उनके चाचा लगते हैं। दरअसल मुख्तार अंसारी को जब यूपी के सीएम आदित्यनाथ पंजाब की रोपड़ जेल से यूपी लाने की तैयारी की तो मुख्तार को लगा कि रास्ते में कहीं उनकी गाड़ी न पलट जाए।

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हुआ ये था कि उसी दौरान यूपी में अपराधी विकास दुबे की गाड़ी पुलिस कस्टडी में पलट गई थी और भागने की कोशिश में वो कथित तौर पर मारा गया था। विकास दुबे के एनकाउंटर ने अपराधियों में ऐसा भय पैदा किया कि ज्यादातर अपराधी यूपी की सरहद से दूर रहना चाहते थे।

मुख्तार भी पंजाब से यूपी जाने में कतरा रहे थे और जेल ट्रांसफर के विरोध में बाकायदा एक हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करते हुए कहा कि वह पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के परिवार से संबंध रखते हैं।

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इतना ही नहीं अंसारी ने हलफनामे में खुद को देशभक्त परिवार से बताते हुए कहा कि उसके बाबा शौकत उल्ला अंसारी ओडिशा के राज्यपाल रहे। वहीं इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज रहे जस्टिस आसिफ अंसारी भी उसके परिवार से हैं।

दरअसल यह भी कहा जाता है कि यूपी की जेल में मुख्तार को जान का खतरा है। इसलिए वो यूपी की जेल में नहीं जाना चाहते थे। इस डर का मुख्य कारण था यूपी का बागपत जेल। जुलाई 2018 में बागपत जेल में मुख्तार अंसारी के सबसे मुख्य शूटर प्रेम प्रकाश सिंह ऊर्फ मुन्ना बजरंगी की सुनील राठी नाम के एक दूसरे अपराधी ने गोली माकर हत्या कर दी थी।

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मुख्तार को इस बात का खौफ था कि उनका सबसे बड़ा दुश्मन बृजेश सिंह उन्हें रास्ते से हटाने के लिए इस तरह का कोई प्लान बना सकता है। खैर बात करते हैं मुख्तार के रिश्ते में लगने वाले चाचा हामिद अंसारी की। भारतीय विदेश सेवा में अपनी सेवाएं दे चुके हामिद अंसारी देश के उपराष्ट्रपति बनने से पहले अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर भी रह चुके हैं।

देश के जानेमाने पत्रकार जावेद अंसारी रिश्ते में मुख्तार के भाई हैं

मुख्तार के साथ एक और वाहिद शख्स का नाम जुड़ता है और वो हैं वरिष्ठ पत्रकार जावेद अंसारी। देश की कई समाचार पत्र और पत्रिकाओं में जावेद अंसारी की लेखनी पढ़ी जा सकती है। जावेद अंसारी रिश्ते में मुख्तार के भाई लगते हैं।

अब सोचिए कि इस तरह की शख्सियतों की सरपरस्ती और सोहबत में पले-बढ़े मुख्तार ने आखिर ये कैसी राह पकड़ ली। राह वो भी अपराध की, जो केवल वन-वे होता है उस रास्त में कोई यू-टर्न नहीं होता।

हम यहां अब विस्तार से बता रहे हैं, मुख्तार के अपराध के दलदल में धंसने की कहानी।

दरअसल मुख्तार ने अपने कॉलेज में दिनों में ही पढ़ाई छोड़कर हथियारों से राब्ता गांठ लिया था। 70 का दशक तो किसी तरह मुख्तार ने पार कर लिया लेकिन 80 के दशक में मुख्तार के नौजवानी का जोश उसके लिए भारी पड़ा।

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साल 1988 में पहली बार अपने घर मुहम्मदाबाद गोहना के हरिहरपुर गांव के रहने वाले सचिदानंद राय की हत्या के मामले में मुख्तार का नाम पुलिस की डायरी में दर्ज हुआ। सचिदानंद राय भी दबंग छवि के नेता थे और गाजीपुर नगर पालिका के चेयरमैन रह चुके कम्युनिस्ट नेता सुभानुल्लाह अंसारी के राजनीतिक विरोधी भी थे। सुभानुल्लाह अंसारी मुख्तार के पिता थे।

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सच्चिदानंद राय की हत्या में नाम आने के बाद तो जैसे मुख्तार को उसके मन की मुराद मिल गई। इस एक कांड ने पूरे गाजीपुर में मुख्तार के नाम की दहशत फैला दी। इसके बाद गाजीपुर में आतंक का पर्याय बने साधु सिंह, मकनू सिंह के गिरोह में शामिल होकर मुख्तार पूरी तरह से दुर्दांत बन चुका था।

मुख्तार के साथ बृजेश सिंह भी अपराध की दुनिया में सक्रिय हो गया था

वहीं दूसरी तरफ बनारस के चौबेपुर क्षेत्र के धरहरा निवासी बृजेश सिंह भी यूपी कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई अधूरी छोड़कर पिता रविंद्र सिंह की हत्या का बदला लेने अपने गांव धरहरा वापस आ जाते हैं। गांव में ही हरिहर, पांचू, ओमप्रकाश, नागेंद्र और प्रधान रधुनाथ यादव जमीनी विवाद में बृजेश सिंह के पिता की हत्या कर देते हैं।

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बृजेश सिंह ने पहले पांचू के पिता हरिहर सिंह की हत्या की और उसके बाद एक-एक कर सभी को मौत के घाट उतार डाला। इतनी हत्याओं में वांछित बृजेश भागकर पहुंचता है गाजीपुर के मुडियार गांव में। वहीं उसे मिलता है त्रिभुवन सिंह का साथ।

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त्रिभुवन सिंह की गाजीपुर के सैदपुर में एक प्लॉट को लेकर साधु सिंह और मकनू सिंह से ठनी हुई थी और उसी चक्कर में 1988 में त्रिभुवन सिंह के भाई राजेंद्र सिंह की वाराणसी पुलिस लाइन में गोली मारकर हत्या कर दी साधु सिंह औऱ मकनू सिंह ने। राजेंद्र सिंह यूपी पुलिस में सिपाही थे। इस केस में साधु और मकनू के साथ मुख्तार अंसारी को भी नामजद किया गया और यहीं से आमने-सामने हो गया मुख्तार और बृजेश सिंह का गिरोह। दोनों ओर से न जाने कितने गैंगवार हुए। पूर्वांचल कांप उठा AK-47 की गोलियों से।

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मुख्तार और बृजेश सिंह के बीच यह दुश्मनी तब और गहरी हो उठी जब साल 1991 में वाराणसी के चेतगंज में थाने के ठीक सामने वर्तामान कांग्रेसी नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से कांग्रेस के प्रत्याशी रहे अजय राय के बड़े भाई अवधेश राय को मुख्तार ने गोली मरवा दी। अवधेश राय बृजेश खेमे के आदमी थे और बनारस में बृजेश गैंग का सारा दारोमदार इन्हीं के कंधे पर था। अवधेश राय मूलतः गाजीपुर के ही रहने वाले थे।

मुख्तार अंसारी ने 1995 में पकड़ ली राजनीति की राह

पुलिस का दबाव बढ़ने पर मुख्तार ने साल 1995 में बहुजन समाज पार्टी ज्वाइन कर ली और साल 1996 में पहली बार मऊ सदर की सीट से बसपा प्रत्याशी के तौर चुनाव लड़ा और जीतकर सीधे लखनऊ विधानसभा पहुंचा। उसके बाद तो मुख्तार का बस एक ही लक्ष्य था कि किसी तरह से पूर्वांचल को बृजेश रहित बनाना है।

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उसने प्रशासन के जरिये और अपने गुर्गे के जरिये कई बार प्रयास किया कि बृजेश सिंह का सफाया हो जाए लेकिन मौका आता उससे पहले बृजेश को भी सूचना मिल जाती है और बृजेश बच निकलता। लेकिन धीरे-धीरे पूर्वांचल की गद्दी पर मुख्तार का दबदबा बढ़ता रहा और ब्रजेश सिंह की सत्ता धीरे-धीरे सिमटने लगी।

कोयला व्यवसायी नंद किशोर रूंगटा को अगवा कर मुख्तार ने पूर्वांचल में सनसनी फैला दी

मुख्तार की असली दशहत पू्र्वांचल में तब फैली जब उसने बनारस के सबसे बड़े कोयला व्यवसायी और विश्व हिंदू परिषद के कोषाध्यक्ष नंद किशोर रूंगटा को उनके वाराणसी के भेलूपुर स्थित जवाहर नगर कॉलोनी से उठवा लिया।

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रूगटा के अपहरण ने केवल बनारस ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वांचल में सिहरन पैदा कर दी। 22 जनवरी 1997 को मुख्तार के गुर्गे घर में घुसकर रूंगटा को उठाकर ले गये और उनकी सारी सिक्योरिटी धरी की धरी गह गई। 3 करोड़ की फिरौती उस जमाने में वसूली गई लेकिन रूंगटा कभी घर वापस नहीं पहुंचे।

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मुख्तार को साल 2002 में उस समय बड़ा धक्का लगा जब विधानसभा चुनाव में मोहम्मदाबाद सीट पर भाजपा के कृष्णा नंद राय मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी को हरा देते हैं। मोहम्मदाबाद सीट मुख्तार की पैतृक सीट मानी जाती थी क्योंकि इसी विधानसभा क्षेत्र में उसका घर भी आता था।

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यहां की हार-जीत सब मुख्तार का परिवार तय करता था। साल 2002 में मोहम्मदाबाद से विधायक बनते ही कृष्णा नंद राय गुपचुप तरीके से बृजेश सिंह से संपर्क करते हैं और तय होता है कि अब मुख्तार का अंत कर दिया जाए।

उसरी चट्टी में गरजी AK-47, बृजेश सिंह गैंग ने किया भयानक हमला

गाजीपुर से उसरी-चट्टी में मुख्तार अंसारी के काफिले पर बृजेश गैंग बड़ा हमला करता है और दोनों तरफ से AK-47 से सैकड़ों राउंड गोली चलती है। इस हमले में बृजेश गिरोह ने मुख्तार के तीन लोगों को मार गिराया। वहीं हमले में बृजेश सिंह के भी घायल होने की झूठी खबर उड़ी।

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कुछ समय के बाद यह अफवाह भी उड़ी की बृजेश सिंह इस गोलीबारी में मारे गये। बृजेश के मौत की अफवाह गलत थी और वह अरुण सिंह के नाम से ओडिशा के भुवनेश्वर में छुपकर रहने लगा। इधर पूर्वांचल पर मुख्तार का एकछत्र राज हो गया। मुख्तार का काफिला जिस ओर से गुजरता लोग सलाम ठोंकते।

मऊ दंगे में सामने आया मुख्तार का नाम

साल 2005 में मऊ में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। कहा जाता है कि इस दंगे की योजना मुख्तार ने खुद बनाई थी। दंगों के बीच मुख्तार खुली जीप में मऊ के सड़कों पर निकलता और विरोधियों को अपने अंदाज में निशाने पर लेता।

आलम ये था कि पुलिस मुख्तार की सुरक्षा में पीछे-पीछे भाग रही है और मुख्तार किसी हीरो की तरह पूरे मऊ में बेफिक्र अंदाज में टहलता था। लेकिन थोड़े ही समय के बाद दंगे की परतें खुलने लगती हैं और भड़काऊ भाषण देने के आरोप में पुलिस मुख्तार को गिरफ्तार कर लेती है।

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गिरफ्तारी के बाद जेल में बंद मुख्तार को चैन कहां से मिले। उसे तो 2002 की उसरी-चट्टी की घटना कांटे की तरह चुभ रही थी। उसे पता चल गया था कि उस साजिश में विधायक कृष्णा नंद राय का भी हाथ था। जेल में बंद मुख्तार ने अपने गुर्गों को तलब किया और कहा कि अभी बृजेश गैंग को छोड कर पूरा मामला कृष्णा नंद राय पर फोकस करे। कृष्णा नंद राय को रास्ते हटाना जरूरी है नहीं तो वह मोहम्मदाबाद की सीट से विधायक भी हैं और ऐसा न हो कि 5 साल रह गये तो अंसारी बंधुओं की राजनैतिक जमीन ही खत्म हो जाए।

विधायक कृष्णा नंद राय की हत्या का आरोप लगा

कृष्णा नंद राय भी इस बात को अच्छे से समझते थे कि मुख्तार पलटवार जरूर करेगा। इसलिए वो हमेशा बुलेटप्रुफ गाड़ी से चला करते थे लेकिन 25 नवंबर 2005 की शाम उन्हें अपने घर के पास के सियारी गांव में जाना था। बुलेटप्रुफ गाड़ी में कुछ खराबी थी तो राय एक साधारण सी गाड़ी लेकर उस गांव में पहुंच गये। वहां क्रिकेट मैच की प्रतियोगिता का उद्घाटन करने के बाद जैसे ही वह अपने गांव की ओर रवाना हुए, घात लगाये मुख्तार के गुर्गों ने चारों ओर से घेर कर AK-47 से बर्स्ट फायर झोंका।

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कृष्णा नंद राय की गाड़ी पर लगी कुल 500 राउंड गोलियां ने पूरी गाड़ी की धज्जी उड़ा दी। इस घटना में मुख्तार के आदमियों ने भाजपा विधायक राय समेत कुल 7 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद तो पूरे पूर्वांचल में जो कोहराम मचा, वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत भाजपा के सभी राष्ट्रीय स्तर के नेता कृष्णा नंद राय हत्याकांड में धरना देने बनारस पहुंचे।

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कृष्णा नंद राय हत्याकांड मामले की सीबीआई ने सख्त जांच की। यह केस आज भी कोर्ट में टल रहा है। इस मामले में मुख्तार को सजा होती है या नहीं ये तो भविष्य का सवाल है लेकिन एक बात तो साफ तय है कि मुख्तार चाहे किसी भी जेल में हों, पूर्वांचल में उनका सिक्का आज भी चलता है।

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यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि साल 2009 के लोकसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी ने कानपुर जेल में रहते हुए वाराणसी से पर्चा भरा। वो एक भी दिन जेल से बाहर नहीं आये और उनके मुकाबले खड़े थे पूर्व मानव संसाधन मंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी।

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मुरली मनोहर जोशी ने प्रचार का तमाम समां बांधा लेकिन मुख्तार ने उन्हें जेल में बैठे-बैठे पानी पिला दिया। जेल में रहते हुए मुख्तार दूसरे नंबर पर आया और मुरली मनोहर जोशी मात्र कुछ हजार वोटों से जीत पाये। जिस दिन मतगणा हो रही थी, जोशी खेमें में सुबह से हार की मायूसी छायी हुई थी लेकिन वोटों के अंतिम दौर की गिनती के बाद मुरली मनोहर जोशी कुछ हजार वोटों के फासले से वाराणसी सीट जीते और संसद पहुंचे।

मुख्तार आज 16 साल से जेल की सलाखों के पीछे है लेकिन उसके बाहुबल की हनक थोड़ी भी कमजोर नहीं हुई है।

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