न फाड़ा होता वो अध्यादेश तो बच सकते थे राहुल! जानें क्या हुआ था 10 साल पहले ?

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Rahul Gandhi

Rahul Gandhi: गुजरात की एक अदालत ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मानहानि मामले में दो साल की सजा सुनाई है। हालांकि, राहुल को 10 हजार रुपये की मुचलके पर जमानत मिल गई है। लेकिन अब उनकी संसद की सदस्यता पर तलवार लटक रही है। अगर राहुल गांधी किसी भी तरह हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से मामले में पार पा जाते हैं तो उनकी संसद सदस्यता बरकरार रहेगी। राहुल के पास 30 दिनों की मोहलत है ताकि वो सूरत के अदालत के फैसले को चैलेंज कर सके। हालांकि, इसके बावजूद भी राहुल गांधी की सदस्यता बच सकती थी अगर 10 साल पहले कांग्रेस सांसद अपनी ही सरकार के अध्यादेश के टूकड़े नहीं किए होते। आइये जानते हैं कि आखिर 10 साल पहले क्या हुआ था?

जब राहुल ने फाड़ा अध्यादेश

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने मनमोहन सिंह कैबिनेट से पारित एक अध्यादेश को बकवास बताया था। इतना ही नहीं उन्होंने उसे फाड़ भी दिया था। तब गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि ये दर्शाता है कि ‘राहुल कितने अपरिपक्व नेता’ हैं। बाद में इस मामले को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने कहा था, “मैं आपको बताता हूं कि अंदर क्या चल रहा है। हमें राजनीतिक कारणों के चलते इसे (अध्यादेश) लाने की जरूरत है। हर कोई यही करता है। कांग्रेस पार्टी ये करती है, बीजेपी ये करती है, जनता दल यही करती है, समाजवादी यही करती है और हर कोई यही करता है, लेकिन ये सब अब बंद होना चाहिए।’

उन्होंने आगे कहा था, “मेरा मानना है कि सभी राजनीतिक दलों को ऐसे समझौते बंद करने चाहिए, क्योंकि अगर हम इस देश में भ्रष्टाचार से लड़ना चाहते हैं, तो हम सभी को ऐसे छोटे समझौते बंद करने पड़ेंगे। कांग्रेस पार्टी जो कर रही है उसमें मेरी दिलचस्पी है, हमारी सरकार जो कर रही है, उसमें मेरी दिलचस्पी है और मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि इस अध्यादेश के संबंध में हमारी सरकार ने जो किया है वो गलत है।’ बताते चले कि आज यदि मनमोहन सिंह सरकार में वो अध्यादेश पास हो गया होता तो राहुल गांधी की संसद सदस्यता पर तलवार भी नहीं लटक रहा होता।

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क्या था अध्यादेश?

मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने साल 2013 में एक अध्यादेश पारित किया था। इस अध्यादेश का मकसद था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्क्रिय करना था। दरअसल, न्यायालय ने कहा था कि दोषी पाए जाने पर सांसदों और विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी जाएगी। बता दें कि 2013 में कांग्रेस के खिलाफ देशभर में खूब आंदोलन चलाए जा रहे थे। सरकार की इस अध्यादेश के खिलाफ बीजेपी सहित तमाम विपक्षी पार्टियां सरकार के खिलाफ थीं। कांग्रेस सरकार पर आरोप लग रहे थे कि वो भ्रष्टाचारियों को बढ़ावा दे रही है। इसलिए अध्यादेश लाया गया है।

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