Facebook ने इन 6 कारणों से बदला अपना नाम, जानिए सबकुछ

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Meta Layoff: मेटा कंपनी ने ऑफिस से निकाले 11 हजार कर्मचारी, सभी निकाले गए कर्मचारियों को दी जाएगी 4 महीने की सैलरी
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Facebook ने अहम घोषणा करते हुए कंपनी के नाम में बदलाव किया है। अब Facebook को Meta के नाम से जाना जाएगा। फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) मार्क जकरबर्ग ने जैसे ही इस बात की घोषणा की। वैसे ही देश-विदेश में इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि फेसबुक ने अपने बचाव में यह कदम उठाया है।

दरअसल कहा यह जा रहा है कि विगत कुछ वर्षों में फेसबुक की कार्यप्रणाली ने गलत सूचनाओं को फैलाने और गलत जनमत तैयार करने में अपनी भूमिका निभाई। इस मामले में फेसबुक पर सबसे पहला आरोप साल 2016 में हुए अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान लगा था और इसके लिए फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग को अपनी कंपनी के पक्ष में अमेरिकी कांग्रेस के सामने पेश होना पड़ा था।

मामले ने ज्यादा तूल लगभग दो महीने पहले पकड़ा जब कुछ विसलब्लोअर और कंपनी के उच्चाधिकारी ने कांग्रेस के सामने फेसबुक से संबंधित अंतरिक शोध के तमाम दस्तावेज सार्वजनिक कर दिये। इस मामले में सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन के सामने Facebook के विसलब्लोअर फ्रांसेस हॉगेन के वकील ने इसके क्रियाकलापों के तकनीक पर विस्तार से प्रकाश डाला।

सीएनएन सहित 17 अमेरिकी समाचार संगठनों के एक संघ ने कांग्रेस से मिले इन दस्तावेजों की समीक्षा है। इसमें से कुछ दस्तावेजों को वॉल स्ट्रीट जर्नल पहले ही प्रकाशित कर चुका है, जिसमें बताया गया है कि फेसबुक को अपने प्लेटफार्मों के साथ होने वाली समस्याओं की जानकारी पहले से थी।

फेसबुक को मुख्यत: कुल 6 बिंदुओं पर समस्या आ रही थी, जिसके कारण वह परेशानी में फंस गया। इसमें सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि कंपनी के सीईओ मार्क जकरबर्ग सारी परेशानियों से अवगत थे।

क्या थे वह 6 बिंदू जानते हैं यहां-

1 भ्रामक सूचनाओं का प्रसार

एसईसी के एक खुलासे में हौगेन ने Facbook पर आरोप लगाया है कि “फेसबुक ने निवेशकों और जनता को अमेरिका के 2020 के चुनाव और 6 जनवरी के कैपिटल हिल हिंसा के विषय में गलत सूचना के जरिये अपनी भूमिका के विषय में गुमराह किया। इसके अलावा फेसबुक के एक प्रवक्ता ने बताया कि 6 जनवरी को हुई कैपिटल हिंसा के लिए प्रोत्साहित करने के लिए इस प्लेटफॉर्म का प्रयोग हुआ।

2 वैश्विक समर्थन की कमी

हौगेन ने फेसबुक के आंतरिक दस्तावेजों को साझा करते हुए बताया है कि म्यांमार, अफगानिस्तान, भारत, इथियोपिया और मध्य पूर्व के अधिकांश देशों में नफरत की भाषा और गलत सूचनाओं का तेजी से आदान-प्रदान करने के लिए इस प्लेटफॉर्म का प्रयोग होता है लेकिन इसे रोकने के लिए फेसबुक अपनी क्षमता के अनुसार काम नहीं कर पाया क्योंकि इन देशों में कई स्थानीय भाषाओं का प्रयोग एक प्रमुख कारण है।

3 मानव तस्करी

फेसबुक को साल 2018 से यह बात अच्छी तरह से पता थी कि उसके प्लेटफॉर्म का उपयोग मानव तस्करी के लिए किया जाता है और कंपनी उसे जुड़े सभी तरह के कंटेंट को रोकने का प्रयास कर रही है।

4 अंतर्राष्ट्रीय हिंसा के मामले में

फेसबुक के आंतरिक दस्तावेज से पता चलता है कि फेसबुक प्लेटफॉर्म देश में आंतरिक हिंसा को बढ़ावा देने वाली पोस्ट पर लगाम लगाने के लिए संघर्ष कर रहा है। इस प्लेटफॉर्म के जरिये उस तरह के हिंसक पोस्ट को बढ़ावा मिलता है, जिससे देश में अस्थिरता फैल सकती है मसलन इथोपिया को ही लें।

ऐसा नहीं है कि इस बात की पहली बार चिंता की जा रही है कि फेसबुक के जरिए नफरत भरी भाषा और हिंसक पोस्ट का प्रचार किया जाता है। इस विषय में यूनाइटेड नेशन ने फेसबुक प्लेटफॉर्म की साल 2018 में म्यामांर में हुई हिंसा को लेकर उसके रोल की कड़ी आलोचना की थी कि फेसबुक ने इसे रोकने के लिए कोई खास कदम नहीं उठाया। जिसके बाद मार्क जकरबर्ग ने यूएन को भरोसा दिलाया था कि वह इस तरह के हिंसक गतिविधियों के लिए अपने प्लेटफॉर्म के प्रयोग को लेकर चिंतित हैं और जल्द ही सख्त एक्शन लेकर इसे रोकने का प्रयास करेंगे।

5 किशोरों पर पड़ने वाला प्रभाव

फेसबुक के आंतरिक दस्तावेजों से पता चलता है कि फेसबुक लगातार युवाओं के बीच अपने प्रसार को लेकर नई-नई नीतियों पर काम करता है। जबकि फेसबुक के आंतरिक शोध में बहुत ही खतरनाक बात सामने आयी है और वो भी इंस्टाग्राम के विषय में। बताया जा रहा है कि इंस्टाग्राम युवाओं के विकास और मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत ही नकारात्मक प्रभाव डालता है। जबकि शुरूआती दौर में फेसबुक ने इस बात को स्वीकार किया था कि फेसबुक एप से युवाओं का रूझान कम था, जिसके बाद फेसबुक ने युवाओं की संख्या बढ़ाने के लिए अपने लक्ष्य का निर्धारण किया।

6 विभाजनकारी एल्गोरिदम

सोशल नेटवर्क के 14 प्रकाशकों ने साल 2018 में एक विश्लेषण किया कि क्या फेसबुक विभाजकारी सोच को बढ़ावा देता है। जिसमें पाया गया कि फेसबुक पोस्ट पर ज्यादा से ज्यादा नकारात्म टिप्पणियों को बढ़ावा दिया गया और उसमें भी भी उन लिंक को सबसे ज्यादा क्लिक किया गया। इस मामले में एक कर्मचारी ने कहा कि हमारी तकनीक इस मामले में निष्पक्ष नहीं है।

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