Baisakhi 2022: 14 अप्रैल को मनाई जाएगी बैसाखी, जानिये क्‍यों और कैसे? मनाते हैं बैसाखी

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Baisakhi 2022
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Baisakhi 2022: पंजाब समेत देशभर में बैसाखी 14 अप्रैल को मनाई जाएगी। बैसाखी मनाने के पीछे दो बातें मुख्‍य रूप से प्रचलित हैं। आज ही के दिन वर्ष 1699 में सिख पंथ के 10वें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसके साथ ही इस दिन को मनाना शुरू किया गया था।आज ही के दिन पंजाबी नए साल की शुरुआत भी होती है।

पंजाब में रबी की फसल पककर पूरी तरह तैयार हो जाती है और यही कटाई का समय भी शुरू होता है। बैसाखी के त्‍योहार को हर जगह अलग-अलग नामों से जाना जाता है।

असम में इसे बिहू ,बंगाल में नबा वर्षा, केरल में पूरम विशु के नाम से लोग इसे मनाते हैं।धार्मिक मान्‍यता के अनुसार बैसाखी अप्रैल में तब मनाया जाता है, जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। यह घटना हर साल 13 या 14 अप्रैल को ही होती है।

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Baisakhi 2022

Baisakhi 2022: गुरु ग्रंथ साहिब को अपना मार्गदर्शक बनाया

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Baisakhi 2022

जानकारी के अनुसार 13 अप्रैल 1699 को सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह ने गुरुओं की वंशावली को समाप्त कर दिया। इसके बाद सिख धर्म के लोगों ने गुरु ग्रंथ साहिब को अपना मार्गदर्शक बनाया। बैसाखी के दिन ही सिख लोगों ने अपना सरनेम सिंह (शेर) को स्वीकार किया। दरअसल यह टाइटल गुरु गोबिंद सिंह के नाम से आया है।

Baisakhi 2022: 14 अप्रैल को मनेगी बैसाखी

इस साल मेष संक्रांति 14 अप्रैल दिन गुरुवार को पड़ रही है। मेष संक्रांति के ही दिन बैसाखी मनाई जाती है। इस आधार पर बैसाखी 14 अप्रैल को मनाई जाएगी। आज के दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं, एक दूसरे को बधाई एवं शुभकामनाएं देते हैं और खुशियां मनाते हैं।

गुरु वाणी सुनकर करते हैं दिन की शुरुआत

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Shri Guru Granth Sahib


सिख समुदाय में बैसाखी का महत्‍व अधिक है। इसी दिन गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहिब जी के स्थान को जल और दूध से शुद्ध किया जाता है। उसके बाद पवित्र किताब को ताज के साथ उसके स्थान पर रखा जाता है।विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन सिख समुदाय में आस्था रखने वाले लोग गुरु वाणी सुनते हैं। श्रद्धालुओं के लिए खीर, शरबत आदि बनाई जाती है।
बैसाखी के दिन किसान प्रचुर मात्रा में उपजी फसल के लिए भगवान का धन्यवाद करते हैं और अपनी समृद्धि की प्रार्थना करते हैं।

वहीं शाम के समय में घरों के बाहर लकड़ियां जलाई जाती हैं। लोग गोल घेरा बनाकर वहां खड़े होते हैं और एक साथ मिलकर उत्सव मनाते हैं। गिद्दा और भांगड़ा करके अपनी खुशियों का इजहार करते हैं।

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