सरकार ने Collegium द्वारा भेजे गए 21 में से 19 जजों की फाईल वापस लौटाई, जानिए कैसे होती है भारत में जजों की नियुक्ति और क्यों हो रहा है सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच टकराव

Collegium प्रणाली न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण (Appointments and Transfer) की प्रणाली है, जो संसद के किसी अधिनियम या संविधान के प्रावधान द्वारा नहीं बनाई गई है. ये प्रणाली सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के जरिये विकसित हुई है.

0
114
Supreme Court on UP Nikay Chunav
Supreme Court

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने सोमवार 28 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम (Collegium) द्वारा जजों की नियुक्ति को लेकर भेजे गए 21 में 19 नामों को वापिस सुप्रीम कोर्ट को लौटा दिया है. केंद्र सरकार ने जिस दिन ये नाम वापस लौटाए थे उसी दिन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने जजों की नियुक्ति को लेकर सुनवाई की थी.

10 नामों को दूसरी बार भी नहीं मिली मंजूरी

सरकार द्वारा वापस लौटाए गए 19 नामों में से 10 ऐसे थे, जिन्हें दूसरी बार मंजूरी के लिए भेजा गया था. इन 10 नामों में से 5 इलाहाबाद हाई कोर्ट, दो-दो केरल और कलकत्ता हाई कोर्ट और एक कर्नाटक हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर था.

वहीं केंद्रीय कानून मंत्री ने ट्वीट कर जानकारी दी कि केंद्र सरकार ने अधिवक्ता संतोष गोविंद चापलगांवकर और मिलिंद मनोहर साठये की बॉम्बे हाई कोर्ट में बतौर जज नियुक्ति को मंजूरी दे दी है. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम (Collegium) ने 12 सितंबर को इनके नाम की सिफारिश की थी.

ये भी पढ़ें – कॉलेजियम प्रणाली पर कानून मंत्री की टिप्‍पणी पर Supreme Court ने जताई आपत्ति, कहा- जजों की नियुक्ति पर तो आप बैठे हुए हैं

वो नाम जिनको नहीं मिल पाई मंजूरी

सुप्रीम कोर्ट Collegium ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में जज के लिए ऋषद मुर्तजा के नाम की सिफारिश 24 अगस्त, 2021 और 14 जुलाई, 2022 को को थी. मुर्तजा के साथ ही शिशिर जैन, ध्रुव माथुर और विमलेंदु त्रिपाठी के नाम की भी सिफारिश की गई थी. इनके अलावा मनु खरे के नाम की पहली सिफारिश 6 अक्टूबर, 2021 और दूसरी बार 14 जुलाई, 2022 को की गई थी. केंद्र सरकार ने इन सभी के नाम वापस लौटा दिए हैं.

इनके अलावा कलकत्ता हाई कोर्ट के लिए अमितेश बनर्जी के नाम की सिफारिश 27 जुलाई, 2019 और 1 सितंबर, 2021 और साक्या सेन के नाम की पहली सिफारिश 24 जुलाई, 2019 और दूसरी बार 8 अक्टूबर, 2021 को की गई थी. इसी तरह केरल हाई कोर्ट के लिए संजीव कल्लूर अराक्कल और अरविंद कुमार बाबू थावराकट्टील के नाम 1 सितंबर, 2021 और दूसरी बार 11 नवंबर, 2021 को भेजे गए इन नामों को भी मंजूरी नहीं दी है.

वो नाम जिनकी तीन बार हो चुकी है सिफारिश

कॉलेजियम को वापस भेजी गई फाईलों में कर्नाटक हाई कोर्ट में जज की नियुक्ति के लिए नागेंद्र रामचंद्र नायक का नाम भी है. नायक की पहली बार 3 अक्टूबर, 2019 को, दूसरी बार 2 मार्च, 2021 और तीसरी बार 1 सितंबर, 2021 को सिफारिश की गई थी, लेकिन उनके नाम को मंजूरी नहीं मिल पाई.

क्या कहा कोर्ट ने?

इससे पहले सोमवार 28 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने भारत में जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजु के रुख की कड़ी आलोचना की थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार कॉलेजियम सिस्टम की ओर से भेजे गए नामों पर फैसला नहीं लेकर नियुक्ति प्रक्रिया को प्रभावित कर रही है. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह इस बयान को कोर्ट के संज्ञान में लेकर आए थे जिसके बाद कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के सामने अपना रुख स्पष्ट किया है.

वहीं, सोमवार को ही जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से पूछा था कि, क्या राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (National Judicial Appointments Commission- NJAC) के खारिज (सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे 6 अक्टूबर 2015 को खारिज कर दिया गया था) होने के कारण केंद्र ऐसा कर रहा है? ऐसा मालूम होता है कि सरकार इससे खुश नहीं है और इसी कारण कॉलेजियम के भेजे नामों को लेकर देरी की जा रही है. कानून मंत्री किरेन रिजिजू के कॉलेजियम को लेकर दिए बयान से तो ऐसा ही प्रतीत होता है, लेकिन एक स्थापित कानून को नहीं मानने का यह कोई कारण नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट इस समय जजों की नियुक्ति को लेकर पिछले साल 20 अप्रैल के आदेश पर दायर याचिका की सुनवाई कर रही है. इसमें जजों की नियुक्ति को लेकर समयसीमा की ‘जानबूझकर अवज्ञा’ का आरोप लगाया गया है. मामले को लेकर अगली सुनवाई 8 दिसंबर को होगी.

क्या कहा था किरण रिजिजु ने?

देश के कानून मंत्री किरण रिजिजु ने एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में कहा था कि, “मैं कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना नहीं करना चाहता. मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि इसमें कुछ कमियां हैं और जवाबदेही नहीं है. इसमें पारदर्शिता की भी कमी है. अगर सरकार ने फाइलों को रोककर रखा हुआ तो फाइलें न भेजी जाएं.”

Kiren Rijuju

इससे पहले भी कानून मंत्री कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना करते रहे हैं, एक बार उन्होंने कहा था कि न्यायाधीश योग्यता को दरकिनार कर अपने पसंद के लोगों की नियुक्ति या पदोन्नति की सिफारिश करते हैं.

नियुक्ति प्रणाली में सरकार के सुधारों को नहीं मिल पाई थी मंजूरी

केंद्र सरकार द्वारा जजों कि नियुक्ति को लेकर ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’, जिसको 99वें संशोधन अधिनियम, 2014 के माध्यम से प्रतिस्थापित करने के प्रयास किया गया था को सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में इस आधार पर खारिज कर दिया कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिये खतरा है.

भारत में जजों की नियुक्ति?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(2) (Article 124(2) और 217 (Article 217) सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति से संबंधित हैं.

कॉलेजियम सिस्टम? (Collegium System)

कॉलेजियम प्रणाली न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण (Appointments and Transfer) की प्रणाली है, जो संसद के किसी अधिनियम या संविधान के प्रावधान द्वारा नहीं बनाई गई है. ये प्रणाली सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के जरिये विकसित हुई है.

कैसे विकसित हुई ये प्रणाली?

प्रथम न्यायाधीश मामला (1981) में निर्धारित किया गया कि न्यायिक नियुक्तियों और तबादलों पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) के सुझाव की “प्रधानता” को “ठोस कारणों” (Solid Reasons) के चलते अस्वीकार किया जा सकता है. इस एक फैसले ने अगले 12 वर्षों (दूसरा न्यायाधीश मामला 1993 तक) के लिये न्यायिक नियुक्तियों में न्यायपालिका पर कार्यपालिका की प्रधानता स्थापित कर दी.

वहीं दूसरा न्यायाधीश मामला (1993) में सर्वोच्च न्यायालय ने कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत करते हुए कहा कि “परामर्श” (Advice) का अर्थ वास्तव में “सहमति” (Consent) है. इसी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ये भी कहा कि नियुक्ति के मामलो में CJI की व्यक्तिगत राय नहीं होगी, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से ली गई एक संस्थागत (Institutional) राय होगी.

इसके अलावा 1998 के तीसरे न्यायाधीश मामले में राष्ट्रपति द्वारा जारी एक प्रेजिडेंशियल रेफरेंस (Presidential Reference) (अनुच्छेद 143) के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने पांच सदस्यीय निकाय के रूप में कॉलेजियम का विस्तार किया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और उनके चार वरिष्ठतम सहयोगी शामिल होंगे.

कॉलेजियम प्रणाली का कौन होता है प्रमुख?

सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम की अध्यक्षता CJI द्वारा की जाती है और इसमें सर्वोच्च न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं.

भारत में न्यायपालिका को मजबूत रखने के लिए तंत्र?

भारत में जजों के कार्यकाल की सुरक्षा के अलावा कई अन्य प्रावधान किए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट में एक न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर बना रह सकता है. जज को केवल ‘सिद्ध दुर्व्यवहार या अक्षमता’ (Proved Misbehaviour or Incapacity)  के आधार पर ही राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है.

इसके अलावा न्यायाधीशों के वेतन, भत्तों आदि को उनके कार्यकाल के दौरान घटाया नहीं जा सकता. इसके अलावा वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency- Article 360) की अवधि के अलावा न्यायाधीशों के वेतन को कभी भी कम नहीं किया जा सकता है. वहीं, जजों के वेतन एवं भत्ते भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) से दिए जाते हैं और इसलिये ये संसद के मतदान के अधीन नहीं होते हैं. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने अपनी कार्य प्रक्रियाओं और अपनी स्थापना के साथ-साथ अपने कर्मचारियों की सेवा शर्तों को तय करने के लिये भी पूर्ण रूप से स्वतंत्र है.

वहीं भारत में किसी न्यायाधीश के आचरण या उसके द्वारा किए जा रहे कार्यों को लेकर संसद में तब तक कोई चर्चा नहीं हो सकती जब तक कि उसे हटाने का प्रस्ताव न लाया गया हो. इन सब के अलावा यदि कोई व्यक्ति या प्राधिकरण उसके अधिकार को कम या अवमानित करने का प्रयास करता है तो सुप्रीम कोर्ट की अवमानना (Contempt of Court) के लिये उसे दंडित कर सकता है.

चुनौतियां भी कम नहीं?

इस समय देश में न्यायालयों के समक्ष 4 करोड़ से भी अधिक मामले लंबित पड़े हैं. उनमें से 50 लाख के करीब मामले हाई कोर्ट के पास लंबित हैं जबकि सुप्रीम कोर्ट में 1 नवंबर 2022 तक 68,971 मामले लंबित हैं. इसके अलावा यह आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. वहीं, देश के उच्च न्यायालयों में लगभग 400 रिक्तियां हैं, जबकि और निचली अदालतों में करीब 35 फीसदी पद खाली पड़े हैं.

इसके अलावा भारतीय जेलों में बंद अधिकांश कैदी वे हैं जो अपने मामलों में निर्णय को लेकर इंतजार कर रहे हैं (यानी कि वे विचाराधीन कैदी हैं) और उन्हें फैसला आने तक जेल में बंद रखा जाता है. वहीं, अधिकांश आरोपितों को जेल में एक लंबी सजा काटनी पड़ती है जो उनके दोषी साबित होने पर दी जा सकने वाली सजा से भी ज्यादा है.

भारत जैसे 135 करोड़ की आबादी वाले देश में 17 लाख के लगभग पंजीकृत वकीलों (Lawyers) में से केवल 15 फीसदी ही महिलाएं हैं. उच्च न्यायालयों में महिला जजों की संख्या मात्र 11.5 फीसदी है, जबकि उच्चतम न्यायालय में वर्तमान में 27 कार्यरत जजों में से मात्र 3 ही महिला न्यायाधीश हैं.

ये भी पढें – Supreme Court ने कहा जारी रहेगा EWS आरक्षण लेकिन 2 जजों ने बताया असंवैधानिक, जानिए इस आरक्षण के बारे में सबकुछ

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here