एक बार फिर से सुर्खियों में सतलुज यमुना लिंक (SYL) विवाद, जानिए हरियाणा और पंजाब के बीच 50 साल से चल रहे इस विवाद के बारे में

सतलुज यमुना लिंक (SYL) विवाद की शुरूआत वर्ष 1960 में भारत और पाकिस्तान के मध्य हुई सिंधु पानी संधि में देखी जा सकती है, जिसमें रावी, ब्यास और सतलज के पानी की 'मुक्त और अप्रतिबंधित उपयोग' (Free And Unrestricted Use) की अनुमति दी गई थी.

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एक बार फिर से सुर्खियों में सतलुज यमुना लिंक (SYL) विवाद, जानिए हरियाणा और पंजाब के बीच 50 साल लंबे पानी को लेकर हो रहे इस विवाद के बारे में - APN News

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को लंबे समय से चल रहे सतलुज यमुना लिंक (SYL) विवाद को लेकर पंजाब सरकार से कहा कि वो हरियाणा के साथ इस मुद्दे पर जल्द से जल्द बातचीत करें. मंगलवार 6 सितंबर को मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने आरोप लगाया कि पंजाब सरकार इस मामले में सहयोग नहीं कर रही है. केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि SYL के मुद्दे के संबंध में अप्रैल महीने में पंजाब के मुख्यमंत्री को पत्र भेजा गया था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

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SYL Canal

पंजाब के मुख्यमंत्री को पत्र भेजा गया, लेकिन जवाब नहीं मिला – अटॉर्नी जनरल

मंगलवार 6 सितंबर को मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने आरोप लगाया कि पंजाब सरकार इस मामले में सहयोग नहीं कर रही है. केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि SYL के मुद्दे के संबंध में अप्रैल महीने में पंजाब के मुख्यमंत्री को पत्र भेजा गया था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

Supreme Court 1

जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने केंद्र सरकार से दोनों राज्यों के साथ बैठक एवं प्रगति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए चार महीने का समय दिया है. मामले की सुनवाई 19 जनवरी 2023 को होगी. फिलहाल सतलुज नहर का कार्य बंद पड़ा हुआ है.

पानी एक प्राकृतिक संसाधन है और इसे साझा करना सीखना चाहिए – न्यायमूर्ति संजय कौल

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने कहा कि, ‘पानी एक प्राकृतिक संसाधन है और इसे साझा करना सीखना चाहिए, चाहे वह व्यक्तिगत हो या राज्य. मामले को केवल एक शहर या राज्य के दृष्टिकोण से नहीं देखा जा सकता. इस प्राकृतिक संसाधन की साझेदारी कैसे हो, इस पर तंत्र को काम करना चाहिए.’

सतलुज यमुना विवाद

सतलुज यमुना लिंक (SYL) विवाद की शुरूआत वर्ष 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सिंधु पानी संधि में देखी जा सकती है, जिसमें रावी, ब्यास और सतलुज के पानी की ‘मुक्त और अप्रतिबंधित उपयोग’ (Free And Unrestricted Use) की अनुमति दी गई थी.

वर्ष 1966 में अविभाजित पंजाब से निकले हरियाणा (1 नवंबर 1966 को पंजाब से अलग होकर राज्य बना) को नदी के पानी का हिस्सा देने की बात सामने आई. इसी के चलते सतलुज और उसकी सहायक ब्यास नदी के पानी का हिस्सा हरियाणा को देने के लिये सतलुज को यमुना से जोड़ने वाली एक नहर (सतलुज यमुना लिंक नहर) की योजना बनाई गई.

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बाद में पंजाब ने हरियाणा के साथ SYL को पानी साझा करने से इनकार करते हुए कहा कि यह रिपेरियन सिद्धांत (Riparian Principle) के खिलाफ है. रिपेरियन सिद्धांत के अनुसार, नदी के पानी पर केवल उस राज्य और देश या राज्यों और देशों का अधिकार होता है जिससे नदी बहती है.

इसके बाद वर्ष 1981 दोनों राज्य पानी के पुन: आवंटन हेतु परस्पर सहमत हुए. लेकिन वर्ष 1982 में पंजाब के कपूरी गांव में 214 किलोमीटर लंबी सतलज-यमुना लिंक नहर (SYL) का निर्माण शुरू किया गया. इसके बाद पंजाब में आतंकवाद का माहौल बनाने और राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बनाने के विरोध में आंदोलन, विरोध प्रदर्शन हुए तथा हत्याएं की गईं.

राजीव-लोंगोवाल समझौता

वर्ष 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और तत्कालीन अकाली दल के प्रमुख संत (राजीव-लोंगोवाल समझौता) ने पानी का आकलन करने हेतु एक नए न्यायाधिकरण के लिये सहमति व्यक्त की. इसके बाद पानी की उपलब्धता और बंटवारे के पुनर्मूल्यांकन हेतु सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश वी बालकृष्ण एराडी की अध्यक्षता में एक ट्रिब्यूनल की स्थापना की गई थी. 1987 में ट्रिब्यूनल द्वारा पंजाब और हरियाणा को आवंटित पानी में क्रमशः 5 मिलियन एकड़ फीट और 3.83 मिलियन एकड़ फीट तक की बढ़ोतरी की सिफारिश की.

वर्ष 1996 में हरियाणा सरकार ने SYL का निर्माण कार्य को पूरा करने के लिये पंजाब को निर्देश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी. इसके बाद वर्ष 2002 एवं 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को अपने क्षेत्र में SYL का निर्माण कार्य पूरा करने का निर्देश दिया.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद वर्ष 2004 में पंजाब विधानसभा ने पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स अधिनियम पारित किया, इसके माध्यम से पूर्व में हरियाणा के साथ पानी साझाकरण के समझौतों को खत्म कर दिया गया और इसके साथ ही पंजाब में SYL का निर्माण कार्य अधर में लटक गया.

वर्ष 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार के 2004 के अधिनियम की वैधता पर निर्णय लेने के लिये राष्ट्रपति के संदर्भ (अनुच्छेद 143) पर सुनवाई शुरू करते हुए माना कि पंजाब नदियों के पानी को साझा करने के अपने वादे से मुकर रहा है. इसके साथ ही पंजाब के 2004 के अधिनियम को संवैधानिक रूप से अमान्य घोषित कर दिया गया.

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2016 के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बावजूद पंजाब ने आगे बढ़कर अधिगृहीत भूमि (जिस पर नहर का निर्माण किया जाना था) भूस्वामियों को लौटा दी.

वर्ष 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को SYL नहर के मुद्दे पर उच्चतम राजनीतिक स्तर पर केंद्र सरकार की मध्यस्थता के माध्यम से बातचीत करने और मामले को निपटाने का निर्देश दिया था.

पंजाब का तर्क

पंजाब के कई क्षेत्रों में भू-पानी का अत्यधिक दोहन कर चुका है ओर पंजाब के लगभग 79 फीसदी क्षेत्र में पानी का अत्यधिक दोहन हो रहा है और ऐसे में सरकार का कहना है कि किसी अन्य राज्य के साथ पानी साझा करना असंभव है.

पंजाब सरकार प्रदेश में पानी की उपलब्धता के नए आकलन के लिए एक न्यायाधिकरण की मांग की है. पंजाब सरकार का कहना है कि आज तक राज्य में नदी पानी का कोई वैज्ञानिक मूल्यांकन नहीं हुआ है.

रावी-ब्यास में पानी की उपलब्धता भी 1981 के अनुमानित 17.17 मिलियन एकड़ फुट से घटकर 2013 में 13.38 मिलियन एकड़ फुट हो गई है.

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हरियाणा का तर्क

हरियाणा का कहना है कि राज्य में सिंचाई के लिये पानी उपलब्ध कराना कठिन है और हरियाणा के दक्षिणी हिस्सों में पीने के पानी की समस्या है जहां भू-पानी (Ground Water) काफी कम हो गया है.

हरियणा के मुख्यमंत्री का कहना है कि एसवाईएल का पानी हरियाणा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. एक तरफ यह पानी हमें नहीं मिल रहा है तो दूसरी तरफ दिल्ली सरकार हमसे और ज्यादा पानी की मांग कर रही है. अब इस मुद्दे को जल्द से जल्द हल करने के लिए समय सीमा तय करना बहुत जरूरी हो गया है.

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