Book Review: अगर आप भी मिडिल क्लास फैमिली से आते हैं तो पढ़ें राजेंद्र यादव का उपन्यास ‘सारा आकाश’

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Book Review: Sara Akash
Book Review: Sara Akash

Book Review: कुछ समय पहले हिंदी के एक बड़े नाम राजेंद्र यादव की कहानियों के संग्रह को पढ़ा था। संकलन पढ़ने के बाद इच्छा हुई कि उनकी किसी लंबी रचना को पढ़ा जाए। खुशकिस्मती से साथी पुनीत रंजन ने उनका एक उपन्यास ‘सार आकाश’ उपलब्ध कराया। लेखक राजेंद्र यादव के मुताबिक ‘सारा आकाश’ साल 1951 में ‘प्रेत बोलते हैं’ के रूप में छप चुका था। लेकिन कुछ सालों बाद इसे सारा आकाश के नाम से छापा गया। खैर रचना पर आते हैं।

Book Review: मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी है ‘सारा आकाश’

Book Review: राजेंद्र यादव जी का उपन्यास ‘सारा आकाश’ मध्यमवर्गीय परिवार की एक कहानी है। हालांकि 1951 की इस रचना को मौजूदा समय में भी उतना ही प्रासंगिक माना जाना चाहिए। इसलिए क्योंकि आज के समय में भी संयुक्त मध्यमवर्गीय परिवारों की कहानी कुछ ऐसी ही है। ‘सारा आकाश’ में समर नाम के चरित्र के जरिए पूरी कहानी गयी है। समर के परिवार में उसके पिताजी, बड़े भाई-भाभी, दो छोटे भाई हैं और एक बहन है, जो कि ससुराल वालों के अत्याचार सहने के बाद मायके में रह रही है।

Book Review: उपन्यास की शुरुआत होती है समर के रिश्ते की बात से। समर इतनी जल्दी शादी नहीं करना चाहता है । समर के मन की ऊहापोह भी हर एक उस युवक की तरह है जो अभी पढ़ना चाहता है और करियर बनाना चाहता है। हालांकि घरवाले समर की इच्छा को बिना तवज्जो दिए उसकी शादी प्रभा से करा देते हैं। प्रभा के घरवाले भी उसकी इसी बात को विशेषता के रूप में बताते हैं कि हम पढ़ी-लिखी लड़की से आपके लड़के की शादी कर रहे हैं। लेकिन समर के घरवालों की नजर में पढ़ाई का उतना महत्व नहीं है।

Book Review: वह भी इसलिए कि समर के घर में कमाने वाला सिर्फ एक शख्स है और वो हैं समर के बड़े भाई। प्रभा को लेकर समर के मन में कई तरह के ख्याल उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं कि वो कैसी होगी लेकिन सुहागरात के दिन उसके सारे अरमानों पर पानी फिर जाता है। उसी समय से समर का मन प्रभा के लिए खट्टा हो जाता है। उपन्यास के पहले भाग में बताया गया है कि कैसे प्रभा को ससुर,सास और जेठानी से ताने मिलते रहते हैं। वजह यही कि वह अपने मायके से कुछ लाई नहीं। समर भी अपनी पत्नी से बोलता नहीं है। नौबत तो ये आ जाती है कि समर अपनी पत्नी पर हाथ उठा देता है।

Book Review: हालांकि पहले भाग का अंत होते होते समर के मन में प्रभा के लिए करुणा जागने लगती है। उपन्यास के दूसरे भाग में समर और प्रभा एक दूसरे के करीब आ चुके हैं। दोनों मिलकर अपने भविष्य को लेकर सपने देखने लगते हैं। अब समर को अपनी पत्नी की ससुराल में स्थिति पर दया आने लगती है। उसे लगने लगता है कि ससुराल में उसकी पत्नी की कोई पूछ नहीं है। वह निष्कर्ष निकालता है कि प्रभा का पति यानी समर कमाता नहीं है इसलिए प्रभा को ये झेलना पड़ता है।

Book Review: इस बीच समर को नौकरी मिल जाती है। समर का दोस्त दिवाकर उसे पढ़ाई जारी रखने के आश्वासन के साथ नौकरी दिलवा देता है। समर की नौकरी की खबर से घरवालों का समर और प्रभा के प्रति रवैया बदलने लगता है। सबको उम्मीद जगती है कि समर अब जिम्मेदारियों का कुछ बोझ उठाएगा। लेकिन सच्चाई क्या है समर अपने मन में जान रहा होता है।

Book Review: उपन्यास में बखूबी बताया गया है कि देश में बेरोजागारी का क्या आलम है। समर को जैसे-तैसे प्रूफ रीडिंग का काम मिलता है। नौकरी मिलते ही समर सपने देखने लगता है। लेकिन ये सपने चकनाचूर हो जाते हैं जब समर का मालिक पैसों के लिए आनकानी करने लगता है। जिसके बाद समर नौकरी छोड़ देता है। समर की नौकरी छूट जाने की खबर से घरवालों की तरफ से होने वाली पूछ भी गायब हो जाती है। अब समर के पिता भी कह देते हैं कि तुम अपनी पत्नी को लेकर कहीं और जाओ , तुम से हमारा बोझ नहीं उठता।

Book Review: इस बीच समर को खबर मिलती है कि उसकी बहन की मौत हो गयी है जिसे उसका पति कुछ समय पहले ससुराल ले जाने आया था।उपन्यास का अंत वहां होता है जहां समर एक रेलवे ट्रैक के आगे खड़ा है और सोच रहा है कि क्या उसे आत्महत्या कर लेनी चाहिए या नहीं। हालांकि ‘प्रेत बोलते हैं’, जो कि पहले छपा था, में अंत में होता ये है कि समर की मौत के बाद प्रभा को समाज सती मान लेता है और उसे उसकी पति की चिता के हवाले कर दिया जाता है।

Book Review: इस रचना में खास बात ये है कि राजेंद्र यादव बीच-बीच में शिरीष भाई नाम के चरित्र के जरिए समर से भारतीय समाज की समस्याओं पर बहस करते हैं और उन रीतियों और प्रथाओं पर हमला बोलते हैं। जो कि भारतीय समाज को जड़ बनाए हैं। शिरीष भाई साहब के साथ चर्चा के बाद समर सोचने लगता है कि कैसे संयुक्त परिवार में एक व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता है।

Book Review: आखिर में यही कि अगर आप मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं तो आप काफी हद तक इस उपन्यास से खुद को जोड़ पाएंगे। राजेंद्र यादव जी का लेखन तो कमाल है ही। चाहें तो बासु चटर्जी की फिल्म ‘सारा आकाश’ देख सकते हैं जो कि इसी उपन्यास के पहले भाग पर आधारित है।

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