Indira Gandhi भारत की एक ऐसी पीएम रहीं जिन्हें शुरुआत में तो कांग्रेस पार्टी के नेताओं की कठपुतली कहा गया लेकिन बाद में वे पाकिस्तान के दो टुकड़े करने वाली और 1971 की जंग में भारत को जीत दिलाने वाली नेता बनीं। 1977 के अंत में, इंदिरा गांधी का रुतबा ये था कि कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष डी. के. बरुआ ने “इंडिया इज इंदिरा एंड इंदिरा इज इंडिया” का नारा दिया था। आइए आपको इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लिए गए उन फैसलों के बारे में बताते हैं जिनका आज के भारत पर बड़ा गहरा असर रहा है।
राष्ट्रपति चुनाव में वीवी गिरि का किया समर्थन
1969 के राष्ट्रपति चुनाव में इंदिरा गांधी ने नीलम संजीव रेड्डी के बजाय निर्दलीय उम्मीदवार वी.वी. गिरी का समर्थन किया। तब से देश की राजनीति में ये मान्यता बनी कि राष्ट्रपति वह व्यक्ति बनेगा जिसे प्रधानमंत्री चाहता हो।
वित्त मंत्री को बिना बताए कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण की घोषणा
इंदिरा गांधी ने वित्त मंत्री मोरारजी देसाई से सलाह लिए बिना बैंकों के राष्ट्रीयकरण की घोषणा की थी। 2016 में जब पीएम मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की थी तो तब आरोप लगाए जाने लगे थे कि पीएम मोदी ने किसी से सलाह लिए बिना ये आर्थिक फैसला लिया। कहा जा सकता है कि उन्होंने इंदिरा गांधी से प्रेरणा लेते ही ऐसा किया होगा।
गरीबी हटाओ का ऐतिहासिक नारा
1971 के चुनावों से पहले इंदिरा गांधी के घोषणा पत्र में रियासतों के पूर्व शासकों के प्रिवी पर्स को समाप्त करने और भारत में चौदह सबसे बड़े बैंकों के राष्ट्रीयकरण का प्रस्ताव शामिल था। ‘गरीबी हटाओ’ 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी का प्रमुख नारा था। 2014 में पीएम मोदी ने जब लोकसभा चुनाव में अच्छे दिन का नारा दिया था वो इस घटना की पुनरावृत्ति जैसा लगता है।
भारतीय उपमहाद्वीप का बदला नक्शा
1971 के चुनाव के बाद गांधी की सबसे बड़ी उपलब्धि दिसंबर 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की निर्णायक जीत के साथ आई, जो बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के अंतिम दो हफ्तों में हुई, जिसके कारण स्वतंत्र बांग्लादेश का गठन हुआ।
हाईकोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर लगाया आपातकाल
12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चुनावी कदाचार के आधार पर 1971 में इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को रद्द कर दिया। अदालत ने उन्हें सांसद पद से इस्तीफा देने और छह साल के लिए चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद इंदिरा गांधी ने विपक्ष की गिरफ्तारी का आदेश दिया और आपातकाल लागू किया। ऐसा कर इंदिरा गांधी ने एक गलत उदाहरण पेश किया। जिसके लिए आज भी उनकी जमकर आलोचना की जाती है।
संजय गांधी को बढ़ावा दिया
आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के छोटे बेटे, संजय गांधी छाये रहे। उन्होंने बिना किसी सरकारी पद के शक्ति का प्रयोग किया। यह भी कहा जाता है कि संजय गांधी का अपनी मां पर पूरा नियंत्रण था और सरकार पीएमओ के बजाय प्रधानमंत्री के घर से चलाई जाती थी। इसलिए आज भी देश में लोग ऐसे पीएम की चाहत रखते हैं जो खुद के बूते फैसले ले न कि किसी के बताए हुए रास्ते पर चले।
भिंडरावाले का समर्थन कर गलती की
गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी जनवरी 1980 में सत्ता में वापस आ गई। अकाली दल को विभाजित करने और सिखों के बीच लोकप्रिय समर्थन हासिल करने के प्रयास में, गांधी की कांग्रेस पार्टी ने रूढ़िवादी धार्मिक नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले को पंजाब की राजनीति में प्रमुखता दिलाने में मदद की। इसका खामियाजा देश को बाद में भुगतना पड़ा।
समान काम समान वेतन
पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान काम के लिए समान वेतन का सिद्धांत भारतीय संविधान में गांधी प्रशासन के तहत निहित किया गया था।
हिंदी और इंग्लिश दोनों का प्रचलन इंदिरा गांधी ने चलाया
1967 में, इंदिरा गांधी ने एक संवैधानिक संशोधन पेश किया जिसने आधिकारिक भाषाओं के रूप में हिंदी और अंग्रेजी दोनों के वास्तविक उपयोग की गारंटी दी। इसने भारत में द्विभाषावाद की आधिकारिक सरकारी नीति स्थापित की। ये सिलसिला आज भी चला आ रहा है।
परमाणु परीक्षण
1974 में, भारत ने राजस्थान में पोखरण के रेगिस्तानी गांव के पास, “स्माइलिंग बुद्धा” नामक अनौपचारिक रूप से एक भूमिगत परमाणु परीक्षण सफलतापूर्वक किया। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में देश एक परमाणु शक्ति बना।
खाद्य सुरक्षा और आत्मनिर्भरता
भारत की खाद्य समस्याओं से निपटने के लिए, इंदिरा गांधी ने कृषि पर जोर दिया। इसने देश को एक ऐसे राष्ट्र में बदल दिया जो आयातित अनाज पर निर्भर न होकर बड़े पैमाने पर खुद को खिलाने में सक्षम था और खाद्य सुरक्षा के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहा।
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