ईरान के राष्ट्रपति के चुनाव में हसन रूहानी की जीत बहुत सुहानी है, क्योंकि पिछले कुछ दिनों से यह छवि पेश की जा रही थी कि रूहानी हार जाएंगे। बहुत-से अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को भी लग रहा था कि इस बार रूहानी हार जाएंगे, क्योंकि ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनई उनसे नाराज हैं और उन्होंने अपने एक परम भक्त इब्राहिम रईसी को उनके खिलाफ खड़ा कर दिया है।

लोग यह मानकर चल रहे थे कि सर्वोच्च नेता, जिसके खिलाफ हो, भला वह ईरान का राष्ट्रपति कैसे बन सकता है? ईरान में अभी धार्मिक नेताओं का दबदबा बना हुआ है। ग्रामीण और गरीब लोगों पर उनका जादू अभी भी बरकरार है। वे सब लोग रूहानी के खिलाफ वोट करेंगे और रईसी को जिता देंगे। रूहानी अपने पिछले राष्ट्रपति-काल में उन धार्मिक नेताओं के बीच अलोकप्रिय हो गए थे, जो अमेरिका से घृणा करते हैं।

इन नेताओं का कहना यह था कि रूहानी ने पश्चिमी देशों के दबाव में आकर परमाणु-समझौता कर लिया, जिसके कारण अब ईरान बम नहीं बना पाएगा। रूहानी को कई आयतुल्लाह ने मेरुदंडहीन और अराष्ट्रीय नेता भी बताया याने रूहानी के खिलाफ इस्लाम और राष्ट्रवाद दोनों को हथियार बनाया गया। इसके बावजूद रूहानी जीत गए। उन्हें 57 प्रतिशत वोट मिले और उनके प्रतिद्वंदी रईस को 38 प्रतिशत वोट मिले। यह उन्हें करारी शिकस्त थी।

इस हार का सदमा खामेनई को जरुर लगेगा लेकिन उनसे आशा की जाती है कि वे ईरानी जनता की राय का सम्मान करेंगे और रूहानी को राज चलाने की पूरी स्वतंत्रता देंगे। यह ठीक है कि ईरान अभी भी आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रहा है लेकिन रूहानी को इस बात का श्रेय है कि उन्होंने परमाणु-विवाद सुलझा लिया है, जिसकी वजह से ईरान पर लगे कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हट गए हैं। समय के साथ अर्थ-व्यवस्था अपने आप पटरी पर आएगी। रूहानी, क्योंकि नरमपंथी हैं, इसलिए वे ट्रंप जैसे टेढ़े नेता से भी संबंध निभा लेंगे।

इस समय अमेरिका, रुस और सीरिया के शासक बशर अल असद का समर्थन कर रहे हैं और आईएसआईएस का विरोध ! रूहानी भी यही कर रहे हैं। इराक की अमेरिकापरस्त हैदरी सरकार को भी रूहानी का समर्थन है। इसके अलावा रूहानी ने भारत-ईरान संबंधों को भी घनिष्ट बनाने की कोशिश की है। चाहबहार का बंदरगाह भारत बना रहा है और तेलोत्खनन भी कर रहा है। कुलभूषण जाधव के मामले में भी ईरान भारत के साथ है। रूहानी आतंकवाद के खिलाफ हैं। उनका दुबारा राष्ट्रपति चुना जाना जितना ईरान के लिए फायदेमंद है, उतना ही दक्षिण एशिया के लिए भी है।

डा. वेद प्रताप वैदिक

Courtesyhttp://www.enctimes.com

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here