25 जनवरी 1950 से अब तक 20 चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति हो चुकी है किंतु इनके निर्वाचन की प्रक्रिया पर कोई कानून या नियम अभी तक नहीं बने हैं। इसी कारण इसकी पारदर्शिता पर भी कभी-कभी सवाल उठने लगते हैं। इसी को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट काफी सख्त हुआ है। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से सवाल किया कि भारत निर्वाचन आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए संविधान में किए गए प्रावधानों के अनुरूप कोई कानून क्यों नहीं है। कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग में नियुक्ति के लिए अगर कोई नियम,कानून नहीं है तो न्यायालय का दखल देना जायज है। हालांकि कोर्ट ने कहा कि अभी तक की नियुक्तियां निष्पक्ष और सही ढंग से हुई है लेकिन इसमें नियम-कानून बनना आवश्यक है।

इससे पहले चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। इस याचिका में चुनाव आयुक्तों के चुनाव के लिए नेता विपक्ष और मुख्य न्यायाधीश की सदस्यता वाले एक पैनल की मांग की गई थी। इसपर मुख्य न्यायाधीश जे.एस.खेहर और न्यायमूर्ति डी.वाई.चंद्रचूड़ की पीठ ने केंद्र को हिदायत दी कि वो इसपर जल्द ही काम करें और कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार से कहा कि आशा है कि इस मामले का निपटारा जल्द ही होगा।

बता दें कि चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त समेत तीन चुनाव आयुक्त होते हैं। इन सब की नियुक्ति राष्ट्रपति केंद्र सरकार की सिफारिश पर करते हैं। साथ ही इस याचिका में जो मांग उठाई गई है। ऐसी ही मांग 2012 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी उठाई थी। उन्होंने कहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति बिपार्टिशन कॉलेजियम के तहत होनी चाहिए। इसमें कुछ लोगों का एक पैनल होना चाहिए जिसमें देश के पीएम, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, लॉ मिनिस्टर, और लोकसभा और राज्यसभा के विपक्ष के नेता हो।

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