1942 में आजाद हुआ देश का इस्सुरू गांव आज भी विकास की राह देख रहा है। देश भले ही 1947 में आजाद हुआ हो लेकिन कर्नाटक में शिवमोगा के इस्सुरू गांव ने खुद को आजादी से 5 साल पहले ही आजाद घोषित कर दिया था। हालांकि इसके लिए 6 बहादुर गांववालों को फांसी पर लटका दिया गया था।

गौरतलब है कि कर्नाटक चुनाव नजदीक है और इसके लिए सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रचार भी तेज कर दिया है। लेकिन कर्नाटक में चुनावी रैली करने के लिए पार्टी के प्रतिनिधि जाते जरुर हैं लेकिन इस गांव की ओर कोई नहीं देखता। बता दें, यह गांव शिकारीपुरा क्षेत्र में आता है जहां से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा मैदान में हैं और यहां लगभग 4,800 मतदाता हैं।

वहीं इस बारे में शिकारीपुरा से पूर्व बीजेपी अध्यक्ष रुद्रपैया ने बताया, कि जब येदियुरप्पा मुख्यमंत्री थे, उन्होंने इस गांव के विकास के लिए 12 करोड़ रुपये आवंटित जरुर किए थे लेकिन येदियुरप्पा के जाने के बाद से गांव में विकास कार्य की गयी धीमी पड़ गई।

विदित है कि गांव में आज भी एक ऐसा पत्थर है, जिस पर जिनहल्ली, मलप्पा, सूर्यानारायणाचर, बडकहल्ली हलप्पा और गौडरशंकरप्पा के नाम लिखे हैं, जिन्हें 8 मार्च, 1943 में ब्रिटिश राज के खिलाफ बगावत करने पर फांसी की सजा दे दी गई थी। अब गांव वाले इस पत्थर की जगह बड़े स्मारक की मांग कर रहे हैं।

वहीं इस बारे में जब गांववालों से बात की गई तो उन्होंने बताया, कि गांव में विकास के लिए बहुत कुछ होना है लेकिन राजनीतिक दलों इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं। इस बारे में ग्राम पंचायत सेक्रटरी प्रमोद ने बताया, कि स्मारक के विकास के लिए मनरेगा के तहत प्रस्ताव है लेकिन आचार संहिता लागू होने के कारण विकास कार्य चुनाव के बाद ही हो सकते हैं।

लोगों का कहना है कि विकास कार्यों का श्रेय बीजेपी और कांग्रेस आपस में बांटना नहीं चाहते। इसका खामियाजा गांव को भुगतना पड़ता है।

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