By: सर्वजीत सोनी | Edited By: उमेश चंद्र
भारतीय संगीत जगत की जानी-मानी पार्श्वगायिका आशा भोसले ने हाल ही में मुंबई हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। मामला आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से जुड़ा है। उनका आरोप है कि दो अमेरिकी एआई प्लेटफॉर्म्स ने बिना अनुमति उनकी आवाज और गायन शैली की नकल कर उसे अपने ऑडियो-वीडियो कंटेंट में इस्तेमाल किया है। यह न केवल उनके व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि उनकी प्रतिष्ठा और कलाकार के रूप में पहचान को भी नुकसान पहुंचाने वाला कदम है।
क्या है मामला?
एआई आधारित तकनीक आज कंटेंट निर्माण में तेजी से इस्तेमाल हो रही है। संगीत और फिल्म जगत भी इससे अछूता नहीं है। बताया जा रहा है कि कुछ विदेशी कंपनियां उन्नत एल्गोरिद्म का इस्तेमाल कर आशा भोसले की आवाज को हूबहू कॉपी कर रही हैं। उनके नाम और गायन शैली का उपयोग करके रिकॉर्डिंग तैयार की गई और उन्हें पब्लिक प्लेटफॉर्म्स पर चलाया गया। आशा भोसले का कहना है कि यह पूरी तरह अवैध है, क्योंकि उनकी सहमति के बिना उनकी आवाज का व्यवसायिक शोषण किया गया है।
बॉम्बे हाईकोर्ट की सुनवाई
आशा भोसले के वकील अंकित लोहिया ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इस याचिका में मांग की गई है कि अदालत उनके व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करे और ऐसे एआई प्लेटफॉर्म्स को उनकी आवाज व गायन शैली के उपयोग से रोके। सोमवार को न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की। अदालत ने इस मुद्दे को गंभीर मानते हुए कहा कि जल्द ही अंतरिम राहत पर आदेश जारी किए जाएँगे।
फिलहाल अदालत ने सुनवाई को दो हफ्ते के लिए स्थगित कर दिया है। इस बीच अदालत ने संकेत दिया है कि कलाकारों की आवाज और व्यक्तित्व का अधिकार उनकी बौद्धिक संपदा और निजता का हिस्सा है, और इसका उल्लंघन कानून के दायरे में गंभीर अपराध माना जा सकता है।
क्यों है यह मामला अहम?
यह मामला सिर्फ आशा भोसले तक सीमित नहीं है। दुनियाभर में एआई की वजह से कलाकारों, लेखकों और क्रिएटिव प्रोफेशनल्स के सामने नई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। एआई तकनीक इतनी उन्नत हो गई है कि वह किसी की आवाज, चेहरा या लिखने की शैली को हूबहू दोहरा सकती है। ऐसे में, कलाकारों की पहचान और उनकी आय पर खतरा मंडरा रहा है।









