दिल्ली की दहलीज पर पिछले 9 महीने से किसानों का आंदोलन चल रहा है। सिंघू बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर अन्नदाता 9 महीनों से तीनों कृषि कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। पिज्जा किसान आंदोलन की तस्वीर बदल रही है।

एक समय था जब आंदोलन में पकवानों का ढेर था। कहीं जलेबी बन रही होती थी तो कहीं समोसे तले जा रहे होते, अब इसकी तस्वीर बदल गई है। किसानों को दो समय का भोजन भी मुश्किल से मिल रहा है। मगर अब यहां पर मददगारों का इंतजार है।आंदोलन के बीच पंजाब की पिन्नी (मिठाई) भी खूब चलती थी। वहां के गांवों में भारी मात्रा में खोये से पिन्नी तैयार की जाती थी और फिर आंदोलन स्थल पर पहुंचाई जाती थी।

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हरियाणा के गांव गांव से दूध-दही मट्ठा जमाकर बॉर्डर पर भजा जाता था लेकिन अब किसानों को ठीक से रोटी सब्जी भी नहीं मिल रहा है। जलेबी तो कई तंबुओं में आंदोलन के बीच ही पकती थी। पकवानों के कारण आंदोलन में भारी भीड़ हुआ करती थी। लेकिन अब दिल्ली की दहलीज पर न पकवाने हैं न जनता की भीड़ है। जिन बड़े बडे बर्तनों में पकवानें बनाई जाती थी वह पूरी तरह खाली पड़ा है। तंबूओं में किसान नहीं है। चूल्हा तो है लेकिन राशन नहीं है।

प्रदेश के गांवों से आने वाली टोलियां यहां पर लड्डू लेकर आती थी। मगर अब यहां पर डटे आंदोलनकारियों के तंबुओ में दो वक्त की रोटी के अलावा और किसी पकवान की खूशबू कहीं महसूस नहीं होती। एक तरफ तो यह दावा किया जा रहा है कि आंदोलन जारी रहेगा, लेकिन दूसरी तरफ यहां पर न तो पहले जैसे दिन हैं और न पहले जितनी भीड़, तो जाहिर है कि आंदोलन ढलान पर है।

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पकवानों का ढेर खत्म होते ही आंदोलन कर रहे किसान अपने अपने गांव लौट गए हैं। और अब बुलाने से भी नहीं आ रहे हैं।

गौरतलब है कि किसान आंदोलन जब शुरू हुआ तो बहुत शांति प्रिय ढंग से शुरू हुआ था। पंजाब के किसान हरियाणा को पार करते हुूए टिकरी बॉर्डर तक पहुंच गए मगर कहीं ज्यारदा हिंसा नहीं देखने को मिली। इस बीच कई किसानों की हार्ट अटैक व अन्यर कारणों से मौत भी हुई मगर किसान शांत रहे। मगर 26 जनवरी 2020 को ट्रैक्टकर रैली में लाल किले पर झंडा फरहाने की घटना ने आंदोलन की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए।

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बॉर्डर पर किसानों की भीड़ खत्म हो गई है। इस बीच भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश सिंह टिकैत कई बार बयान दे चुके हैं कि तीनों कृषि बिल रद्द होने तक वे बॉर्डर से नहीं हटेंगे।

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