Hindi Diwas | जानिए आखिर 14 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है हिंदी दिवस और हिंदी भाषा को लेकर भारतीय संविधान में किये गये प्रावधानों के बारे में

तीन साल के गहन मंथन के बाद 14 सितंबर 1949 को मुंशी-आयंगर फॉर्मूला कहे जाने वाले एक समझौते पर मुहर लगी और 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 से अनुच्छेद 351 के रूप में जो कानून बना उसमें हिन्दी (Hindi) को राष्ट्रभाषा का दर्जा न देकर राजभाषा का दर्जा दिया गया.

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Hindi Diwas | जानिए आखिर 14 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है हिंदी दिवस, और हिंदी भाषा को लेकर भारतीय संविधान में क्या है प्रावधान - APN News
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1946 से 1949 के दौरान जब भारतीय संविधान बनाया जा रहा था तब बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता वाली भाषा समिति में भाषा (Language) संबंधी कानून बनाने की जिम्मेदारी दो अलग-अलग भाषाई पृष्ठभूमियों से आए दो विद्वान लोगों को सौंपी गई थी.

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भाषा से संबधित कानून बनाने के लिए कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी और नरसिम्हा गोपालस्वामी आयंगर को शामिल किया गया था. इनकी अगुवाई में भारत की राष्ट्रभाषा को तय किये जाने के मुद्दे पर हिंदी के पक्ष और विपक्ष में लंबे समय तक गहन मंथन चला.

हिंदी (Hindi) भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषा है और संविधान के अनुच्छेद 351 ‘हिंदी भाषा के विकास के निर्देश’ से संबंधित है.

काका कालेलकर, मैथिली शरण गुप्त, हजारी प्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविंददास ने हिंदी को राजभाषा बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया.

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14 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है हिंदी दिवस?

तीन साल के गहन मंथन के बाद 14 सितंबर 1949 को मुंशी-आयंगर फॉर्मूला कहे जाने वाले एक समझौते पर मुहर लगी और 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 से अनुच्छेद 351 के रूप में जो कानून बना उसमें हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा न देकर राजभाषा का दर्जा दिया गया. 14 सितंबर को हुए इस फॉर्मूला के बाद से ही 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाए जाने की शुरुआत हुई.

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संविधान क्या कहता है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 120 (भाग-5), अनुच्छेद 210 (भाग-6), अनुच्छेद 343, 344 एवं 348 से 351 तक में संघ की राजभाषा नीति के बारे में विस्तार से बताया गया है. संविधान के भाग-17 (अनुच्छेद 343 से 351) में संघ और राज्यों की राजभाषा निर्धारित की गई है.

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संविधान के भाग-17 में अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा से संबंधित उपबंध शामिल किये गए हैं. राजभाषा के उपबंध चार शीर्षकों; संघ की भाषा, क्षेत्रीय भाषाएं, न्यायपालिका एवं विधि के पाठ एवं अन्य विशेष निर्देशों की भाषा के रूप में शामिल किये गए हैं.

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार “संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी”, उसके आगे और बाद के आठ अनुच्छेदों में बताया गया है कि, हिंदी भारत की राजभाषा होगी, लेकिन सभी आधिकारिक कार्यों का निष्पादन अंग्रेजी में भी होता रहेगा.

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15 वर्षों के लिए थी व्यवस्था

संविधान के लागू होने के 15 वर्षों की अवधि के दौरान धीरे-धीरे अंग्रेजी के स्थान पर हिन्दी को अपनाने के लिए निर्देशित किया गया था. केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 343 के खंड (3) के प्रावधान के तहत मिली शक्तियों का उपयोग करके, 27 मई, 1952 को कानून विभाग द्वारा अधिसूचना के रूप में एक राष्ट्रपति आदेश जारी किया गया था और फिर 3 दिसंबर, 1955 को गृह मंत्रालय द्वारा एक “संवैधानिक आदेश 1955” भी जारी किया गया था.

आदेशों के तहत राज्यों के राज्यपालों, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति के आदेशों को अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी जारी करने को कहा गया था. इसके अलावा आदेश में आम लोगों के साथ होने वाले पत्राचार को भी हिंदी में करने को कहा गया था.

15 वर्ष का अंतरिम समय के बीतने के बाद क्या होगा, इस बारे में संविधान में कुछ खास नहीं कहा गया है. हालांकि इस विषय की जांच करने के लिए भविष्य में एक संसदीय समिति बनाए जाने का फैसला किया गया. इसके अलावा संविधान में चौदह अन्य भाषाओं को मान्यता दी गई.

लेकिन पंद्रह वर्षों के बीत जाने पर भी केन्द्र सरकार के कामकाज में हिंदी का काफी कम प्रसार हो सका और अंग्रेजी में ही अधिकतर कार्य होते रहे जो आज तक जारी है.

हालांकि तत्कालीन गृह मंत्री गोविंद वल्लभ पंत की अध्यक्षता मे गठित समिति द्वारा की गई सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए, राष्ट्रपति ने 27 अप्रैल 1960 को केंद्र सरकार के कार्यालयों में आधिकारिक कार्यों के लिए हिंदी को अपनाने के प्रारंभिक उपायों के लिए अनुच्छेद 344 (6) के तहत मिली शक्तियों का उपयोग करते हुए एक आदेश जारी किया गया. आदेश के तहत हिंदी शब्दावली का विकास, केंद्रीय अधिनियमों और नियमों का हिंदी में अनुवाद और केंद्र सरकार के कर्मचारियों को हिंदी में प्रशिक्षण प्रदान का रास्ता खुला.

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राजभाषा आयोग, 1955

राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 344 (I) के तहत मिली शक्तियों का उपयोग करते हुए 7 जून, 1955 को बाल गंगाधर खेर की अध्यक्षता में सिफारिशें करने के लिए एक आयोग नियुक्त किया.

हिंदी भाषा का इतिहास

हिंदी भाषा को अपना नाम फारसी शब्द ‘हिंद’ से मिला है, जिसका अर्थ है ‘सिंधु नदी की भूमि’. 11वीं शताब्दी की शुरुआत में तुर्की के आक्रमणकारियों द्वारा सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र की भाषा को हिंदी यानी ‘सिंधु नदी की भूमि की भाषा’ नाम दिया था. हिंदी भारत की राजभाषा है, जबकि अंग्रेजी दूसरी राजभाषा है.

हिन्दी अपने वर्तमान स्वरूप में विभिन्न अवस्थाओं के जरिये उभरी, पहले इसे विभिन्न नामों से जाना जाता था. पुरानी हिंदी का सबसे प्रारंभिक रूप अपभ्रंश (Apabhramsa) था. 400 ईस्वी में कालिदास ने अपभ्रंश में विक्रमोर्वशियम नामक एक रोमांटिक नाटक लिखा था. आधुनिक देवनागरी लिपि 11वीं शताब्दी में अस्तित्त्व में आई.

हिंदी भाषा बोलने वाले लोगों की संख्या कितनी?

2011 में हुई जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, देशभर की आबादी के 43.63 फीसदी लोगों की मातृभाषा हिंदी है, ये आंकड़ा 2001 में 41.03 फीसदी पर था. इसके बाद बंगाली और मराठी भाषा का स्थान आता है.

2011 की जनगणना के अनुसार सबसे अधिक हिंदी भाषी उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं. इसके बाद बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा का स्थान आता है.

भारत के अलावा नेपाल, मॉरिशस, सुरीनाम, गयाना, फिजी और त्रिनिदाद टोबैगो में भी हिंदी बोलने और समझने वाले लोगों की अच्छी तादाद है.

विश्व हिंदी दिवस

प्रतिवर्ष 10 जनवरी को विश्वभर में हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए ‘विश्व हिंदी दिवस’ मनाया जाता है. विश्व हिंदी दिवस को पहली बार वर्ष 2006 में 10 जनवरी, 1975 को नागपुर में आयोजित हुए प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन’ की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में मनाया गया था.

विश्व हिंदी सचिवालय भवन का उद्घाटन वर्ष 2018 में मॉरीशस में किया गया था.

वर्ष 2022 के विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर यूनेस्को के ‘विश्व धरोहर केंद्र’ (WHC) ने अपनी वेबसाइट पर भारत के विश्व धरोहर स्थलों के हिंदी विवरण प्रकाशित करने पर सहमति जताई थी.

हिंदी को बढ़ावा देने के लिए की गई पहल

वर्ष 1960 में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के तहत केंद्रीय हिंदी निदेशालय की स्थापना की गई थी.

भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (Indian Council for Cultural Relations- ICCR) ने विदेशों में विभिन्न विदेशी विश्वविद्यालयों और संस्थानों में ‘हिंदी पीठ’ की स्थापना की है. जिससे इस भाषा के प्रचार प्रसार में मदद मिल सके.

भारत सरकार द्वारा राजभाषा गौरव पुरस्कार और राजभाषा कीर्ति पुरस्कार हिंदी में योगदान हेतु दिये जाते हैं.

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